चिकेन बेचती ममता सरकार
२८ मई २०१३इसकी पहल खुद ममता ने की है. इसके लिए राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग में ही चिकेन के पैकेट बेचे जा रहे हैं. यहां कीमत बाजार दर से काफी कम है. लेकिन विपक्ष ने इसे लोकप्रियता हासिल करने का हथकंडा करार दिया है. अंडा, मछली और चिकेन के बिना बंगाली खाना अधूरा ही समझा जाता है. हाल तक चिकेन सौ रुपए किलो बिकता था. लेकिन कुछ दिनों से इसकी कीमत लगातार बढ़ रही है और यह दो सौ रुपए तक पहुंच गया है.
मां, माटी और मानुष की सरकार चलाने वाली ममता अक्सर आम लोगों की परेशानियों को दूर करने की कोशिश में अचानक कई अजीबोगरीब फैसले लेती रही हैं. इससे आम लोगों में तो उनकी लोकप्रियता बरकरार है. लेकिन विपक्षी राजनीतिक दल उनका मजाक उड़ाते रहे हैं. मुख्यमंत्री ने चिकेन की बढ़ती कीमत पर राज्य सचिवालय में ही सरकारी अधिकारियों के साथ बैठक में नाराजगी जताई. उन्होंने महानगर कोलकाता के बाजारों में समुचित दर पर चिकेन की बिक्री के लिए दुकानें खोलने का निर्देश दिया है. राज्य सचिवालय में भी उचित मूल्य की यह दुकान खुल गई है. महानगर में फिलहाल दस जगहों पर ऐसे स्टाल खोले गए हैं.
चुनौतियां ही चुनौतियां
ममता की अगुवाई में नई सरकार ने हाल में अपने दो साल का कार्यकाल पूरा किया है. लेकिन इस दौरान उसे लगातार चुनौतियों से जूझना पड़ा है. सिंगुर से लेकर वित्तीय तंगी और जंगलमहल से लेकर पंचायत चुनावों तक उनको विपक्षी दलों की नाराजगी झेलनी पड़ी है. कभी खुल कर ममता का समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग भी उनसे दूर हुआ है. लेकिन किसी की परवाह किए बिना एकला चलो की तर्ज पर आगे बढ़ने वाली ममता ने अपने हिसाब से लोगों के हित में फैसले किए. यह अलग बात है कि लालफीताशाही और कई दूसरी वजहों से उनके फैसलों का दूरगामी असर नहीं हो सका. ममता को अपने बजट और राज्य के औद्योगिक माहौल के लिए भी आलोचना झेलनी पड़ी है.
आम लोग खुश
अब आलू-प्याज के बाद उचित दर पर चिकेन मुहैया कराने की सरकारी पहल ने आम लोगों में ममता को लोकप्रिय बना दिया है. ‘आम के आम गुठली के दाम' की तर्ज पर राज्य सचिवालय के कर्मचारियों को अब एक तो सस्ते दर पर चिकेन मिल रहा है और दूसरे उनको इसके लिए बाजार भी नहीं जाना पड़ता. एक कर्मचारी सुधीर प्रामणिक कहते हैं, "हमारा पैसा भी बच रहा है और समय भी. सरकार को खाने-पीने की तमाम चीजों की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए." एक सेवानिवृत शिक्षक धीरेन विश्वास कहते हैं, "सरकार की इस पहल से संयुक्त परिवार में हर महीने कम से कम एक हजार रुपए की बचत होगी."
खुले बाजार में महंगा
लेकिन सरकारी स्टालों के अलावा दूसरी जगहों पर यही चिकेन अब भी ऊंचे दाम पर बिक रहा है. फोरम फार ट्रेड आर्गनाइजेशन के महासचिव रवींद्रनाथ कोले कहते हैं, "विभिन्न बाजारों के चिकेन व्यापारियों के साथ बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई है. लेकिन हाल में कीमतें इतनी बढ़ी हैं कि सरकार की ओर से तय डेढ़ सौ रुपए किलो की दर पर चिकेन बेचना संभव नहीं है." आखिर कीमतों में अचानक यह वृद्धि क्यों हुई है? इस सवाल पर कोले बताते हैं कि ज्यादा मुनाफे के लालच में व्यापारियों का एक बड़ा वर्ग बिहार, झारखंड, असम और सिक्किम जैसे राज्यों को मुर्गियां बेच देता है. नतीजतन यहां बाजारों में सप्लाई घट गई है. वह कहते हैं कि मुख्यमंत्री को इसे रोकने की पहल करनी चाहिए.
अब दस दिनों बाद राज्य का प्राणि संपदा विभाग मुख्यमंत्री की पहल का असर जांचने के लिए एक बैठक करेगा. विभाग के एक अधिकारी कहते हैं कि कीमत कम रखने के लिए मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाना जरूरी है. लेकिन विपक्ष इससे नाराज है. सीपीएम के नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "राज्य फिलहाल कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है. इसलिए आलू-प्याज और मुर्गे बेचने की बजाय मुख्यमंत्री को उनकी ओर ध्यान देना चाहिए." विपक्ष की आलोचना के बावजूद आम लोग इस पहल से खुश हैं. यही वजह है कि शाम को दफ्तर का समय खत्म होते ही इन स्टालों के आगे लंबी कतार लग जाती है.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन