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घरों को गर्म करेगा शैवाल

१७ मई २०१३

भारतीय परंपरा में जड़ी बूटियों से इलाज की रिवायत रही है. आधुनिक विज्ञान भी ऐसी ही जड़ी बूटियों का सहारा ले रहा है. यहां तक कि कैंसर के इलाज के लिए समुद्री शैवालों का प्रयोग करने की कोशिश हो रही है. मंथन में इन पर खास.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

समुद्र में पाए जाने वाले कुछ शैवाल कैंसर के इलाज में मददगार साबित हो सकते हैं. जर्मन रिसर्चर ऐसे शैवालों का प्रयोगशाला में परीक्षण कर रहे हैं, जिन्हें दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. यह तरीका कुछ कुछ भारतीय परंपरा से मिलता है, जहां प्राचीन काल से जड़ी बूटियों से इलाज किया जाता रहा है और आयुर्वेद तो पूरी दुनिया में मशहूर है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह पानी के अंदर मुश्किल परिस्थितियों में शैवाल अपनी सुरक्षा के लिए ताना बाना बुनता है. खास बैक्टीरिया से बचने के लिए भी इसके पास तरीके होते हैं. इन बातों को ध्यान में रखने पर पैंक्रियास के कैंसर के उपचार में मदद मिल सकती है.

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तस्वीर: Frank Grotelüschen

शैवाल सिर्फ इलाज के लिए ही नहीं, बल्कि मनुष्यों की रोजमर्रा में दूसरी जरूरतों के लिए भी इस्तेमाल हो सकता है. खास तरह के शैवाल को घरों को गर्म करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. जर्मनी जैसे ठंडे देशों में घरों को गर्म करने में काफी ऊर्जा लगती है. लेकिन अब यहां प्रयोग किए जा रहे हैं कि शैवाल की मदद से घरों को गर्म किया जा सके. इससे न सिर्फ ऊर्जा की बचत होगी, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा में भी मदद मिलेगी.

जंगलों की जरूरत

जंगल काटे जाने का नुकसान हर कोई जानता है. फिर भी पूरी दुनिया के लोग जंगल काट रहे हैं ताकि इसका व्यावसायिक इस्तेमाल हो सके. लातिन अमेरिकी देश पैराग्वे भी इस समस्या से जूझ रहा है. हालांकि उन्हें जंगल काटने की अपनी गलती का अहसास हुआ है. अब पर्यावरण सुरक्षा में लगे वहां के लोग जंगलों की बंजर जमीनों को दोबारा खरीद रहे हैं ताकि उन्हें फिर से उगाया जा सके. इस पर पैराग्वे से एक खास रिपोर्ट इस बार के मंथन में पेश की गई है.

जंगल बचाने से होने वाले नुकसान और जंगलों को बचाने की कोशिश पर हमने एक बातचीत भी पेश की है, जिसमें विशेष उदाहरणों के जरिए इस बात को बताया गया है कि जंगल कितने जरूरी हैं और उन्हें कैसे बचाया जा सकता है.

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तस्वीर: DW

फिर बसेंगे गांव

सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों के सामने गांवों के खाली होने की समस्या सता रही है. लोग रोजी रोटी के लिए शहरों में जा रहे हैं और गांव के गांव सूने होते जा रहे हैं. अब वहां सिर्फ बुजुर्ग लोग बच रहे हैं. जर्मनी के गांवों को भी इस समस्या से जूझना पड़ रहा है. इससे निपटने के लिए उन्होंने खास तरीका निकाला है. एक गांव में ग्राम संरक्षक नियुक्त किया गया है, जो गांवों की बेहतरी के लिए काम कर रहा है. इस जर्मन गांव से एक खास रिपोर्ट इस बार के मंथन में शामिल की गई है. इसे न सिर्फ स्थानीय प्रशासन, बल्कि सरकार से भी समर्थन मिल रहा है. यह दूसरे गांवों के लिए भी एक आदर्श बन सकता है.

टाइपराइटर से कला

कुछ कलाकार बिलकुल अलग दुनिया में जीते हैं. भला सोचिए कि क्या कोई टाइपराइटर से कला के नमूने तैयार कर सकता है. जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट में एक ऐसा कलाकार रहता है, जो टाइपराइटर पर ऐसी चीजें टाइप करता है, जो शानदार कला की शक्ल ले लेती हैं. ऐसे युग में, जब कंप्यूटर ने टाइपराइटरों का महत्व खत्म कर दिया है, इस कलाकार ने उसमें दोबारा जान फूंकने की कोशिश की है. इस काम पर मंथन में विस्तार से और बेहक तरीके से रिपोर्ट पेश की गई है. इस रोचक जानकारी के लिए देखना ना भूलिएगा मंथन शनिवार सुबह 10.30 बजे डीडी 1 पर.

रिपोर्ट: अनवर जमाल अशरफ

संपादन: ईशा भाटिया

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