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चीन से कोरोना वैक्सीन लेने को मजबूर भारत के पड़ोसी

२५ जून २०२१

पिछले 6 महीने में चीन ने कुल 2.2 करोड़ वैक्सीन डोज दान में दी हैं. चीन ने अब तक दुनिया के 84 देशों को वैक्सीन दी है. चीन के मुकाबले भारत ने पिछले 6 महीनों में 48 देशों को मात्र 88 लाख वैक्सीन डोज दी हैं.

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Bangladesch AstraZeneca Impfung
बांग्लादेश में टीके का इंतजारतस्वीर: Mortuza Rashed/DW

भारत जब कोरोना की खतरनाक दूसरी लहर से जूझ रहा था, चीन दुनियाभर में कोविड-19 वैक्सीन बांटने वाले शक्तिशाली देश के तौर पर स्थापित होने की कोशिश कर रहा था. भारत के वैक्सीन निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले ने उसकी और मदद की. इससे न सिर्फ अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देश बल्कि भारत के कई दक्षिण एशियाई पड़ोसी भी उससे कोरोना वैक्सीन लेने के लिए मजबूर हो गए. अब नेपाल हो, श्रीलंका या बांग्लादेश, चीन भारत के पुराने सहयोगी रहे इन सभी देशों के लिए वैक्सीन का सबसे बड़ा प्रदाता बना हुआ है. कुछ ही महीनों में वह इन देशों को वैक्सीन देने के मामले में भारत से आगे भी निकल गया है.

पिछले 6 महीने में चीन ने कुल 2.2 करोड़ वैक्सीन डोज दान में दी है. चीन ने अब तक दुनिया के 84 देशों को वैक्सीन दी है. चीन के मुकाबले भारत ने पिछले 6 महीनों में 48 देशों को मात्र 88 लाख वैक्सीन डोज दी है. हालांकि पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट जेनेवा स्थित गावी संस्था के "कोवैक्स" प्रोग्राम का हिस्सा भी है, जो दुनिया के आर्थिक रूप से कमजोर कई देशों को वैक्सीन की सप्लाई करता है. अब गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बार फिर भारत की वैक्सीन जरूरत पूरी होने के बाद ही अन्य देशों को वैक्सीन दिए जाने पर विचार की बात कही है. यानी भारत की ओर से "दुनिया की फार्मेसी" के तमगे को फिलहाल खूंटी पर टांग दिया गया है.

भारत के सारे पड़ोसी चीन के भरोसे

पाकिस्तान का पूरा वैक्सीनेशन प्रोग्राम चीन के भरोसे रहा है. पाकिस्तान के पास अब तक मौजूद कुल 4.4 करोड़ वैक्सीन डोज में से 4.3 करोड़ चीन की बनाई हुई हैं. वहीं बांग्लादेश भी अब चीन से 2 करोड़ वैक्सीन खरीद रहा है. कोरोना की दूसरी लहर के बीच भारत के वैक्सीन निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले के बाद अप्रैल अंत में बांग्लादेश को अपना वैक्सीनेशन कार्यक्रम रोकना पड़ा था. भारत ही बांग्लादेश का सबसे बड़ा वैक्सीन प्रदाता था. नेपाल भी कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है और उसने भी चीन का रुख कर लिया है. उसे भारत और कोवैक्स प्रोग्राम से सिर्फ 3.5 लाख वैक्सीन ही मिल सकी थीं. जिसके बाद अब वह चीन से सिनोफार्म वैक्सीन की 40 लाख डोज खरीद रहा है.

Lahore, Pakistan | Coronavirus Impfzentrum
पाकिस्तान में टीका सेंटरतस्वीर: Tanvir Shahzad/DW

वहीं श्रीलंका की कोरोना से लड़ाई में भी चीन ही सबसे बड़ा सहारा है. इसे चीन ने सबसे ज्यादा 1.4 करोड़ डोज साइनोवैक दी हैं. मालदीव को भारत और कोवैक्स प्रोग्राम के तहत अब तक 5 लाख एस्ट्राजेनेका वैक्सीन मिली है. वहीं 2 लाख वैक्सीन उसे चीन ने दी है. दक्षिण-एशियाई देशों को तेजी से वैक्सीन देने के चीन के कदम पर जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर डॉ कृष्णा राव कहते हैं, "चीन ने कोरोना महामारी का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है. दुनिया के कई हिस्सों में बड़ी मात्रा में वैक्सीन भेज उसने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है." हालांकि इसे लगाने के बाद भी बड़ी संख्या में संक्रमित हो रहे लोगों को लेकर वे चेताते भी हैं, "WHO ने भले ही साइनोवैक को आपातकालीन मंजूरी दे दी हो लेकिन इसे एस्ट्राजेनेका और फाइजर जैसी वैक्सीन के मुकाबले कम प्रभावी पाया गया है. हालांकि अन्य वैक्सीन लगाने वाले भी संक्रमित हो रहे हैं लेकिन इसकी तुलना में कम."

कोवैक्सीन का निर्यात नहीं कर सकता भारत

दक्षिण एशिया के सबसे बड़े देश भारत के पास फिलहाल एस्ट्राजेनेका कोवीशील्ड की 63 करोड़ वैक्सीन डोज, भारत बायोटेक की 27 करोड़ वैक्सीन डोज और बायोलॉजिकल ई की 30 करोड़ वैक्सीन डोज की सप्लाई है. यहां के सभी वैक्सीन निर्माताओं की एक साल में कुल 5 अरब वैक्सीन निर्माण करने की क्षमता है. बड़े भारतीय वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, भारत बायोटेक, बायोलॉजिकल ई और पैनेशिया बायोटेक हैं. भारतीय कंपनियों ने रूस की 'स्पूतनिक वी' और अमेरिकी वैक्सीन कंपनी 'जॉनसन एंड जॉनसन' के साथ वैक्सीन निर्माण के लिए करार भी किया है.

Indien Coronavirus Pandemie
कोवैक्सीन का निर्यात संभव नहींतस्वीर: Debarchan Chatterjee/NurPhoto/picture alliance

लेकिन भारत की एकमात्र स्वदेशी वैक्सीन भारत बायोटेक की 'कोवैक्सीन' को अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से इमरजेंसी अप्रूवल का इंतजार है. यह अनुमति मिलने के बाद ही उसे बड़े स्तर पर विदेशों में निर्यात किया जा सकेगा. कंपनी ने अपनी कोवैक्सीन को अब तक सिर्फ नेपाल और मॉरिशस भेजा है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में विदेश संबंधों के असिस्टेंट प्रोफेसर जसप्रताप बरार कहते हैं, "भारत को पहले से अपनी स्थिति का सही अनुमान होना चाहिए था. उसे यह समझना चाहिए था कि वह मात्र वैक्सीन का निर्माता है, मालिक नहीं. यही बात न समझने के चलते, 'दुनिया की फार्मेसी' होने जैसे बड़े-बड़े दावे किए जाते रहे." वे पूछते हैं, "आखिर दूसरी लहर में लाखों जानें जाने के बाद जब स्पूतनिक, मॉडेर्ना और फाइजर हर वैक्सीन को भारत में निर्माण की अनुमति दी जा रही है तो यही काम पहले क्यों नहीं हुआ."

वैक्सीन की कमी अदूरदर्शिता का परिणाम

जानकार यह भी कहते हैं कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का जेनर इंस्टीट्यूट जब कोरोना वायरस वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रहा था तब माना जा रहा था कि वह दुनिया के हर मैन्युफैक्चरर को यह वैक्सीन बनाने देगा. जिससे भारत "कोवैक्स" प्रोग्राम और विकासशील देशों को आसानी से वैक्सीन दे सकेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. डॉ. कृष्णा राव कहते हैं, "कंपनियां ऐसा ही करती हैं लेकिन भारत सरकार ने भी भारत और अन्य देशों के लिए वैक्सीन की जरूरत को बहुत कम करके आंका."

Indien | Coronavirus | Hilfslieferungen aus den USA
अमेरिका की मददतस्वीर: Prakash Singh/REUTERS

साथ ही भारत ने अपनी वैक्सीन की लाइसेंसिंग और वैक्सीन निर्माताओं की क्षमता बढ़ाने के लिए भी पर्याप्त फंड नहीं दिया. जिससे पड़ोसी विकासशील देशों के पास भी तेजी से एस्ट्राजेनेका कोवीशील्ड खत्म हुई. रही-सही कसर कोरोना की दूसरी लहर ने पूरी कर दी. अब चीन के अलावा अमेरिका जैसे देश इस भरपाई की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अमेरिका ने एशिया के सभी देशों के लिए जो 1.6 करोड़ वैक्सीन देने का ऐलान किया है, वह ऊंट के मुंह में जीरा है. एशिया की कुल जनसंख्या 4.5 अरब है. ऐसे में अमेरिकी प्रयास के जरिए दक्षिण एशियाई देशों के हाथ कुछ लाख वैक्सीन ही आ सकेंगी. जो पूरी तरह नाकाफी होगी.

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