चीन को निशाने पर रख एशियाई देशों से अमेरिका का नया समझौता
२३ मई २०२२एशिया के दौरे पर आये अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 12 देशों के साथ नए कारोबारी समझौते का एलान किया है. बाइडेन का दावा है कि इस समझौते की मदद से अमेरिका एशियाई देशों के साथ सप्लाई चेन, डिजिटल ट्रेड, स्वच्छ ऊर्जा और भ्रष्टाचार रोकने की कोशिशों में ज्यादा निकटता से काम कर सकेगा.
इस समझौते को इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क नाम दिया गया है. समझौते में अमेरिका के साथ ऑस्ट्रेलिया, भारत, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वितयनाम शामिल हैं.
अमेरिका के साथ इन देशों की दुनिया की कुल जीडीपी में 40 फीसदी की हिस्सेदारी है. इन देशों ने संयुक्त बयान में कहा है कि कोरोना वायरस की महामारी और यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद मची उठापटक के बाद यह समझौता सामूहिक रूप से "हमारी अर्थव्यवस्थाओं को भविष्य के लिए तैयार" करने में मदद करेगा. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी क्वाड की बैठक के लिए टोक्यो में हैं.
नया समझौते कैसा है?
आलोचकों का कहना है कि इस फ्रेमवर्क में कुछ खुली हुई कमिया हैं. यह संभावित साझेदारों को शुल्क में छूट या फिर अमेरिकी बाजारों तक ज्यादा पहुंच जैसे किसी प्रोत्साहन का प्रस्ताव नहीं दे रहा है. इन सीमाओं की वजह से अमेरिकी फ्रेमवर्क प्रशांत पार साझेदारी (टीपीपी) का आकर्षक विकल्प मुहैया नहीं करा रहा. अमेरिका के बाहर निकलने के बाद भी इन देशों की साझेदारी आगे बढ़ रही है. अमेरिकी के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने टीपीपी समझौते से बाहर निकलने का फैसला किया था.
मलाया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर राहुल मिश्र का कहना है, "मोटे तौर पर आईपीईएफ बदले समय की तस्वीर है." डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह दिखाता है कि घरेलू परिस्थितियों ने अमेरिकी विदेश नीति के विकल्पों को कितना सीमित कर दिया है. भले ही आईपीईएफ की शुरुआत अब की प्रगति में एक ठोस कदम है और ऐसा लगता है कि पर्दे के पीछे बातचीत अभी जारी है. हालांकि फिर भी इस कवायद में जो देश शामिल हैं उन्हें इस बारे में बहुत ज्यादा सोच विचार करना होगा." दिलचस्प यह है कि भारत इन देशों में अकेला ऐसा देश है जिसने सार्वजनिक रूप से इस बारे में कोई बात नहीं की है.
निशाना चीन पर
वैसे कुछ जानकारों का मानना है कि यह समझौता टीपीपी का विकल्प नहीं है क्योंकि यह कारोबारी समझौता नहीं, बल्कि आर्थिक नीतियों का ढांचा है. राहुल मिश्र कहते हैं, "यह कारोबार और उनमें भ्रष्टाचार को रोकने के साथ ही सतत विकास के मुद्दों और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के तरीकों को बढ़ावा देने के लिए है. निश्चित रूप से इसका लक्ष्य चीन की अनैतिक कारोबारी और निवेश नीतियां हैं जो बेल्ट एंड रोड परियोजना में भी नजर आती रही हैं."
वैसे तो क्वाड का जन्म ही इलाके में चीन के बढ़ते दबदबे को चुनौती देने के लिए हुआ है लेकिन जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति ने बयान दिये हैं उनके बाद इस संगठन और उसके मंसूबों को लेकर किसी तरह के संदेह की कोई गुंजाइश नहीं बचती.
ताइवान पर तूतू मैंमैं
सोमवार को जो राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वो ताइवान की रक्षा के लिए ताकत का इस्तेमाल करना चाहेंगे. राष्ट्रपति के रूप में पहली जापान यात्रा पर आये बाइडेन ने जिस तरह से बयान दिये हैं, उन्हें ताइवान पर अब तक रही तथाकथित रणनीतिक अस्पष्टता की नीति से बदलाव का संकेत माना जा रहा है.
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एक रिपोर्टर ने जब बाइडेन से पूछा कि क्या चीन के ताइवान पर हमला करने की स्थिति में अमेरिका उसकी रक्षा करेगा, तो बाइडेन ने कहा, "हां, हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं. हमने वन चायना नीति पर सहमति जताई है. हमने इस पर और इसके साथ हुई सहमतियों पर दस्तखत किये हैं. लेकिन यह विचार कि इसे ताकत के जरिये हासिल किया जा सकता है, यह बिल्कुल भी उचित नहीं है."
चीन लोकतांत्रिक ताइवान को "वन चायना" नीति के तहत अपना क्षेत्र मानता है और उसका कहना है कि अमेरिका के साथ रिश्ते उसके रिश्ते में यह सबसे संवदेनशील और अहम मुद्दा है.
चीन ने बाइडेन के बयान पर कड़ी चेतावनी जारी की है. चीन के सरकारी टीवी चैनल सीसीटीवी के मुताबिक चीनी विदेश मंत्री ने राष्ट्रपति बाइडेन के बयान पर "कड़ा असंतोष" जताया है. चीनी विदेश मंत्री का कहना है कि चीन के पास संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के अहम हितों के मुद्दे पर कोई "समझौता या रहम" करने की गुंजाइश नहीं है. सीसीटीवी के मुताबिक विदेश मंत्री यी ने यह भी कहा है, "किसी को भी चीनी लोगों के मजबूत इरादों, दृढ़ इच्छाशक्ति और ताकतवर क्षमताओं को कम करके नहीं देखना चाहिये."
चीन क्वाड को लेकर भी अमेरिका और इसमें शामिल बाकी देशों की आलोचना करता रहा है. ताजा बैठक के मौके पर भी उसने दोहराया है कि यह संगठन अपने इरादों में नाकाम हो कर रहेगा.
रिपोर्टः निखिल रंजन (एपी)