चरमपंथियों के साथ है पाकिस्तानी सेनाः विकीलीक्स
१ दिसम्बर २०१०बुधवार को गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समीक्षा में कहा गया है कि पाकिस्तान को 2001 के बाद से अमेरिकी मदद के रूप में 16 अरब डॉलर मिले हैं, लेकिन पाकिस्तान फिर भी इन उग्रवादी गुटों का साथ छोड़ने को तैयार नहीं दिखता. सितंबर 2009 में पाकिस्तान के लिए अमेरिकी राजदूत ऐन पैटरसन ने अपनी समीक्षा में यह बात लिखी.
चरमपंथियों का साथ
विकीलीक्स की तरफ से जारी गोपनीय संदेश से पता चलता है कि अमेरिकी राजनयिक और जासूस मानते हैं कि पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई चोरी छिपे चार उग्रवादी गुटों का बराबर साथ दे रही है. इनमें अफगान तालिबान, पश्चिमी अफगान सीमा पर उसके सहयोगी हक्कानी और हिकमतयार नेटवर्क और भारत से लगने वाली पूर्वी सीमा पर लश्कर-ए-तैयबा के नाम लिए जा सकते हैं. अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भी दिसंबर 2009 में लिखा कि कुछ आईएसआई अधिकारी तालिबान, लश्कर और दूसरे चरमपंथी गुटों के साथ संपर्क बनाए हुए हैं.
गार्डियन के मुताबिक पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल अशफाक कयानी ने कहा कि कांटेदार तार लगाने के लिए 2 करोड़ 60 लाख डॉलर की मदद और तालिबान के काल्पनिक लड़ाकू विमानों को नष्ट करने के लिए मिली सात करोड़ डॉलर की रकम पाकिस्तानी सरकार की जेब में गई. अमेरिका ने पाकिस्तान के कबायली इलाकों में तालिबान और अल कायदा से लड़ने के लिए पाकिस्तान को 2002 के बाद से 7.5 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद दी है.
हल के करीब था कश्मीर मुद्दा
पैटरसन लिखती हैं कि 63 बरसों से खिंची चली रही कश्मीर समस्या को सुलझाने से स्थिति में बड़ा बदलाव आ सकता है. विकीलीक्स की तरफ से जारी दस्तावेजों के मुताबिक 2007 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने अमेरिकी कांग्रेस के नेताओं से कहा था कि कश्मीर पर बहुत जल्द ही समझौता हो जाएगा. उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान इस विवाद को सुलझाने के करीब हैं. इस्लामाबाद में हुई इस बैठक के दौरान मुशर्रफ ने कहा कि वह और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समझौते के करीब हैं और उन्होंने अप्रैल 2007 में समझौता हो जाने की उम्मीद जताई.
जारी गोपनीय अमेरिकी संदेश के मुताबिक मुशर्रफ ने सिंह के लचीलेपन और नई दिल्ली में होने वाली सार्क बैठक के लिए खुद को आमंत्रित करने के लिए भूरी भूरी तारीफ की. इसके मुताबिक, "मुशर्रफ ने भारत के सामने दो विकल्प रखे. या तो प्रधानमंत्री सिंह अप्रैल से पहले इस्लामाबाद आएं और समझौते पर हस्ताक्षर करें या फिर समझौते पर दस्तख्त सार्क की मंत्रिस्तरीय बैठक में किए जाएं."
अफगानिस्तान पर तकरार
पाकिस्तान अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को लेकर हमेशा चिंतित रहा है और इस बात को उसने हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया है. विकीलीक्स की तरफ से जारी संदेशों के मुताबिक पाकिस्तान ने भारत की तरफ से अफगानिस्तान में अपनी भूमिका पर जानकारी देने की पेशकश को सीधे सीधे खारिज कर दिया. 16 फरवरी 2009 को उस वक्त के भारतीय विदेश सचिव शिव शंकर मेनन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लिए नियुक्त अमेरिकी दूत रिचर्ड होलब्रुक को भी इस तरह का ब्यौरा देने की पेशकश की. होलब्रुक ने भारत की भूमिका की सराहना की.
भारत ने उस वक्त अमेरिकी राजदूत डेविड मलफोर्ड ने अपने राजनयिक संदेश में लिखा, "मेनन ने माना कि पाकिस्तान भारत की भूमिका को शक की नजर से देखता है और कहा कि बीते कुछ सालों में भारत ने पाकिस्तान की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है."
रिपोर्ट: एजेंसियां/ए कुमार
संपादन: महेश झा