छिप छिप कर दूसरी भाषा सीखती है चिड़िया
३ अगस्त २०१८जंगल में रह रहे अलग-अलग प्रजाति के पक्षियों को एक-दूसरे की भाषा समझ में नहीं आती. यह कुछ वैसा ही है जैसे किसी देश में अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोगों को आपसी बातचीत में मुश्किलें पेश आएं. ऐसे में हम इंसान एक-दूसरे के शब्दों को गौर से सुनते हैं और समझने की कोशिश करते हैं. चिड़ियों में भी 'विदेशी भाषा' को सीखने का हुनर होता है. इसके लिए वे बकायदा एक-दूसरे की जासूसी करती हैं. इससे वे यह जान पाती हैं कि बाज, सांप या शिकारी जैसे उनके दुश्मन कहीं से आ तो नहीं रहे.
हाल ही में करंट बायोलॉजी नामक जर्नल में छपे एक लेख में चिड़ियों के इसी हुनर के बारे में लिखा गया है. लेख के मुताबिक, ऑस्ट्रेलियाई पक्षी सॉन्गबर्ड इतनी अक्लमंद होती है कि वह दूसरी प्रजाति के पक्षियों की भाषा को समझकर अनुवाद कर लेती है. ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में बायोलॉजिस्ट एंड्रू राडफोर्ड का कहना है, ''हम यह जानते थे कि कुछ जानवर दूसरी प्रजातियों की भाषा को समझ लेते हैं, लेकिन यह मालूम नही चल पाया है कि वे ऐसा करते कैसे हैं.''
चिड़ियों में कुछ गुण जन्मजात होते हैं और कुछ वे अनुभव से सीखती हैं. राडफोर्ड समेत अन्य वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि पक्षियों के झुंड से वे कैसे अपना ज्ञान बढ़ाती हैं. ऑस्ट्रेलिया नेशनल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसके लिए रेन्स पक्षी पर प्रयोग किया. सबसे पहले उन्होंने गैर-ऑस्ट्रेलियाई प्रजाति के थॉर्नबिल पक्षी की चेतावनी देती हुई आवाज को सुनाया. इसके बाद खतरे को बताती कंप्यूटर जनरेटेड आवाज को सुनाया.
वैज्ञानिक इन आवाजों को सुनाते रहे और पक्षियों को आवाज का मतलब समझाने के लिए तैयार किया. तीन दिन में रेन्स पक्षियों का समूह इन आवाजों को पहचानने में सफल हो गया और जैसे ही इसे उन्हें सुनाया जाता वे अपने समूह के साथ उड़कर सुरक्षित ठिकाना ढूंढने लगे.
यह प्रयोग बताता है कि कुछ मामलों में पक्षियों का व्यवहार इंसानों से मिलता-जुलता है. मसलन, अगर किसी अंग्रेजी बोलने वाले को जर्मन में खतरे का मतलब समझाया जाए तो वह बार-बार सुनकर समझ जाता है कि बात चेतावनी देने की हो रही है.
वीसी/आईबी (एपी)
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