ईयू के नए अध्यक्ष स्लोवाकिया की चुनौतियां
१ जुलाई २०१६हर छह महीने में अध्यक्षता बदलने वाले यूरोपीय संघ के देशों में अब स्लोवाकिया की बारी है. 2004 में ईयू का सदस्य बनने वाले स्लोवाकिया को पहली बार अध्यक्षता का मौका मिला है. 28 देशों के ब्लॉक से बाहर निकलने के ब्रिटेन के फैसले को किस तरह लागू किया जाए, इस पर ईयू का खास ध्यान है.
इसके अतिरिक्त 16 सितंबर को ब्रिटेन के अलावा बाकी सदस्य देश दूसरे अहम मसलों पर भी अनौपचारिक वार्ता के लिए ब्रातिस्लावा में मिलेंगे. तब तक ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की जगह कोई और नेता प्रधानमंत्री बन चुका होगा और यूरोपीय संघ छोड़ने की प्रक्रिया पर बातचीत करेगा.
सितंबर की वार्ता को लेकर स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फीको का कहना है, "हम राजनेताओं के लिए यह सही मौका है कि हम अपनी असफलता को स्वीकार करें. मानें कि नागरिकों को यूरोपीय प्रोजेक्ट के फायदे समझा पाने में हम फेल हुए हैं."
शरणार्थी संकट को लेकर यूरोपीय संघ के कई देशों की काफी अलग राय है. यह ऐसा मुद्दा है जिसने समय समय पर ईयू की एकता की परीक्षा ली है और निकट भविष्य में भी इस पर गतिरोध बना रहेगा. बीते एक साल में 10 लाख से भी अधिक लोग शरण की तलाश में यूरोप पहुंचे हैं. इनमें से ज्यादातर लोग सीरिया और अफगानिस्तान जैसे युद्ध प्रभावित देशों से जान बचाकर भागे हैं.
स्लोवाकिया खुद भी अब तक ईयू के सदस्य देशों के बीच शरणार्थियों को बांटे जाने के फैसले का विरोध करता आया है. इस निर्णय का मकसद सभी ईयू देशों के बीच शरणार्थियों के बोझ को बांटना है. स्लोवाकिया के गृह राज्य मंत्री डेनिसा साकोवा ने कहा है कि स्लोवाकिया राष्ट्रीय कोटा के आधार पर रिफ्यूजियों को बांटे जाने के खिलाफ है, और वे इसके लिए एक "अलग दृष्टिकोण" पेश करेंगे.
ईयू की अध्यक्षता के दौरान स्लोवाकिया चार मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाला है. प्रधानमंत्री फिको ने इन्हें गिनाते हुए कहा, "एक आर्थिक रूप से मजबूत यूरोप बनाना, ब्लॉक के साझा बाजारों का अधिकतम फायदा उठाना, ईयू आप्रवासन और शरण नीति में "संतुलन" स्थापित करना एवं ईयू ब्लॉक को एक ग्लोबल प्लेयर के रूप में उभारने की दिशा में काम करेंगे."