चीन की चुनौतियों से निपटने के लिए ब्रह्मपुत्र में सुरंग
२२ जुलाई २०२०इसके तहत हाल में जहां ब्रह्मपुत्र में असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच करीब 15 किलोमीटर लंबी सुरंग के निर्माण को हरी झंडी दिखा दी गई है. यह देश में नदी के नीचे बनने वाली सबसे लंबी सुरंग होगी. दूसरी ओर, भूटान के उस कथित विवादित इलाके में भी सड़क बनाने की तैयारी चल रही है जिस पर चीन बार-बार दावा ठोक रहा है. अब चीन ने दोबारा भूटान के पूर्वी इलाके पर दावा करते हुए समस्या के समाधान के लिए एक पैकेज पेश किया है. चीन ने भूटान के साथ जिस इलाके में सीमा विवाद उभारा है, वह अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटा है. ऐसे में यह विवाद सामरिक लिहाज से भारत के लिए अहम है. इसलिए अब पूर्वोत्तर में चीनी चुनौती से निपटने की तैयारियां शुरू हो गई हैं.
ब्रह्मपुत्र के नीचे बनेगी सुरंग
दुनिया की शीर्ष दस लंबी नदियों में शामिल ब्रह्मपुत्र सामरिक और रणनीतिक नजरिए से काफी अहम है. यह नदी असम और अरुणाचल प्रदेश को अलग करती है. अरुणाचल प्रदेश की लंबी सीमा तिब्बत से सटी है और वहां आए दिन तनातनी की खबरें मिलती रहती हैं. इलाके में बड़े पैमाने पर तैनात सेना के जवानों को ब्रह्मपुत्र पार कर ही सीमा पर जाना होता है. ऐसे में ब्रह्मपुत्र पर बने पांच पुलों की भूमिका काफी अहम है. लेकिन गलवान घाटी में चीन के तेवरों से सबक लेते हुए अब सरकार ने ब्रह्मपुत्र के नीचे 14.85 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने को सैद्धातिंक तौर पर मंजूरी दे दी है. इस सुरंग में चार लेन वाली सड़क से होकर सेना के जवानों के अलावा आम लोग भी 70-80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से अरुणाचल पहुंच सकेंगे. यह सुरंग असम के नुमलीगढ़ को गोहपुर से जोड़गी.
दरअसल, सरकार की सोच है कि तनातनी बढ़ने या युद्ध जैसे हालात पैदा होने पर चीन की कोशिश ब्रह्मपुत्र पर बने पुलों को ध्वस्त कर असम और अरुणाचल को देश के बाकी हिस्सो से काटने की होगी. इस खतरे से निपटने के लिए ही सरकार ने सुरंग के निर्माण को हरी झंडी दिखाई है. ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे नेशनल हाइवे 54 से नेशनल हाइवे 37 को जोड़ने वाली इस सुरंग के बन जाने पर अरुणाचल और सीमावर्ती इलाकों तक आवाजाही आसान हो जाएगी.
इस सुरंग का निर्माण कार्य इस साल दिसंबर में शुरू होने की उम्मीद है. नेशनल हाइवेज एंड इफ्रांस्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) का कहना है कि ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे बनने वाली सुरंग में दो अलग ट्यूब रहेंगे, जिससे दोनों ओर से ट्रैफिक का बिना किसी बाधा के संचालन हो सकेगा. इस सुरंग के जरिए अरुणाचल प्रदेश से लगने वाली सीमा तक सेना वाहन, रसद और सामरिक चीजों की सप्लाई की जा सकेगी. सुरंग में ट्रैफिक की औसतन गति 70 से 80 किलोमीटर प्रति घंटे तक होगी.
नदी के भीतर सड़क
अमेरिकी कंपनी लुईस बर्जर ने सुरंग के लिए प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार कर ली है. चीन ने भी जियांग्सू प्रांत में ताईहू झील के नीचे 10.79 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई है. ब्रह्मपुत्र के नीचे प्रस्तावित सुरंग की मदद से असम और अरुणाचल प्रदेश पूरे वर्ष आपस में जुड़े रह सकेंगे. दुर्गम पहाड़ी रास्ता होने की वजह से खासकर मॉनसून के सीजन में जमीन धंसने की वजह से सीमा तक आवाजाही करने में सुरक्षा बलों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. लेकिन सुरंग तैयार हो जाने के बाद यह मुश्किल खत्म हो जाएगी.
एनएचआईडीसीएल के एक अधिकारी बताते हैं, "इस सुरंग का निर्माण दिसंबर में शुरू होगा और इसे तीन चरणों में तैयार किया जाएगा. यह करीब 14.85 किलोमीटर लंबी होगी. इसे डिजाइन करने में सुरक्षा के कड़े मानकों का ध्यान रखते हुए आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा ताकि किसी भी प्रकार से पानी इसके अंदर न जा सके. इसके साथ ही भीतर ताजा हवा की व्यवस्था भी की जाएगी."
ध्यान रहे कि तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रह्मपुत्र नदी पर ही बने ढोला-सदिया पुल का उद्घाटन किया था. नौ किलोमीटर लंबा यह पुल भी असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ता है. इसकी वजह से असम की राजधानी गुवाहाटी से अरुणाचल की राजधानी इटानगर के बीच की दूरी 165 किलोमीटर तक कम हो गई है. लगभग 950 करोड़ की लागत से बना यह पुल भारत-चीन सीमा से महज सौ किमी दूर है.
भूटानी इलाके पर चीनी दावा
इसबीच, चीन ने भूटान में अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे साकटेंग वन्यजीव अभयारण्य पर अपने दावे का बचाव करते हुए सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 'पैकेज समाधान' पेश किया है. हालांकि उसने यह साफ नहीं किया है कि उसके पैकेज में क्या है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा है कि दोनों देशों के बीच अभी सीमा तय नहीं हुई है. इसलिए चीन सरकार ने सीमा विवाद को स्थायी रूप से हल करने के लिए लिए 'पैकेज समाधान' का प्रस्ताव पेश किया है. भारत का नाम लिए बिना उनका कहना था कि चीन इस मुद्दे को बहुपक्षीय पर मंचों उठाने के खिलाफ है.
लेकिन दूसरी ओर, भूटान ने पहले की तरह ही चीन के इस दावे को एक बार फिर से खारिज कर दिया है. भूटान सरकार की दलील है कि साकटेंग वन्यजीव अभयारण्य शुरू से ही भूटान का अभिन्न अंग रहा है. भूटान के साथ चीन के ताजा सीमा विवाद की शुरुआत बीते महीने उस समय हुई थी, जब चीन ने ग्लोबल एनवायरनमेंट फेसिलिटी काउंसिल (जीईएफसी) की बैठक में भूटान के पूर्वी इलाके में स्थित साकटेंग वन्यजीव अभयारण्य परियोजना के लिए धन के आवंटन पर यह कह कर आपत्ति जताई थी कि वह विवादित क्षेत्र है. तब भी भूटान ने इसका कड़ा विरोध किया था. उसके बाद एक बार फिर चीन ने उस विवादित क्षेत्र पर अपना दावा किया है.
सेना को होगी सुविधा
भारत के लिए चिंता की बात यह है कि भूटान के पूर्वी क्षेत्र में ट्रासीगांग जिले में 650 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैली उक्त वन्यजीव अभयारण्य की सीमा अरुणाचल प्रदेश से सटी है. चीन ने अरुणाचल को वर्ष 2014 में अपने नक्शे में दिखाया था. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चीन का मकसद अरुणाचल के मुद्दे पर भारत पर दबाव बढ़ाना है. इसकी वजह यह है कि पूर्वी क्षेत्र में भूटान के साथ उसका कभी कोई सीमा विवाद था ही नहीं. चीन के प्रयास का मुंहतोड़ जवाब देने के मकसद से भारत ने भूटान के ट्रासीगांग जिले में स्थित साकटेंग वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी से होकर असम और अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग को जोड़ने के लिए सड़क बनाने की योजना बनाई है.
बॉर्डर रोड्स आर्गानाइजेशन (बीआरओ) की यह परियोजना सामरिक रूप से बेहद अहम है. इसके तैयार हो जाने पर असम की राजधानी गुवाहाटी और तावांग के बीच की दूरी लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर कम हो जाएगी. इसके जरिए भारतीय फौज आसानी से चीन से लगी सीमा तक पहुंच सकती है. फिलहाल कोई वैकल्पिक रूट नहीं होने के कारण भारतीय जवानों को असम से तवांग जाने के लिए सेला दर्रे से होकर गुजरना पड़ता है. जाड़े के दिनो में भारी बर्फबारी की वजह से इस सड़क पर आवाजाही बेहद मुश्किल हो जाती है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत पर दबाव बनाने के लिए ही चीन ऐसे तमाम मुद्दे उठा रहा है. लेकिन अब ब्रह्मपुत्र में लंबी सुरंग बनाने की महात्वाकांक्षी योजना का एलान कर भारत सरकार ने भी अपने इरादे जता दिए हैं.
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