चुनाव में धांधली का डर नहीं
२१ सितम्बर २०१३जर्मन चुनाव आयोग के प्रमुख क्लाउस पोएच के अनुसार जर्मनी में चुनाव की प्रक्रिया हर चरण में अत्यंत पारदर्शी है. संसदीय और यूरोपीय चुनाव कराने की जिम्मेदारी उन्हीं की है. कोई गड़बड़ी न हो, इसकी पहले से ही पूरी तैयारी कर ली जाती है. पोएच कहते हैं, "मसलन मतदान केंद्रों की स्थिति को लीजिए, वहां हर मतदान केंद्र पर 8-9 स्वयंसेवी सहायक होते हैं." मतदान के दिन रविवार को देश भर में सवा 6 लाख स्वयंसेवी चुनाव प्रक्रिया में मदद के लिए तैनात होते हैं. जर्मनी में 18 साल की उम्र से बड़ा कोई भी नागरिक अपने को मतदान कार्यकर्ता के रूप में रजिस्टर करा सकता है.
हालांकि शहर का प्रशासन खुद अपना नाम नहीं देने वाले नागरिकों को भी मनोनीत कर सकता है. इससे इनकार सिर्फ वही कर सकता है, जो कोई जरूरी कारण बता सके. मतदान केंद्र खुलने से पहले स्वयंसेवक इस बात की जांच करते हैं कि क्या मतपेटियां सचमुच खाली हैं. मतदान के दौरान वे इस बात की जांच करते हैं कि मतदाता अपना पहचान पत्र और मत देने के अधिकार वाली चिट्ठी दिखाए. यह चिट्ठी मतदाताओं को चुनाव के दिन से पहले ही भेज दी जाती है.
मतपेटी से चुनाव आयोग तक
चुनाव में मदद देने वाले कार्यकर्ता इस बात को भी सुनिश्चित करते हैं कि पोलिंग बूथ पर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश न की जाए. यदि किसी पार्टी का सदस्य पोलिंग बूथ पर एकाध वोट पाने की कोशिश करे तो चुनाव में मदद कर रहे कार्यकर्ता उसे रोक देते हैं. ये कार्यकर्ता काम शुरू करने से पहले तटस्थ रहने की शपथ लेते हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे किसी पार्टी के सदस्य नहीं हो सकते. हर जिले में सक्रिय राजनीतिक पार्टियों पर स्वयंसेवक चुनने वक्त ध्यान दिया जाता है, ताकि राजनीतिक बहुलता के जरिए तटस्थ तरीके से मतदान कराया जा सके.
शाम के ठीक छह बजे चुनाव कार्यकर्ता मतदान केंद्र बंद कर देते हैं और तय तरीके से डाले गए वोटों की गिनती करते हैं और उसका प्रोटोकॉल बनाते हैं. मतदान केंद्रों पर हुई गिनती को नगर प्रशासन को भेजा जाता है, जो उसे जिला चुनाव अधिकारी को भेजता है. क्लाउस पोएच बताते हैं कि जिलों के चुनाव अधिकारी अपने यहां से इकट्ठा हुई जानकारी को प्रांतीय चुनाव अधिकारी को भेजते हैं, जो अपने प्रांत के चुनाव परिणाम को संघीय चुनाव आयोग को भेजते हैं.
पोस्टल बैलट की समस्या
पारदर्शिता और निगरानी के कदमों के जरिए जर्मनी में चुनावी धांधली को रोका जाता है. आम तौर पर यह सफल है, लेकिन चुनाव आयुक्त क्लाउस पोएच इस बात की सौ फीसदी गारंटी नहीं देना चाहते कि कहीं धांधली नहीं हो सकती. धांधली की संभावना लगातार लोकप्रिय होते पोस्टल वोटिंग में है. शहरों में 30 फीसदी से ज्यादा मतदाता पोस्टल बैलट से मतदान करने की सुविधा का फायदा उठाते हैं. पोस्टल बैलट के साथ आसानी से धांधली की जा सकती है और उसमें चुनाव की गोपनीयता भी बनाए रखना संभव नहीं होता.
यह संभव है कि ओल्डहोम में कोई नर्स किसी और के लिए बैलट भर दे या कोई पति अपनी पत्नी के लिए वोट दे दे. 2002 में दाखाउ शहर में हुए स्थानीय निकाय के चुनावों 400 पोस्टल बैलट के साथ घोखाधड़ी की गई और चुनावी धांधली हुई. इसका पता इसलिए चल गया कि धांधली करने वाले ने हर बैलट पर एक ही कलम से लिखा था.
वोटिंग मशीन असंवैधानिक
जर्मनी में भारत और अमेरिका की तरह संसदीय चुनावों में वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल किया गया है. ऐसा 2005 के चुनावों में हुआ था. लेकिन 2009 में इसे जर्मनी के संवैधानिक न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया. इसकी वजह यह थी कि चुनाव की प्रक्रिया सार्वजनिक होनी चाहिए. यही बात वोटों की गिनती के लिए भी लागू है. पोएच बताते हैं, "नियम यह है कि हर बैलट में दिए गए वोट को जोर से बोला जाए और उसे सार्वजनिक रूप से दर्ज किया जाए. पारदर्शिता सबसे केंद्र में है."
यहां सार्वजनिक का मतलब है कि वोटों की गिनती के दौरान हर किसी को पोलिंग बूथ पर मौजूद रहने का हक है. अगर चुनाव के बाद उसकी वैधता पर किसी तरह का संदेह हो तो वोटों की फिर से गिनती संभव होनी चाहिए, लेकिन संवैधानिक अदालत ने पाया कि जर्मनी में इस्तेमाल हुई वोटिंह मशीनों में यह संभव नहीं था.
रिपोर्ट: अन्ना पेटर्स/एमजे
संपादन: निखिल रंजन