चमगादड़ों के लिए उनकी अम्मा बन गई है यह महिला
पोलैंड में एक महिला चमगादड़ों को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए एक मां की तरह उनका ख्याल रखती हैं. ये चमगादड़ कई बार उनके कपड़ों में लिपटे हुए उनके साथ घर से बाहर भी चले जाते हैं.
"चमगादड़ों की अम्मा"
69 साल की बारबरा गोरेका को स्थानीय लोग "बैट मम" यानी चमगादड़ों की अम्मा कहने लगे हैं. नौकरी से रिटायर होने के बाद से यह पोलिश महिला अपना पूरा समय बीमार चमगादड़ों की देखभाल में बिताती हैं.
1,600 से ज्यादा चमगादड़
आवासीय इमारत की नौंवीं मंजिल पर बने अपार्टमेंट में गोरेका ने चमगादड़ों का एक तरह से अभयारण्य बना रखा है. यहां पर वो खुद भी रहती हैं और उनके मुताबिक अब तक उन्होंने 1,600 से ज्यादा चमगादड़ों की देखभाल की है.
16 सालों से चला आ रहा है सिलसिला
चमगादड़ों की देखभाल का यह सिलसिला 16 साल पहले शुरू हुआ जब उनके अपार्टमेंट के वेंटिलेशन डक्ट से चमगादड़ निकलने लगे. इस समय उनके अपार्टमेंट में करीब 3 दर्जन चमगादड़ रहते हैं जो बीमार, घायल या फिर समय से पहले हाइबरनेशन से बाहर आ गए हैं.
जलवायु परिवर्तन का असर
गोरेका का कहना है कि चमगादड़ों पर जलवायु परिवर्तन के असर और उनके घर में पलते चमगादड़ों की बढ़ती संख्या के बीच सीधा संबंध है. वैज्ञानिक भी बताते हैं कि बढ़ती रोशनी, शोर और गर्मी की वजह से चमगादड़ों का जीवन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है. उन्हें अकसर भोजन भी नहीं मिलता.
चमगादड़ों से डर नहीं लगता
गोरेका ने बताया कि पहले उन्हें भी चमगादड़ों से जुड़ी भ्रांतियों और बीमारियों का डर था. बाद में उन्होंने जीवविज्ञानियों से इस बारे में बात की और यह जान गईं कि ऐसी कोई समस्या नहीं है और इनके साथ भी रहा जा सकता है.
चमगादड़ों की देखभाल
उनके अपार्टमेंट में रहने वाले हर चमगादड़ को एक नाम मिलता है. उन्हें समय पर खाना और दवाइयां दी जाती हैं साथ ही उनकी दूसरी जरूरतों का भी ख्याल रखा जाता है. कुछ चमगादड़ उनके यहां हफ्ते दो हफ्ते रह कर वापस चले जाते हैं लेकिन जिनके शरीर में टूट फूट हुई हो या कोई और बीमारी तो वो ज्यादा समय तक उनके मेहमान बनते हैं.
चमगादड़ों के लिए वॉलंटियर
गोरेका ना सिर्फ खुद ये काम कर रही हैं बल्कि अभयारण्य के लिए दूसरे वॉलंटियरों को भी तैयार कर रही हैं. ये चमगादड़ों की देखभाल में उनकी मदद करते हैं. छोटे बच्चों तो खासतौर से इसमें काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
चमगादड़ों के बारे में जागरुकता
गोरेका इन चमगादड़ों को लेकर स्कूल में बच्चों के पास भी जाती हैं और उन्हें इनके बारे में जानकारी देती हैं. उनका मकसद है बच्चों को धरती के लिए जरूरी इन जीवों के बारे में बताना और जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे भारी नुकसान के बारे में आगाह करना.