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जर्मन-इस्राएली रिश्तों के 60 साल

२७ सितम्बर २०११

हिटलर के शासन में यहूदियों के साथ जो अत्याचार हुए उन्हें दुनिया कभी नहीं भुला पाएगी. जर्मनी ने माना कि जो हुआ वह गलत था और उसने 60 साल पहले इस्राएल की तरफ दोस्ती का हाथ बढाया. तब से दोनों देश नजदीकी दोस्त हैं.

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ARCHIV - Alt-Bundeskanzler Konrad Adenauer auf einem Archivbild aus dem Jahr 1966. Der Todestag Konrad Adenauers liegt nun schon 42 Jahre zurueck, sein Amtsantritt gar 60 Jahre. Und doch ist der erste Kanzler der Bundesrepublik in den Koepfen der meisten Deutschen praesenter als viele seiner Nachfolger. Als Adenauer am 15. September 1949 Regierungschef wurde, konnte er auf eine reiche politische Erfahrung bauen. Schon 1917 war er Oberbuergermeister von Koeln geworden. 1926 wollten Parteifreunde ihn sogar zum Reichskanzler machen. (AP Photo) ** zu unserem Korr ** --- FILE - In this file picture taken in 1966, former German Chancellor Dr. Konrad Adenauer is shown. (AP Photo)
कोनराड आडेनाउअरतस्वीर: AP

27 सितंबर 1951 को पश्चिमी जर्मनी के चांसलर कोनराड आडेनाउअर ने संसद को संबोधित करते हुए कहा, "जर्मन राष्ट्र के नाम पर ऐसे अपराध हुए हैं जिन्हें बयान भी नहीं किया जा सकता, उन अपराधों की नैतिक और आर्थिक तौर पर क्षतिपूर्ती करना जरूरी है." ऐसा कह कर उन्होंने न केवल नाजी समय में यहूदियों पर हुए अत्याचारों को पूरी दुनिया के सामने कबूला, बल्कि यहूदियों के साथ रिश्तों में सुधार लाने की पहल भी की.

आडेनाउअर के भाषण के एक महीने बाद ही "कांफ्रेंस ऑफ जियुइश क्लेम्स अगेंस्ट जर्मनी" की स्थापना हुई. यहूदियों के लिए काम करने वाले 22 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठन "क्लेम्स कांफ्रेंस" के नाम से जाने जाने वाले इस संगठन का हिस्सा बने. 21 मार्च 1952 को पहली बार जर्मनी और इस्राएल में समझौते पर बातचीत शुरू हुई. क्लेम्स कांफ्रेंस भी इस बातचीत का हिस्सा रही. छह महीने तक चली बातचीत के बाद आखिरकार 10 सितंबर 1952 को लक्जमबर्ग के टाउनहॉल में समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. समझौते के अनुसार जर्मनी को इस्राएल को अगले 12 साल में कुल तीन अरब मार्क देने थे और क्लेम्स कांफ्रेंस को 45 करोड़ मार्क.

Wiedergutmachungsabkommen in Luxemburg Unterzeichnet- Bundeskanzler Konrad Adenauer und der israelische Aussenminister Moshe Sharett unterzeichneten am 10. September 1952 im kleinen Empfangssaal des Luxemburger Stadhauses das in mehrmonatigen Verhandlungen zustande gekommene deutsch-israelische Wiedergutmachungsabkommen. Unser AP-Photos zeigen: Linkes Bild: Bundeskanzler Konrad Adenauer bei der Unterzeichnung des Abkommens. Rechts neben dem Kanzler der Leiter der deutschen Verhandlungsdelegation Professor Boehm. Rechtes Bild: Nahum Goldman, der Praesident der israelischen Verhandlungsdelegation bei der Unterzeichnung des Abkommens. Im Vordergrund links der israelische Aussenminister Moshe Sharett. (AP-Photo) 10.9.1952
10 सितंबर 1952 को समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए पश्चिमी जर्मनी के चांसलर कोनराड आडेनाउअर और इस्राएल के विदेश मंत्री मोशे शेरततस्वीर: AP

समझौते का विरोध

हालांकि दुनिया में इस समझौते को यहूदियों की जीत के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन इस दौरान इस्राएल की संसद के बाहर हो-हल्ला मचा हुआ था. लोग इस बात से नाराज थे कि नाजी शासन में उनके प्रियजनों के साथ जो सुलूक हुआ, अब जर्मनी पैसे दे कर उसकी भरपाई करना चाह रहा है. लोग हाथ में तख्तियां लिए घूम रहे थे, जिन पर लिखा था, "हमारे मरे हुए पूर्वजों की हर लाश की क्या कीमत लगाओगे?"

यहूदी नरसंहार (होलोकॉस्ट) के पीड़ितों का यह भी मानना था कि इस तरह का समझौता यहूदियों को जर्मनी के हाथ की कठपुतली बना देगा. कई लोग मान रहे थे कि जर्मनी सिर्फ बातें कर रहा है, जब आर्थिक मदद देने की बात आएगी, तब वह अपने कदम पीछे खींच लेगा. जर्मनी में इस्राएल के पहले राजदूत अशर बेन नाथान उस वक्त को याद करते हुए कहते हैं, "इस पर लोगों की बहुत ही तीखी प्रतिक्रिया थी."

वहीं जर्मनी में भी इस समझौते का विरोध हो रहा था. आडेनाउअर के मंत्रिमंडल में भी इसे अविश्वास के भाव से देखा जा रहा था और मीडिया में भी. विरोधियों की दलील थी कि होलोकॉस्ट के समय इस्राएल बना ही नहीं था, तो उसे हर्जाना क्यों दिया जाए. उनका कहना था कि जो लोग इससे प्रभावित हुए हैं उन्हीं को मुआवजा मिलना चाहिए. उस समय के आंकड़ों की मानें तो दो तिहाई जर्मन इस समझौते के खिलाफ थे. लेकिन आडेनाउअर पीछे नहीं हटे. वह जर्मनी और इस्राएल के बीच तनाव खत्म करना चाहते. रिश्तों को सुधारने के लिए उन्होंने मुआवजे की कीमत चुकाना सही समझा.

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1946 में जर्मनी छोड़ इस्राएल जाते हुए यहूदीतस्वीर: picture-alliance/akg-images

इस्राएल की स्थिति

आर्थिक संकट से गुजर रहे इस्राएल के लिए समझौते की राशि लेना जरूरी भी था. होलोकॉस्ट के बाद जर्मनी के साथ संबंधों में तो तनाव था ही. साथ ही उस समय देश अरब-इस्राएल युद्ध से भी उभर रहा था. देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी और बेरोजगारी दर बहुत ऊंची.

ऐसे में इस्राएल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियों ने फैसला लिया कि समझौता करना ही देश के हित में साबित होगा. मापाई पार्टी की बैठक में उन्होंने अपनी पार्टी के सदस्यों से कहा, "हमारे पास दो रास्ते हैं - एक तरफ बस्तियों में रहने वाले यहूदियों की सोच है और दूसरी तरफ स्वतंत्र नागरिकों की. मैं नहीं चाहता कि मैं जर्मनी के पीछे भागूं ताकि मैं उसके मुंह पर थूक सकूं. मैं किसी के पीछे नहीं भागना चाहता. मैं यहां रह कर निर्माण करना चाहता हूं. मैं आडेनाउअर के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई का हिस्सा नहीं बनना चाहता."

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यरुशलम में नाजी गार्डतस्वीर: AP

समझौता होने से पहले पूरे आंकड़े तैयार किए गए. क्लेम्स कांफ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार इस्राएल ने होलोकॉस्ट के पांच लाख पीड़ितों को पनाह दी और हर व्यक्ति पर तीन हजार डॉलर का खर्चा हुआ. इस हिसाब से जर्मनी को इस्राएल को डेढ़ करोड़ डॉलर का हर्जाना देना था. इसके अलावा नाजियों ने यहूदियों की जो संपत्ति नष्ट की, उसके छह करोड़ और मांगे गए. क्लेम्स कांफ्रेंस ने यह बात भी साफ की कि हालंकि जर्मनी आर्थिक रूप से मुआवजा देगा, लेकिन यहूदियों के साथ जो अत्याचार किए गए उसकी भरपाई वह कभी भी नहीं कर पाएगा. आज 60 साल बाद भी यह बात बिलकुल सच लगती है.

रिपोर्ट. ईशा भाटिया

संपादन: ए कुमार

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