चीन को चुनौती देने अफ्रीका में जापान
६ जून २०१३पांच सालों में दूसरी बार जापान अपनी विदेश नीति का ध्यान अफ्रीका की ओर ले जाता दिखा है. पिछले हफ्ते टोक्यो इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन अफ्रीकन डेवलपमेंट के दौरान प्रधानमंत्री ने अफ्रीकी नेताओं को करीब 32 अरब डॉलर की सहायता का वचन दिया. यह सहायता सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को मिलाकर होगी जो इस महादेश के विकास में मदद के लिए होगी. इसके साथ ही अगले पांच सालों में जापानी कंपनियों को अफ्रीकी देशों में निवेश के लिए बढ़ावा दिया जाएगा.
मदद का जब एलान हुआ तो वहां 51 अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों के साथ संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक के प्रतिनिधि भी मौजूद थे. इनमें 14 अरब डॉलर आधिकारिक विकास सहायता होगी जबकि 6.5 अरब डॉलर की मदद बुनियादी ढांचे के विकास के लिए दी जाएगी. योकोहामा में शिंजो आबे ने कहा, "अफ्रीका को निजी क्षेत्र में निवेश की जरूरत है." इसके साथ ही आबे ने यह भी कहा कि सार्वजनिक संस्थाओं और निजी कंपनियों के बीच सहयोग से इस तरह का निवेश हासिल हो सकता है.
पिछले कुछ सालों से जापान अपने पड़ोसी चीन की अफ्रीका में बढ़ती मौजूदगी को चुनौती देने की कोशिश में लगा हुआ है. पिछली बार जब यही सम्मेलन हुआ था तब जापान के प्रधानमंत्री रहे यासुओ फुकुदा ने भी इस महादेश को दी जाने वाली सहायता दुगुनी करने का एलान किया था. हालांकि अफ्रीका के साथ जापान के लंबे दौर से चले आ रहे रिश्तों के बावजूद चीन अपने भारी निवेश के दम पर यहां गहरी पैठ बनाने में कामयाब रहा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक अफ्रीकी महादेश में चीन का कारोबार पिछले साल 138.6 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया जो जापान और अफ्रीका के बीच हुए 30 अरब डॉलर के कारोबार से करीब चार गुने से भी ज्यादा है.
चीन के साथ कूटनीतिक संघर्ष
चीन की यह रणनीति उसके लिए राजनीतिक रूप से भी काफी फायदेमंद रही है. इसकी बदौलत संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में उसकी स्थिति काफी सुविधाजनक हो गई है जबकि जापान अभी सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए ही संघर्ष कर रहा है. दोनों देशों के बीच कुछ द्वीपों को लेकर जो मौजूदा विवाद है उस पर भी इसका असर हो सकता है.
जाहिर है कि जापान ने अफ्रीका को सहायता के लिए जो वचन दिया है उसके कई पहलू हैं. इनमें सबसे पहला तो यह है कि जापान अफ्रीका के विशाल संसाधनों तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है. साथ ही इस महादेश में चीन के राजनीतिक असर को भी चुनौती देना चाहता है. इसके साथ ही सहायता में दी जाने वाली रकम वहां मिलने वाले ठेकों और निर्यात की मांग के रूप में उसे वापस आने की उम्मीद है. जापान का दावा है कि वह अफ्रीका के साथ अपने रिश्तों को बदल कर दान देने और लेने वाले की बजाय कारोबारी रूप में ढाल देगा.
आसान नहीं सहायता
सहायता का एलान करते समय जापान ने बहुत सारी लुभावनी बातें कही हैं, लेकिन सब कुछ इतना आसान भी नहीं होगा. जापान की सहायता मिलनी तब शुरू होगी जब अफ्रीकी देश जापानी कंपनियों को निर्माण के ठेके देने शुरू करेंगे. सड़क, रेल लाइन, बांध और बिजलीघरों को बनाने के इन ठेकों में सिर्फ चीन और जापान की ही नहीं दूसरे देशों की भी खासी दिलचस्पी है, जिनमें भारत भी है. बीते सालों में भारत ने भी बहुत तेजी से अफ्रीकी देशों में अपना निवेश बढ़ाया है.
भारत और अफ्रीका के बीच कारोबार 2010-11 में 53.3 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर 2011-12 में 62 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है. 2015 तक इसके 90 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है. अफ्रीका के लिए भारत उसका चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है जबकि भारत के लिए अफ्रीका छठा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है.
सालों से उपेक्षित अफ्रीका
पांच साल पहले जापान ने भारी मदद का वचन दिया था, इसके बावजूद अफ्रीकी महादेश में उसकी मौजूदगी आज कम ही नजर आती है. पैनासोनिक जैसी मुट्ठी भर कुछ बेहद बड़ी कंपनियों ने ही मौके का फायदा उठा कर वहां पहले से मौजूद चीनी और कोरियाई कंपनियों को चुनौती देना शुरू किया है. जापान से अफ्रीका के रिश्तों में पहले एचआईवी, गरीबी, जंग और भ्रष्टाचार जैसे गहरे रंग ही नजर आते रहे हैं.
रिपोर्टः मार्टिन फ्रित्स/एन आर
संपादनः महेश झा