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समाज

फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक से चिंता में प्रदर्शनकारी

१९ फ़रवरी २०२०

विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस प्रदर्शनकारियों की पहचान करने की तकनीक इस्तेमाल कर रही है. सामाजिक कार्यकर्ता इसके इस्तेमाल के नियमों को लेकर चिंतित हैं. वे ऐसे उपाय भी साझा कर रहे हैं जिससे इस तकनीक से बचा जा सके.

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Indien | Gesichtserkennung am Flughafen Hyderabad
तस्वीर: AFP/Getty Images/N. Seelam

दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी पुलिस द्वारा फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक के इस्तेमाल से चिंतित हैं. देशभर के कई शहरों में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. प्रदर्शनकारी कथित तौर पर फेशियल रिकॉग्निशन पर नियमों की कमी को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं और विरोध प्रदर्शनों पर कार्रवाई में इसकी संभावित भूमिका के बारे में परेशान हैं. कार्यकर्ता इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि सरकार ने यह स्वीकार नहीं किया है कि वह इस तकनीक का इस्तेमाल कर रही है.

एक अंग्रेजी अखबार ने पहली बार इस पर पिछले साल दिसंबर में रिपोर्ट छापी थी. फेशियल रिकॉग्निशन का इस्तेमाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में हो चुका है. उस वक्त पुलिस ने "कानून एवं व्यवस्था" का हवाला दिया था. स्कैनिंग से मिले चेहरों का मिलान दिल्ली पुलिस ने अलग-अलग विरोध प्रदर्शनों के दौरान बनाए गए वीडियो में दर्ज हुए चेहरों से किया था. साल 2018 में दिल्ली पुलिस ने ऑटोमेटेड फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (एएफआरएस) को गुमशुदा बच्चों की तलाश और उनकी पहचान के लिए के लिए अधिकृत किया था.

BG Gesichtserkennungssysteme | Monitor mit einem Gesichtserkennungsprogramm des Fraunhofer Instituts
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/J. Tack

नागरिक अधिकार कार्यकर्ता रचिता तनेजा ने ऑनलाइन कार्टून तैयार किया है जिसमें चेहरे छिपाने के सस्ते उपाय बताए गए हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से वह कहती हैं, "मुझे नहीं पता वह मेरे डाटा का क्या करेंगे. यह जानते हुए कि सरकार किस तरह से कार्रवाई करती है, हमें खुद को सुरक्षित रखने की जरूरत है." 21 साल के प्रदर्शनकारी ने रॉयटर्स को बताया कि वह उपनाम का इस्तेमाल करता है और साथ ही साथ जरूरत पड़ने पर रुमाल से चेहरा ढक लेता है. वह कहता है, "हमें इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन कुछ एहतियात बरतने की कोशिश कर रहे हैं."

हाल ही में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के पद से रिटायर होने वाले ओपी सिंह का कहना है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में 1100 लोगों को हिरासत में लिया गया था उसमें फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक की मदद से कुछ ही लोग हिरासत में लिए गए थे. मोदी सरकार एक देशव्यापी डाटाबेस बनाने के लिए सॉफ्टवेयर कंपनियों से बोलियां आमंत्रित कर रही है. नेशनल ऑटोमेटेड फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम के जरिए सीसीटीवी में आई तस्वीरों को डाटाबेस से मिलान किया जाएगा.

अलग-अलग राज्यों में पुलिस को चेहरे की पहचान तकनीक की सप्लाई करने वाली सॉफ्टवेयर कंपनियां बड़े पैमाने पर निगरानी की संभावना से इनकार करती है. तकनीक स्टार्ट अप कंपनी स्टाकु, अपनी तकनीक आठ राज्यों की पुलिस को सप्लाई करती है इसमें उत्तर प्रदेश पुलिस भी शामिल है. कंपनी के सह-संस्थापक अतुल राय कहते हैं कि बड़े पैमाने पर निगरानी की बात बढ़ा चढ़ाकर की जा रही है क्योंकि 1.3 अरब की आबादी के साथ ऐसा कर पाना मुश्किल है. हालांकि उनका कहना है कि संभावित विवादों से बचने के लिए नियमों की आवश्यकता है. दिल्ली पुलिस को फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक की सप्लाई करने वाली कंपनी इन्नेफू के सह-संस्थापक तरुण विग कहते है, "अगर कोई पुलिस पर पत्थर फेंक रहा है तो क्या उसे वीडियो बनाने और उसकी पहचान करना का अधिकार नहीं है."

एए/एमजे (रॉयटर्स, डीपीए)

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