चीन में कोरोना विस्फोट से भारत कितना चिंतित
६ जनवरी २०२३भारत चीन में कोविड 19 की असाधारण लहर को मॉनीटर कर रहा है और वायरस के संभावित नये हमले को रोकने के लिए बढ़ी हुई सक्रियता से आकस्मिक उपाय कर रहा है. कई राज्यों ने अपने यहां सुरक्षा एडवाइजरी जारी कर दी हैं. लोगों से मास्क पहनने और संक्रमण से बचे रहने के लिए सावधानी बरतने को कहा गया है.
पिछले साल के शुरू में, कोविड मामलों में गिरावट आने के बाद भारत ने कोविड 19 प्रतिबंधों में ढील दे दी थी. अधिकांश लोगों ने खुले में मास्क लगाना भी छोड़ दिया था. लेकिन पिछले सप्ताह अधिकारियों ने देश के बहुत से स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों पर मॉक ड्रिल कर तैयारियों का जायजा लिया.
कोविड को लेकर भारत सचेत
इस बीच वायरस चीन में तेजी से फैलता जा रहा है. वहां जीरो-कोविड नीति को अब वापस ले लिया गया है. इस कदम के बाद ऐसी आबादी में कोरोना के मामले बढ़ गए और मौतों की संख्या भी, जिनमें मामूली स्वाभाविक इम्युनिटी है और जिन्हें बूस्टर वैक्सीन भी नहीं लगा है. बीमारी के फैलाव पर नजर रख रहे जानकारों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में हजारों मौतें हो सकती हैं.
इधर भारत में जारी ताजा एडवाइजरी में, हवाई अड्डों और सीमा चौकियों पर निगरानी और मुस्तैदी बढ़ाने और नये वेरियंटों की शिनाख्त के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग पर जोर देने को कहा गया है. चीन और पांच अन्य देशों से आने वाले यात्रियों का रैंडम परीक्षण अनिवार्य कर दिया गया है. दो फीसदी अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की रैंडम सैंपलिग भी की जा रही है. रोग प्रतिरोधण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के कोविड 19 कार्यदल के चेयरमैन एनके अरोड़ा ने डीडब्ल्यू को बताया, "वायरस के नये वेरियंटों की शुरुआती शिनाख्त और उनकी रोकथाम जैसे प्रमुख निगरानी उपायों पर सरकार का विशेष ध्यान है."
टीके और बूस्टर पर भरोसा
भारत की 90 फीसदी से अधिक वयस्क आबादी को पिछले साल जुलाई में टीके की दोनों खुराकें मिल चुकी हैं. इसके अलावा एक तिहाई बालिगों को बूस्टर टीका भी लग गया है और आबादी का एक विशाल प्रतिशत स्वाभाविक रूप से संक्रमित भी हो चुका है. जानकारों का कहना है कि भारत में 2021 की दूसरी लहर के दौरान जैसा देखा गया था, उसके विपरीत कोरोना के मौजूदा वेरियंटों से, देश में बड़े पैमाने पर मौतें होने की आशंका बहुत कम है. हालांकि पिछले दो साल में वायरस काफी बदला है और उसमें म्युटेशन देखे गए हैं. लिहाजा आगे भी म्युटेशनों के पनपने की आशंका को लेकर अधिकारी सतर्क हैं और संसाधन झोंके जा रहे हैं. कई वायरस विशेषज्ञों की निगाह, ज्यादा संक्रमण वाले अन्य सबवेरियंटों के अलावा एक्सबीबी.1.5 और बीएफ.7 पर भी है.
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में एपिडेमियोलॉजिस्ट गिरधर बाबू ने डीडब्ल्यू को बताया, "एक्सबीबी और बीएफ.7 मामलों की शिनाख्त के बावजूद अस्पतालों में मरीजों की संख्या नहीं बढ़ी है. ये इस बात का संकेत है कि भारतीयों में हाइब्रिड इम्युनिटी यानी टीके के साथ साथ संक्रमण भी होने की वजह से ज्यादा बेहतर बचाव हो पाया है." उन्होंने कहा, "लेकिन हमें और मुस्तैद रहना होगा और निगरानी के तरीके चाकचौबंद रखने होंगे ताकि समय रहते नये वेरियंटों की शिनाख्त की जा सके और उनके खिलाफ उपाय भी." गिरधर बाबू कहते हैं, "फिलहाल डाटा के आधार पर मामलों में बढ़ोतरी के कोई संकेत नहीं हैं. संक्रमण फैलने की दर और वेरियंट की गंभीरता हर जगह एक जैसी नहीं हो सकती, वो स्थानीय आबादी और पर्यावरण पर भी निर्भर करती है."
सतर्कता ही सबसे जरूरी
कोविड वायरस के जिनोम संबंधी विभिन्नताओं की निगरानी करने वाली प्रयोगशालाओं का नेटवर्क, इंडियन सार्स कोवि-2 कंसॉर्टियम ऑन जिनोमिक्स इस हफ्ते एक बैठक करेगा जिसमें चीन में फैली कोरोना लहर के डाटा की समीक्षा की जाएगी. भारत में हाइब्रिड इम्युनिटी हो जाने की वजह से अधिकांश आबादी को ओमिक्रोन सबवेरियंट से हल्की बीमारी ही हुई है. इसके बावजूद कुछ लोग मानते हैं कि भारत में ध्यान रोजाना के नये संक्रमणों पर नहीं होना चाहिए बल्कि अस्पतालों में भर्ती के मामलों में बढ़ोत्तरी पर ही रखना चाहिए, खासकर आईसीयू के मामले.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में इम्युनोलॉजिस्ट विनीता बल कहती हैं, "भारत में हाल तक बीएफ.7 वेरियंट के मामलों की संख्या गौरतलब नहीं थी. लेकिन चीन में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए ये स्थिति बदल भी सकती है. भारत में चिंता इस बात की होनी चाहिए कि नये मामलों की निगरानी की जाए, और मामले बढ़ने के लिए कौन सा वेरियंट जिम्मेदार हो सकता है, इसकी शिनाख्त की जाए."
'चिंता की बात नहीं'
विनीता बल ने, भारत में बड़े पैमाने पर हुए टीकाकरण और पिछले साल ओमिक्रोन संक्रमण की उच्च दर से हासिल हुई महत्वपूर्ण हाइब्रिड इम्युनिटी के आधार पर, इस ओर भी ध्यान दिलाया कि गंभीर कोविड संक्रमण के तीव्र और बेकाबू हो जाने की चिंता भारत को नहीं करनी चाहिए. अशोका यूनिवर्सिटी में भौतिकी और जीवविज्ञान के प्रोफेसर गौतम मेनन कहते हैं कि भारत में जिस आबादी को कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा था उसे अधिकांशतः टीका लग चुका है. हालांकि बूस्टर डोज अभी लगने बाकी हैं.
मेनन ने बताया, "हमें उन वेरियंटों को लेकर सतर्क रहना चाहिए जो और गंभीर बीमारी ला सकते हैं. इसके लिए एक समन्वित निगरानी की जरूरत है, जिनोमिक भी और क्लिनिकल भी. हम अपने लोगों को बूस्टर शॉट लेने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, करना चाहिए." गौतम मेनन कोविड-19 के फैलाव को ट्रैक करने वाले गणितीय और कम्प्यूटरीकृत मॉडलों पर काम करते हैं. उनका मानना है कि "बीमारी की चपेट में आने के लिहाज से संवेदनशील आबादी को अतिरिक्त बूस्टर डोज देने के लिए नयी प्रोटीन सब-यूनिट के इस्तेमाल को भी खंगाला जाना जरूरी है." "पारदर्शिता महत्वपूर्ण है. चीन सरकार इस मामले में फिलहाल नाकाम दिखती है. हमें उसी जाल में नहीं फंसना चाहिए."
बच्चों के लिए भी टीका
पिछले साल अप्रैल में, भारत ने 12 साल के कम उम्र के बच्चों के लिए देश में ही बने दो टीकों को मंजूरी दे दी थी. हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक के टीके कोवैक्सिन को आपात इस्तेमाल की अनुमति दी गई थी. दो अन्य टीकों को आपात मंजूरी दी गई थी, पांच से 12 साल की उम्र के बच्चों के लिए कोर्बिवैक्स और 12 साल से ऊपर के बच्चों के लिए जाइडस की दो खुराक वाला टीका.
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में पीडियाट्रिक पल्मोनोलोजिस्ट शैली अवस्थी ने डीडब्ल्यू को बताया, "हर किसी को मुस्तैद रहने और कोविड-उपयुक्त व्यवहार अपनाने की जरूरत है. भारत में बीएफ.7 वेरियंट इन्फ्लुएंजा की तरह होगा जिसमें मौत भी हो सकती है. बुनियादी बात है सावधानी और रोकथाम की, भले ही मौतें कम हों." स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, देश में कोरोना के खिलाफ राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत अभी तक 2.2 अरब टीके लगाए जा चुके हैं. कुल मौतों की संख्या 530707 है.