चमकदार नेताः राजू शर्मा
९ सितम्बर २०१३राजू शर्मा के पिता भारत के और मां जर्मन थीं. 1964 में जर्मनी के हैम्बर्ग में जन्मे शर्मा को माता पिता का साथ लंबे समय तक नहीं मिला. लेकिन भारतीय विरासत आज भी उनके पास है. वे कहते हैं, "मैं सोचता और काम जर्मन में करता हूं लेकिन भावनाओं से मैं भारतीय हूं. जब भी भारत जाता हूं, बहुत अच्छा लगता है. वैसे तो मुझे भाषा बहुत अच्छे से समझ में नहीं आती, लेकिन जिस तरह से लोग बोलते हैं, अलग अलग भाषाओं में, वहां का खाना, बहुत पसंद आता है. भारत जाकर लगता है कि घर आ गया हूं." घर आ जाने की खुशी पाने के लिए ही शायद राजू शर्मा ने अपने दफ्तर में गणेश की तस्वीर लगाई है. अपनी विरासत दिल में लिए राजू शर्मा कामकाज और राजनीति में पूरे जर्मन हैं. पेशे से वकील हैं और अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से रखने में सक्षम.
स्कूल में ही वे समझ गए थे कि अगर सिस्टम में कुछ बदलाव लाना है तो सिस्टम में शामिल होना, गड़बड़ी के खिलाफ आवाज उठाना बहुत जरूरी है. छात्र जीवन में शिक्षा प्रणाली के विरोध में रैली निकालने वाले राजू शर्मा आज भी मानते हैं कि बेहतरी के लिए आवाज उठाना सबसे जरूरी है और इसी प्रेरणा के साथ वे राजनीति में आए.
प्रवासियों की चिंता
विदेशी मूल के लोगों को जर्मनी लाने के वह कट्टर समर्थक हैं, "हम सिर्फ काम के लोगों को ही देश में लाना चाहते हैं ऐसा नहीं है, हम उन सभी लोगों को भी देश में जगह देना चाहते हैं, जो पीड़ित हैं, जिन्हें अपने देश में राजनीतिक या धार्मिक कारणों से परेशान किया जा रहा है. हम देश की सीमाएं पूरी तरह से खोलना चाहते हैं. " यह पूछने पर कि पीड़ित लोगों को देश में बुला लिया और उन्हें सरकारी मदद पर निर्भर होना पड़ा तो उन्हें आर्थिक मदद के लिए धन कहां से आएगा, उन्होंने कहा, "देश में फिलहाल ऐसे भी प्रवासी हैं जो डॉक्टर हैं, वकील हैं, पढ़ाई पूरी कर चुके हैं लेकिन वे यहां काम नहीं कर सकते, क्योंकि उनकी डिग्री यहां मान्य नहीं है. वे झाड़ू पोंछा करने या कहीं किसी दुकान में छोटा मोटा काम करने को मजबूर हैं."
प्रवासियों, बेरोजगारों के लिए और कम मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाने वाली डी लिंके पार्टी के राजू शर्मा अपने स्कूल के दौर को बहुत अच्छा बताते हैं, "70 के दशक में विदेशी वैसे तो बहुत कम थे. लेकिन मैं जब स्कूल में था तो हमारी क्लास में ग्रीस, भारत सहित आठ देशों के बच्चे थे, जिनमें तुर्क भी थे लेकिन थोड़े कम. उस समय स्कूलों में सामाजिक हालात का अंतर दिखाई नहीं देता था. वे कहते हैं, हम बहुत मजा करते थे, एक दूसरे जीवन के बारे में बहुत सारी बातें हमें जानने को मिलती थीं."
सामाजिक अंतर बढ़ा
तब और अब के स्कूलों के बारे में बताते हुए शर्मा फिर डी लिंके के चुनावी एजेंडे पर आ जाते हैं, "आज स्कूलों में सामाजिक अंतर बहुत दिखाई देता है. सामाजिक तौर पर पिछड़े परिवारों के बच्चे स्कूल तो जाते हैं लेकिन उन्हें बराबरी के मौके नहीं मिल पाते क्योंकि घर पर उन्हें पढ़ाई के लिए कोई मदद नहीं मिलती. उनके मां बाप न तो खुद पढ़ा सकते हैं और न ही ज्यादा मदद के लिए पैसे दे सकते हैं. घर में ऐसे बच्चे आराम से पढ़ नहीं पाते क्योंकि उनके पास पढ़ने के लिए कोई कमरा नहीं. इस कारण से सामाजिक अंतर खत्म होने की बजाए बढ़ता रहता है."
पार्टी में काफी लोकप्रिय राजू शर्मा डी लिंके को परंपरागत रूप से वोट देने वाले कील निवासियों में तो जाने माने हैं लेकिन टीवी और अखबारों में पार्टी का चेहरा नहीं. कील में और पार्टी के स्थानीय सदस्यों में काफी लोकप्रिय राजू शर्मा 2013 में राज्य की सूची में नहीं हैं बल्कि कील से सीधे उम्मीदवार के तौर पर खड़े हो रहे हैं. इस फैसले के बारे में वे कहते हैं, "मैं कील से हमेशा ही खड़ा होना चाहता था और पार्टी और मैंने दोनों ने ये फैसला किया. हां राज्य की जहां तक बात है, मैं वहां से भी खड़ा होना चाहता था लेकिन पार्टी ने दूसरा फैसला किया. यही लोकतंत्र है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मैं डायरेक्ट कैंडिडेट के तौर पर चुनावी अभियान अच्छे से नहीं करूंगा."
भारतीय होने के नाते..
क्या अपनी त्वचा के रंग के कारण उन्हें अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ा है, इस सवाल के जवाब में शर्मा कहते हैं, "नहीं, मुझे कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा. हां वामपंथी पार्टी में होने के कारण दक्षिणपंथी नवनाजियों के गुस्से का शिकार पार्टी कार्यालय हुए हैं. और कई बार ऐसा भी होता है कि उम्मीदवारों को अपशपब्द कहे जाते हैं लेकिन वो डी लिंके में होने के कारण, सिर्फ त्वचा के रंग से नहीं. मुझे प्रत्यक्ष तौर पर इसका सामना नहीं करना पड़ा. ऐसा करने वालों में सिर्फ कट्टर दक्षिणपंथी या नवनाजी ही हैं."
छोटे कद के राजू शर्मा की एक लड़की और लड़का अपनी दिशा तलाश चुके हैं, लेकिन राजनीति में दोनों की रुचि नहीं है.
भारत के बारे में सोचने पर सबसे पहले क्या याद आता है, इसका जवाब देने में राजू शर्मा एक सेकंड भी नहीं लगाते, "वहां की सांस्कृतिक, सामाजिक विविधता. एक अरब लोगों के देश को किस तरह लोकतांत्रिक तरीके से चलाया जा रहा है, ये देखना बहुत रोचक है. बहुत बड़ी बात है. इतने बड़े लोकतंत्र में किस तरह से काम चल रहा है ये देखना मजेदार है. बहुत से नेता भले ही भ्रष्ट हों लेकिन कुल मिला कर काम तो अच्छा ही चल रहा है."
रिपोर्टः आभा मोंढे, कील (जर्मनी)
संपादनः अनवर जे अशरफ