चीन चेहरा पहचानने वाली तकनीक को क्यों दे रहा है बढ़ावा
२ दिसम्बर २०१९सरकार का कहना है कि नए नियम का उद्देश्य धोखाधड़ी को रोकना है. इस नियम की घोषणा पहली बार सितंबर महीने में की गई थी. इस नियम से चीन के लाखों लोग अब चेहरा पहचानने वाली तकनीक के दायरे में आ जाएंगे. उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि टेलिकॉम कंपनियों को कौन सी कंपनी यह सुविधा प्रदान करेगी. लेकिन मेगवी और सेंस टाइम सहित चीन में कई बड़ी कंपनिया हैं जिनके पास चेहरा पहचानने का सॉफ्टवेयर है.
सरकार के नए नियम लागू होने के बाद लोगों को नया मोबाइल फोन कनेक्शन देने से पहले टेलिकॉम ऑपरेटर ग्राहक की पहचान के अन्य तरीकों के साथ ही चेहरा पहचानने की तकनीक का भी इस्तेमाल करेंगे. चीन में तीन बड़े टेलिकॉम ऑपरेटर हैं. इनमें एक सरकारी कंपनी चाइना टेलिकॉम, दूसरी चाइना यूनिकॉम और तीसरी चाइना मोबाइल है. हालांकि यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि वर्तमान ग्राहकों के ऊपर इस नियम को कैसे लागू किया जाएगा.
चीन में और कहां हो रहा इस तकनीक का इस्तेमाल
सुपरमार्केट, सब-वे सिस्टम और एयरपोर्ट पर पहले से ही चेहरा पहचानने वाली तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा अपने हेमा सुपरमार्केट की चेन में ग्राहकों को चेहरे से पहचान करा कर भुगतान करने का विकल्प देती है. साथ ही हांगजू शहर में स्थित अपने होटल में कंपनी आने वाले लोगों को स्मार्टफोन के माध्यम से एडवांस चेक-इन की सुविधा देती है.
चीन के कई बड़े शहरों में मेट्रो सिस्टम संचालित करने वाली कंपनी ने भी यह घोषणा की है कि वह चेहरा पहचानने की तकनीक का इस्तेमाल करेगी. चीन के सरकारी अखबार चाइना डेली ने कहा है कि इस तकनीक के माध्यम से ही विभिन्न सुरक्षा जांचों के लिए यात्रियों को वर्गीकृत किया जाएगा. जुलाई महीने में चिन्हुआ न्यूज एजेंसी ने कहा था कि चीन ने 59 रेंटल हाउसिंग कम्युनिटी के प्रवेश द्वार पर चेहरा पहचानने वाले कैमरे या तो लगा दिए गए हैं या फिर लगाए जाने की प्रक्रिया में है. वहीं पश्चिमी प्रांत शिनचियांग में भी उइगुर अल्पसंख्यकों पर नजर रखने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया. चीन की पुलिस भी हाई टेक सर्विलांस गैजेट्स जैसे चेहरा पहचानने वाले चश्मे से लैस रहती है.
निगरानी तकनीक का विरोध
चीन के इस निगरानी तकनीक का थोड़ा विरोध हुआ है. लेकिन वाइबो जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ज्यादातर लोगों ने अपनी पहचान अज्ञात रखते हुए ही बहस की. कुछ यूजर्स ने तर्क दिया कि धोखाधड़ी से निपटने के लिए यह जरूरी है लेकिन कई अन्य ने निजी डाटा और निजता को लेकर इसके खिलाफ चिंता जाहिर की है.
विश्वविद्यालय के एक व्याख्याता द्वारा विरोध का एक बड़ा मामला सामने आया. दरअसल हांगजू शहर के वन्यजीव पार्क में जाने के लिए पहले फिंगर प्रिंट लिया जाता था लेकिन बाद में इसे चेहरा पहचानने वाले कैमरे से बदल दिया गया था. यह मामला बीते नवंबर महीने का है. चीन के दक्षिण क्षेत्र में स्थित के दैनिक समाचार पत्र के अनुसार इस व्याख्याता ने कहा कि वे अपनी पहचान चोरी होने को लेकर चिंतिंत है. इसके बाद उन्होंने पार्क से अपने पैसे वापस मांगे. लेकिन जब पार्क ने उनके आग्रह को मानने से इनकार कर दिया तो उन्होंने एक मुकदमा दायर किया.
म्यांमार से अर्जेंटीना तक के देशों ने "स्मार्ट सिटी" बनाने की योजना के तहत चीन की जेडटीई कॉर्प और हुआवे टेक्नोलॉजी से निगरानी तकनीक खरीदी है. हालांकि चीन द्वारा अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के ऊपर निगरानी रखने में मदद करने के आरोप में अमेरिका ने मेगवी और सेंस टाइम के ऊपर कार्रवाई की है. अमेरिका ने अक्टूबर में अपने देश की कंपनियों के इन चीनी कंपनियों के साथ व्यापार करने पर रोक लगा दी.
क्या हो सकता है चीन का अगला कदम
चीन सड़क पर नियम तोड़ने वालों को पकड़ने के लिए इस तकनीक का परीक्षण कर रहा है. चीन ने यह भी घोषणा की है कि वह अपने देश में होने वाली राष्ट्रीय परीक्षाओं में भी छात्रों के पंजीकरण के दौरान इस तकनीक का इस्तेमाल करेगा. इन सब मामलों के लिए एक नया नियम बनाने की भी बात कही गई है. पीपुल्स डेली ने शनिवार को एक जांच की बात कही है. अखबार ने कहा है कि उसके एक रिपोर्टर ने पाया था कि फेस डाटा इंटरनेट पर बिक्री के लिए पाया जा सकता है. इसमें पांच हजार चेहरों का डाटा सिर्फ 10 युआन में देने की बात कही गई है.
पिछले सप्ताह चीन के इंटरनेट नियामक ने डीपफेट तकनीक के इस्तेमाल को नियंत्रित करने वाले नए नियमों की घोषणा की. इस तकनीक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते हुए किसी वीडियो में बदलाव कर दिया जाता है. इसमें कोई व्यक्ति ऐसा करते या बोलते हुए दिखता है जो उसने किया ही नहीं है.
आरआर/आरपी (रॉयटर्स)
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