चुनावी राजनीति में न्यूनतम आय का छौंका
२६ मार्च २०१९कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के सबसे गरीब परिवारों के न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित करने के लिए सोमवार को जिस न्याय योजना की घोषणा की है, उसे केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली अमल किए जाने के काबिल नहीं मानते जबकि राहुल गांधी का दावा है कि जाने-माने अर्थशास्त्रियों से सलाह-मशविरे के बाद ही इसे तैयार किया गया है. इस महत्वाकांक्षी योजना पर अमल हो पाएगा या नहीं और इसके लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन जुट पाएंगे या नहीं, यह बहस तो चलती रहेगी लेकिन इस समय सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस घोषणा का लोकसभा चुनाव के नतीजों पर क्या असर पड़ सकता है? क्या यह "गेम चेंजर" यानी समूची चुनावी बिसात को पलटने वाला दांव सिद्ध हो सकता है? क्या इससे भारतीय मतदाता के बहुत अधिक प्रभावित होने की संभावना बनती है?
इस सवाल का अंतिम जवाब तो चुनाव के नतीजे ही देंगे, लेकिन फिलहाल तो यही लगता है कि इस घोषणा का व्यापक असर होने वाला है, विशेषकर इसलिए क्योंकि इसी के साथ राहुल गांधी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर यह कटाक्ष भी जुड़ा है कि उसने देश के पंद्रह-बीस सबसे धनी उद्योगपतियों के तीन लाख करोड़ रुपये से भी अधिक के कर्ज माफ कर दिए जबकि गरीब किसानों के कर्ज माफ नहीं किए गए. दूसरी ओर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार बनाने के दस दिन के भीतर ही किसानों के कर्ज माफी के अपने चुनावी वादे को पूरा कर दिखाया. भारतीय मतदाता भूला नहीं है कि पिछले लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करते समय प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने विदेशों से काला धन लाकर हरेक की जेब में पंद्रह लाख रुपये डालने का वादा किया था जिसे बाद में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने "चुनावी जुमला" बता कर हंसी में टाल दिया था. युवा मतदाता मोदी की ओर इसीलिए आकृष्ट हुआ था क्योंकि उन्होंने हर साल दो करोड़ नए रोजगार पैदा करने का वादा किया था. इसके उलट बेरोजगारी बढ़ी है और सरकार में इतनी हिम्मत भी नहीं कि वह रोजगार सम्बंधी आंकड़े भी सार्वजनिक कर सके. ऐसी स्थिति में जब नए रोजगार पैदा करने की संभावना बहुत क्षीण हो, न्याय जैसी न्यूनतम आमदनी योजना यूं भी बेहद आवश्यक हो जाती है.
हर परिवार को साल में 72 हजार देना कितना संभव?
बहुत कुछ कांग्रेस के चुनाव अभियान पर भी निर्भर है कि वह न्याय योजना और इससे होने वाले फायदों को कितनी सफलता के साथ मतदाताओं को समझा पाती है क्योंकि तीन राज्यों में किसानों के कर्ज माफ करके उसने विश्वसनीयता अर्जित की है, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि गरीब मतदाता उसकी घोषणा पर भरोसा करे और उसके आधार पर वोट डाले. भाजपा का उग्र राष्ट्रवाद इस समय केवल शहरी मध्यवर्ग पर ही असर डाल पर रहा है. गाव का किसान और शहरी गरीब भी अपनी रोजमर्रा की जद्दोजहद में इतना जूझ रहा है कि अब उसके पास भावनात्मक मुद्दों पर बहकने की ताकत नहीं बची है.
न्याय जैसी योजना के कारण क्षेत्रीय असमानता को दूर करने में भी मदद मिलेगी. चौदहवें वित्त आयोग द्वारा इकट्ठा की गई जानकारी के अनुसार देश के अधिक समृद्ध राज्यों को ही सरकारी निवेश और रियायतों आदि का सबसे अधिक लाभ मिलता है. लेकिन न्यूनतम आमदनी योजना का लाभ सभी राज्यों को समान रूप से मिलेगा.
यदि कांग्रेस सरकार नहीं भी बना पाती है और भाजपा फिर से केंद्र में सरकार बना पाने में सफल हो जाती है, तब भी अगली सरकार के लिए न्याय योजना की अनदेखी करना संभव नहीं होगा. यूं भी स्वयं प्रधानमंत्री मोदी की सरकार को कांग्रेस की उन योजनाओं को अपनाने में कोई गुरेज नहीं हुआ जिनका पहले भाजपा ने जम कर विरोध किया था. इसलिए लगता है कि कांग्रेस चाहे सत्ता में आए या ना आए, न्याय योजना आने वाले दिनों में लागू होकर ही रहेगी, क्योंकि उसने एकाएक राजनीतिक विमर्श का मिजाज बदल दिया है.
(भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है)