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जंग में धरोहर बचाने की जंग

३१ अगस्त २०१२

सैनिक विवादों का एक आम निशाना इलाके के सांस्कृतिक धरोहर होते हैं. पुरातत्वविदों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम दुनिया भर में सैनिकों को लड़ाई के दौरान मूल्यवान कलाकृतियां की रक्षा के पाठ सिखा रही है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

रोम में अमेरिकी पुरातत्वविद लॉरी रश एक बेंच पर बैठी हैं, जहां अतीत वर्तमान के साथ घुलमिल रहा है. बाईं तरफ चौथी शताब्दी में बना यानुस का विशाल मेहराब है तो ऊपर पैलेटीन पहाडों पर रोमन महलों के अवशेष हैं. दो हजार साल के युद्ध, अतिक्रमण, कब्जे और बमबारी के इतिहास के बावजूद इटली की अधिकांश सांस्कृतिक धरोहर आज भी मौजूद है. 2010 में इटली के अमेरिकी अकादमी में विजिटिंग स्कॉलर रहीं रश कहती हैं, "हम सब इटली के लोगों के शुक्रगुजार हैं. अगर उन्होंने अद्भुत कदम नहीं उठाए होते तो देश भर में इस तरह की असाधारण चीजें हमें नहीं दिखती."

रोमन फोरम में ट्रायान कोलम में रोमन और दासियान के बीच हुए युद्धों का वर्णन है. दो-दो विश्व युद्धों में ट्रायान कोलम को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. इटली के लोगों ने उसके चारों ओर 30 मीटर ऊंची ईंटों की दीवार बना दी थी. इसी तरह लियोनार्दो दा विंची का लास्ट सपर (पेंटिंग) अभी भी मौजूद है क्योंकि बमों के गिरने से पहले लोगों ने इस दीवार को बचाने के लिए रेत की बोरियां लगा दीं. 56 वर्षीया रश ने इटली की सांस्कृतिक संरक्षण नीति का इस तरह अध्ययन किया है, जैसे कोई जनरल किसी युद्ध की तैयारी करता है. आखिरकार वे अमेरिका सेना की सिविलियन कर्मचारी हैं, जिसका काम सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा है.

स्मारकों की रक्षा

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 13 देशों की सेनाओं और नागरिकों ने यूरोप के वास्तुशिल्प और महान कला कृतियों को बचाने का बीड़ा उठाया था. आजकल रश और पुरातत्ववेत्ता लड़ाई के इलाकों में कलाकृतियों और सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने की अगुआ टोली में हैं. ज्ञान, हिम्मत और सेना के साथ काम करने की तैयारी के साथ. हाल की लड़ाइयों में हुए नुकसान के कारण उनकी उपस्थिति का स्वागत हो रहा है.

Zerstörung von Weltkulturerbe Buddha-Statuen von Bamiyan Vorher Nachher
अफगानिस्तान के बामियान में तालिबान ने बुद्ध की ऐतिहासिक मूर्तियों को तोड़ातस्वीर: cc-by-sa-UNESCO/A Lezine

इराक पर 2003 में हुए अमेरिकी हमले के बाद अमेरिकी सैनिकों ने बेबीलोन के प्राचीन शहर के खंडहरों पर अपना कैंप बना लिया था. बाद में पोलैंड के सैनिक वहां आ गए. वहां जवानों ने 2600 साल पुराना ईंट का फुटपाथ तोड़ डाला और प्राचीन कलाकृतियों वाली जमीन का इस्तेमाल रेत के बोरे बनाने के लिए किया. वहां हुए नुकसान के बारे में सुनने के बाद रश ने मदद करने की पेशकश की. वह कहती हैं, "मेरे दिमाग में तुरंत आया कि बेहतर जानकारी वाले सैनिक ऐसा नहीं करते."

सैनिकों को जानकारी देने के रचनात्मक प्रयासों के तहत रश और उनके साथियों ने ताश के विशेष प्रकार के पत्ते डिजाइन किए, जिसमें एक ओरजैक या इक्का है तो दूसरी तरफ इराक, अफगानिस्तान या मिस्र की किसी प्राचीन धरोहर के बारे में जानकारी. दुनिया के किसी भी भाग में तैनात सैनिक खाली समय में ताश के पत्तों पर दुनिया भर के सांस्कृतिक धरोहरों के बारे में जानकारी पाते हुए पोकर खेल सकते हैं. इन पत्तों पर यह भी लिखा है कि यदि उन्हें कलाकृतियां मिलती हैं तो वे खुदाई छोड़कर किसी बुजुर्ग से उसके बारे में पूछें.

ताश के पत्ते फेंटती रश कहती हैं, "बेशक लाल पान का पंजा मेरा चहेता है." इस पर लिखा है कि प्राचीन स्थलों को बचाने से उन्हें भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी. कार्ड पर एक इराकी बच्चे का हथ पकड़े अमेरिकी सैनिक की तस्वीर है. एक सार्जेंट ने रश को बताया कि ताश के इन सामान्य पत्तों के कारण वह इराक की सांस्कृतिक विरासत के बारे में बहुत कुछ जान पाया. रश के पत्तों के ही कारण एक जवान ने सावधान किया कि बगदाद के बाहर मेसेपोटेमिया के एक साइट पर खुदाई हो रही है. उस जगह को बचा लिया गया.

सफल काम

इटली के अमेलिया में कला अपराध रिसर्चर संघ के सम्मेलन में भागीदारों ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के स्मारक टीम की तरह पुरातत्ववेत्ताओं और सैनिकों को सहयोग करना चाहिए. यूरोप के लिए ताश के पत्ते डिजाइन करने वाली एम्सटरडम यूनिवर्सिटी के योरिस कीला ने कहा, "आपको सैनिक संस्कृति में हिस्सा लेने का खुला दिमाग रखना होगा." कीला डच सेना में रिजर्व अधिकारी हैं. वे कहते हैं कि सैनिक उबाऊ प्रोफेसरों को पसंद नहीं करते. वे उनकी बात इसलिए सुनते हैं कि वे उनमें से एक हैं.

आजकल का मॉडल इटली की पुलिस काराबिनियेरी है. कुछ अत्यंत प्रशिक्षित अधिकारियों ने इराक में सेवा की है और लूट के खतरे वाले स्थलों की शिनाख्त की है और तस्करों को पकड़ा है. यह भी कहा गया कि उनकी साहसिक कार्रवाईयों के कारण ही 2003 में उनके मुख्यालय पर हमला हुआ जिसमें 19 लोग मारे गए.

Mali Timbuktu Ansar Dine Islamisten Gruppe Mausoleum
माली में टिम्बकटू में भी ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुंचातस्वीर: Reuters

न्यू यॉर्क में फोर्ट ड्रम सैनिक अड्डे पर ट्रेनिंग के लिए मध्यपूर्व के प्राचीन स्थलों की नकल बनाई गई है. ब्रिटेन में सैनिकों को पुनर्वास के दौरान खुदाई में शामिल कराया जाता है. इससे उन्हें चोट से उबरने में मदद मिलती है और सांस्कृतिक धरोहरों का पता चलता है. ऑस्ट्रिया के डिफेंस कॉलेज में इस बीच दुनिया भर के सैनिक अधिकारियों के लिए सांस्कृतिक संपत्ति की सुरक्षा के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है.

निशानदेही की चुनौती

1954 के हेग समझौते में युद्ध क्षेत्र में सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा तय है. लेकिन अकसर सैनिक सांस्कृतिक ट्रेनिंग के अभाव में पत्थरों और धरोहरों में फर्क नहीं कर पाते और अनजाने में कब्रों को भी रौंद डालते हैं. रश कहती हैं, "इससे इलाके के लोग गुस्सा हो सकते हैं और नतीजतन हमारे लोगों को चोट पहुंचाई जा सकती है." रश और कीला ने मिलकर मिस्र में पश्चिमी सेनाओं को ट्रेनिंग दी है. यूरोपीय और अमेरिकी साथियों के साथ मिलकर वे सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनाना चाहते हैं.

लीबिया में हाल के विवाद में सहयोग से धरोहरों को बचाने में सफलता मिली है. यूरोप और अमेरिका के पुरातत्ववेत्ताओं ने सेना के साथ सहयोग कर प्राचीन स्थलों को नो-स्ट्राइक सूची पर रखा ताकि उन्हें हमलों का लक्ष्य न बनाया जाए. इससे मूल्यवान धरोहरों को बचाया जा सका. पुरातत्ववेत्ताओं का कहना है कि सबसे मुश्किल काम जगहों की शिनाख्त करना है जो इलाके के लोगों के लिए महत्व रखते हैं. इसके लिए स्थानीय लोगों के साथ परामर्श जरूरी है. उनके सहयोग से पूरी दुनिया के लिए एक सूची बनाने का इरादा है, जो युद्ध और प्राकृतिक विपदा के समय सेना के रणनीतिकारों के काम आएगा.

यह बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन इसके जोखिम भी हैं. अकसर जातीय विवादों में जानबूझकर ऐतिहासिक धरोहरों को भी निशाना बनाया जाता है. रश कहती हैं, "यदि आप दुश्मन को पूरी तरह हतोत्साहित करना चाहते हैं तो प्रतिष्ठित स्थलों को निशाना बनाते हैं. इसलिए अल कायदा ने ट्विन टॉवर को निशाना बनाया." युद्ध तबाही मचाता है और रश का मिशन है धरोहरों को बचाना जिसे हासिल करना आसान नहीं. फिर भी रश और उनके साथियों को भरोसा है कि अतीत की सुरक्षा करने से लोगों को भविष्य बनाने में मदद मिलेगी.

रिपोर्ट: नैंसी ग्रीनलीज/एमजे

संपादन: ए जमाल

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