चीन की दुकान बंद अब कहां जाएगा कबाड़ कचरा
१९ जनवरी २०१८दूसरे देशों के मुकाबले चीन खतरनाक स्मॉग, जहरीली मिट्टी और गंदी नदियों से नुकसान का कहीं ज्यादा बड़ा संकट झेल रहा है. हालांकि इसके बाद भी पर्यावरणवादी पीपुल्स रिपब्लिक की तारीफ कर रहे हैं. इसकी एक खास वजह है. नये साल के साथ ही चीन ने विदेशों से आने वाले कचरे और कबाड़ के आयात पर पूरी तरह से पाबंदी लगा कर एक अच्छी शुरुआत की है. 1 जनवरी से चीन में रिसाइकिल के लिए आने वाला प्लास्टिक और 20 दूसरी तरह की चीजों पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई.
पर्यावरण के लिए काम करने वाले संगठन ग्रीनपीस ने इसे "जागने की घंटी (वेक अप कॉल)" कहा है क्योंकि इसका साफ मतलब है कि बड़े बड़े जहाजों से अपना कचरा कबाड़ चीन भेजने वाले पश्चिमी देशों के निश्चिंत रहने के दिन खत्म हुए. लंबे समय से यह दोनों देशों के लिए यह फायदे का सौदा था. पश्चिम इसके जरिए कचरे से छुटकारा पाता था तो चीनी कंपनियां उन कबाड़ों में से कीमती चीजें निकाल कर मुनाफा कमाती थीं. चीन के सभी इलाकों ने इन कचरों से कमाई की है लेकिन अब दुनिया में कचरे के सबसे बड़े आयातक देश ने अपने पर्यावरण और लोगों के सेहत के बारे में सोचने का फैसला किया है. विश्व व्यापार संगठन में अपने फैसले की जानकारी देते हुए चीन ने कहा कि यह कबाड़ और कचरा बहुत ज्यादा खतरनाक है.
हालांकि चीन का रुख पलटने के पीछे कुछ और भी वजह हो सकती है. 2016 में चीन ने कुल 73 लाख टन प्लास्टिक कचरा आयात किया जिसकी कीमत थी 3.7 अरब डॉलर. यह दुनिया भर के प्लास्टिक कचरे का आधे से ज्यादा हिस्सा है लेकिन चीन अपने देश में ही इतना कचरा पैदा कर रहा है कि उसके लिए संभालना मुश्किल हो गया है. पिछले साल चीन में घरों से निकलने वाला कचरा करीब 20 करोड़ टन था.
चीन के आयात रोकने से जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों पर काफी असर पड़ेगा. जर्मनी की संघीय पर्यावरण एजेंसी यूबीए हर साल 5 लाख 60 हजार टन प्लास्टिक कचरा निर्यात करती थी. यह देश में पैदा होने वाले कुछ प्लास्टिक कचरे का महज 9.5 फीसदी है. फेडरेशन ऑफ सेकेंडरी रॉ मैटेरियल एंड डिस्पोजल से जुड़े योर्ग लाचर ने कहा, "हमें मुश्किल होगी लेकिन ऐसा नहीं होगा कि लोगों को कचरे के ढेर पर बैठना पड़ेगा." हाल के दिनों तक रिसाइकिल करने वाली कंपनियों को अपना सामान खरीदना पड़ता था. इसी बीच कुछ कंपनियों ने जर्मनी में कचरे की छंटाई करने वाली कंपनियों से कचरा को निबटाने के लिए पैसे लेना भी शुरू कर दिया था. लाचर का कहना है, "यह चलन आने वाले दिनों में साफ है कि मजबूत होगा."
जर्मनी में कूड़ा उठाने वाली विख्यात कंपनी ग्रुनर पुंक्ट ने इसके उलट कहा है कि चीन के फैसले से उस पर कोई असर नहीं होगा. कंपनी का कहना है कि रिसाइकिल की जाने वाली चीजों का जर्मनी में और दूसरी जगहों पर भी इस्तेमाल होता है. कंपनी का कहना है कि उनके अपने रिसाइकिल संयंत्र का विस्तार होगा. हालांकि ग्रुनर पुंक्ट के प्रवक्ता ने यह नहीं कहा कि इसकी वजह से कीमतों पर दबाव बढ़ेगा और ग्राहकों को इसका खमियाजा उठाना पड़ सकता है. जैसे कि दही पैक करने वाले प्लास्टिक कप को रिसाइकिल करने का खर्च एक यूरो तक आ सकता है. प्लास्टिक को सीधे तौर पर जला देना ही उपाय नहीं है.
चीन को निर्यात किए जाने वाले प्लास्टिक को रिसाइकिल के लिए भेजा गया कहा जाता था क्योंकि वहां प्रमाणिक रूप से रिसाइक्लिंग प्लांट हैं. पर्यावरणविद इस दिन का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे. बर्लिन में यूपीए से जुड़ीं एवेलिन हैगेनाह का कहना है, "इसका मतलब है कि जर्मनी में सिंथेटिक वेस्ट की छंटाई के साथ ही रिसाइकिल किए गए सामानों के ज्यादा इस्तेमाल के लिए ज्यादा प्रोत्साहन देना होगा." इसके साथ ही उद्योगों को अब कुछ ज्यादा करना होगा. चीन के आयात का मतलब है कि बाजार में भारी फेरबदल होगा. कचरे का निपटारा करने के लिए अब कई जगहों पर काम शुरू होगा और इनके बीच इस काम के लिए प्रतियोगिता भी. भविष्य में पर्यावरण को भी इससे फायदा होगा क्योंकि लोग ज्यादा से ज्यादा उन चीजों के इस्तेमाल को विवश होंगे जिन्हें रिसाइकिल किया जा सकता है.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)