कंपनी की लापरवाही से हुई गैस लीक
७ जुलाई २०२०आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में सात मई 2020 को हुए गैस लीक हादसे की जांच रिपोर्ट में फैक्टरी को चलाने वाली कंपनी एलजी पॉलीमर्स को लापरवाही का दोषी पाया गया है. राज्य सरकार द्वारा बिठाई गई जांच में सामने आया है कि लापरवाही बरते जाने का यह स्तर था कि फैक्ट्री में चेतावनी देने का सिस्टम भी काम नहीं कर रहा था. हादसे में देर रात स्टाइरीन गैस लीक होने की वजह से 12 लोगों की जान चली गई थी और हजारों लोग अस्पताल में भर्ती हो गए थे.
एलजी पॉलीमर्स का यह केमिकल प्लांट गोपालपट्नम इलाके में एक गांव के नजदीक स्थित है. सात मई की रात को इसके 5,000 टन के दो ऐसे टैंकों से गैस लीक हुई जिनकी मार्च में तालाबंदी लागू होने के बाद से देख रेख नहीं हुई थी. गैस लीक होने के बाद सोए हुए लोग जब अचानक उठ कर अपने अपने घरों से बाहर भागे तो कई लोग बेहोश हो कर सड़क पर ही गिर पड़े और कईयों ने आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ महसूस की.
पुलिस, एंबुलेंस और आग बुझाने वाली गाड़ियां वहां पहुंच गईं और सभी प्रभावित लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया. उसके बाद हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए यह जांच बिठाई गई थी.
हादसे के 21 कारण
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में हादसे के पीछे 21 मुख्य कारण गिनाए हैं, जिनमें गैस के भंडारण के तरीके के डिजाइन का गलत होना, पुरानी टंकी के रखरखाव में लापरवाही और खतरे के संकेतों को अनदेखा करना शामिल हैं. रिपोर्ट में इन 21 कारणों में से 20 के लिए कंपनी को जिम्मेदार ठहराया गया है. प्लांट में तीन टंकियां हैं जिनमें स्टाइरीन मोनोमर नाम का केमिकल रखा जाता था. इन टंकियों में से सबसे पुरानी टंकी में एक केमिकल प्रतिक्रिया की वजह से तापमान बढ़ने लगा और जितने स्तर तक अनुमति है उस से छह गुना से भी ज्यादा बढ़ गया.
समिति ने जांच रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी के प्रबंधन ने चार अप्रैल से पॉलीमर के स्तर में बढ़ोतरी को नजरअंदाज किया हुआ था और 25 अप्रैल से 28 अप्रैल बीच स्तर काफी बढ़ गया. समिति ने यह भी कहा, "कंपनी प्रबंधन पॉलीमर के स्तर को स्टाइरीन के लिए सुरक्षा के मानक की जगह गुणवत्ता का मानक समझता है." समिति ने यह भी कहा है कि भविष्य में इस तरह के हादसे को दोबारा होने से बचाने के लिए फैक्टरी को आवासीय इलाकों से दूर कर देना ही ठीक होगा."
एलजी पॉलीमर्स की मूल कंपनी एलजी केम ने मंगलवार को कहा कि उसने सुरक्षा के कई कदम उठाए थे. कंपनी ने एक वक्तव्य में कहा, "हमने जांच में पूरा सहयोग किया है और हम जांच के नतीजों का भी ईमानदारी से पालन करेंगे और उनके अनुकूल कदम उठाएंगे.
भारत में औद्योगिक हादसे
भारत में इस तरह के औद्योगिक हादसों का एक लंबा इतिहास है. इनमें 1984 में भोपाल में हुई गैस लीक त्रासदी को सबसे बुरा हादसा माना जाता है. इसमें आधिकारिक तौर पर करीब 3,800 लोगों की मौत हो गई थी जबकि अनधिकृत तौर पर 16,000 लोगों के मरने का दावा किया जाता है. गैस के रिसाव से 5 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे. उसके पहले 1944 में बॉम्बे डॉक्स विस्फोट, 1975 में बिहार के धनबाद में चसनाला खदान हादसा, 2009 में जयपुर तेल डिपो आग, 2009 में ही कोरबा चिमनी हादसा और 2010 में दिल्ली में मायापुरी रेडियोलॉजिकल हादसे को बड़े औद्योगिक हादसों में माना जाता है.
छोटे हादसों की संख्या इनसे कहीं ज्यादा है. एक अनुमान के अनुसार, 2014 से 2016 के बीच फैक्ट्री हादसों में 3,562 श्रमिकों की जान चली गई और 51,000 से भी ज्यादा श्रमिक घायल हो गए. इसका मतलब हर दिन औसत तीन मौतें हुईं और 47 लोग घायल हुए. ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल की एक स्टडी के अनुसार भारत में हर साल 48,000 श्रमिक व्यावसायिक दुर्घटना में मरते हैं.
हालांकि भारत श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कई कानून है लेकिन देश में फैक्टरियों का निगरानी तंत्र अत्यंत कमजोर है, जिसकी वजह से हादसे होते रहते हैं. ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल के अनुसार हर 506 रजिस्टर्ड फैक्टरियों पर निगरानी के लिए सिर्फ एक इंस्पेक्टर है. उद्योग ने भी खर्च को कम रखने के लिए सुरक्षा पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया है.
सीके/एमजे (रायटर्स)
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