भारत-चीन अर्थव्यवस्थाओं को "जबरन अलग करने" पर चेतावनी
३१ जुलाई २०२०यह बात भारत में चीन के राजदूत सुन वेडोंग ने नई दिल्ली में एक निजी संस्थान द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में दिए गए अपने भाषण में कही. वेडोंग ने कहा कि "भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे में गुथी हुईं और एक दूसरे पर आश्रित हैं" और इन दोनों को "जबरन अलग करने से सबका नुकसान ही होगा." उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि भारत ने हाल ही में चीन से आने वाले गाड़ियों के पुर्जों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिए थे लेकिन अब इस वजह से भारत में जर्मन ऑटो कंपनियों के उत्पादन पर असर पड़ा है.
उन्होंने कहा कि ये पूरी तरह से दर्शाता है कि इस तरह के कदम ना सिर्फ बाजार संबंधी कानून और डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन करते हैं बल्कि ये इस तरह के कदम उठाने वालों के लिए, दूसरों के लिए और सारी दुनिया के लिए हानिकारक होते हैं. वेडोंग ने यह भी कहा कि दोनों देशों के रिश्ते एक तराशे हुए शीशे के टुकड़े की तरह हैं और मौजूदा हालात में थोड़ी सी भी लापरवाही की वजह से यह शीशा टूट सकता है.
दोनों देशों के ऐतिहासिक रिश्तों पर जोर देते हुए, चीनी राजदूत ने यह भी कहा कि चीन भारत के लिए "सामरिक खतरा" नहीं है और "हम दोनों देश एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते, इस ढांचे में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है." पिछले कुछ दिनों में भारत ने विदेशी कंपनियों के भारत में कारोबार से संबंधित ऐसे कई कदम उठाए हैं जिनका असर भारत और चीन के आर्थिक रिश्तों पर पड़ा है.
इनमें से अधिकतर कदम 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुई मुठभेड़ के बाद उठाए गए थे, जिसमें भारतीय सेना के एक कर्नल सहित 20 सिपाही मारे गए थे. उसके एक महीने पहले से चीनी सेना के वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर कई जगहों पर भारत के इलाके में घुस आने की खबरें आ रही थी. गलवान प्रकरण के बाद भारत ने भी इलाके में भारी संख्या में सैनिक और सैन्य उपकरण तैनात कर दिए. आज भी दोनों सेनाएं एक दूसरे के सामने तनी हुई हैं.
दोनों सेनाओं के बीच वार्ता के कई दौर भी हो चुके हैं लेकिन अभी तक स्थिति का निराकरण नहीं हुआ है. चीन ने हाल ही में कहा था कि दोनों सेनाएं एक दूसरे से अलग हो गई हैं, लेकिन भारत का कहना है कि ऐसा अभी नहीं हुआ है और इस मामले में अभी सिर्फ थोड़ी सी तरक्की हासिल हुई है.
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