जर्मन चुनावों में यूरो विरोधी पार्टी की जीत
१५ सितम्बर २०१४ब्रिटिश इंडेपेंडेंस पार्टी के नेता नाइजेल फराज ने इस पार्टी को कभी "थोड़ा अकादमिक, लेकिन अत्यंत दिलचस्प" बताया था. चुनावी सफलता के बाद उन्हें अपनी तारीफ में थोड़ा और उदार होना होगा. सिर्फ 19 महीने पहले बनी पार्टी जर्मनी के लिए विकल्प एएफडी ने पिछले हफ्तों तीन प्रांतों में हुए चुनावों में सफलता पाई है. ये सभी प्रांत देश के पूर्वी हिस्से में हैं. हालांकि यह सफलता सभी स्थापित पार्टियों की कीमत पर आई है लेकिन चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू खासकर प्रभावित हुई है.
एएफडी की सफलता ने मुख्य धारा की पार्टियों की इस उम्मीद को दफना दिया है कि राष्ट्रीय संसद के लिए हुए चुनावों में सीट पाने में उसकी विफलता ने उसकी कामयाबी के मौके ध्वस्त कर दिए हैं. सितंबर 2013 में एएफडी न्यूनतम पांच फीसदी मत पाने की बाधा पार नहीं कर पाई थी, लेकिन इस साल मई में हुए यूरोपीय चुनावों में उसे कामयाबी मिली और उसे जर्मनी की 96 सीटों में से 7 हासिल हुए. दो हफ्ते पहले सेक्सनी में उसे 9.7 फीसदी और अब ब्रांडेनबुर्ग और थुरिंजिया में उसे 12 फीसदी से ज्यादा मत मिले हैं.
यूरो विरोध से ज्यादा
यूरो मुद्रा के भविष्य पर संदेह जताने से ज्यादा एएफडी के अस्तित्व की सबसे बड़ी वजह यूरोप का वित्तीय संकट है, लेकिन अब जब उसे सफलता मिल रही है तो यह सुर्खियों से बाहर है. जब एएफडी का गठन हुआ था तो वह चांसलर अंगेला मैर्केल की यूरो नीतियों से नाराज पार्टी नेता बैर्न्ड लुके जैसे अनुदारवादी अर्थशास्त्रियों की पहल थी. पार्टी के पुराने बयान में कहा गया था, "यूरो मुद्रा जोन अब टिकाऊ नहीं रह गया है. प्रतिस्पर्धा के दबाव में दक्षिण यूरोप देश गरीब होते जा रहे हैं. पूरे के पूरे देश दिवालिया होने के कगार पर हैं."
हालांकि मीडिया ने इन विचारों को साधारण कह खारिज कर दिया लेकिन बहुत से जर्मन पार्टी की राय से सहमत थे. यूरोप पर एएफडी की नीति है, यूरो जोन को भंग करना और राष्ट्रीय मुद्राओं को फिर से बहाल करना या फिर छोटे छोटे मौद्रिक संघ. ब्रिटेन की यूरो विरोध यूकिप पार्टी के विपरीत एएफडी धुर राष्ट्रवादी नहीं है, वह तो यूकिप और अमेरिका की टी पार्टी से तुलना भी पसंद नहीं करती है. वह यूरोपीय संघ के खिलाफ भी नहीं है, लेकिन यूरोप में सत्ता के केंद्रीकरण के खिलाफ है.
नव अनुदारवादी
लेकिन फिर भी एएफडी का गठन और उसका विकास दिखाता है कि वह मुख्यतः सीडीयू के विद्रोही सदस्यों से बना है जो अंगेला मैर्केल की केंद्रीकरण वाली नीतियों से नाराज थे. बहुत सी नई पार्टियों की तरह एएफडी भी मुख्यधारा की पार्टियों की ताकत को कम करना चाहती है और जर्मनी की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार चाहती है जिसमें स्विट्जरलैंड की तर्ज पर फैसले जनमत संग्रह से लिए जाएं. यूकिप की तरह एएफडी आप्रवासन नियमों में भी बदलाव चाहती है. वह अनपढ़ आप्रवासियों को कल्याकारी सुविधाओं से अलग रख उनके आने को रोकना चाहती है.
बैर्न्ड लुके ने पिछले साल कहा था कि ऐसे लोग "ऐसा सामाजिक तबका बन सकते हैं जो हमारी सुविधाओं की व्यवस्था में फंस कर रह जाता है." इस तरह के बयानों को उग्र दक्षिणपंथी मतदाताओं का भी समर्थन मिलता है और सेक्सनी के मतदान के नतीजों ने दिखाया है कि एएफडी को नवनाजीवादी एनडीपी के वोट भी मिले जो विधान सभा से बाहर हो गया. एएफडी की अनुदारवादी बयानबाजी दूसरी जगहों पर भी दिखती है. वे सरकारी सबसिडी का हवाला देकर नवीकरणीय ऊर्जा का विरोध करते हैं.
यह आकलन करना जल्दबाजी होगी कि क्या एएफडी ने खुद को स्थापित कर लिया है जिसने जर्मनी का राजनीतिक परिदृश्य स्थायी रूप से बदल दिया है या फिर वह अभी विरोध जताने की पार्टी है, जैसा कि मुख्य पार्टियों का दावा है. लुके ने चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद उसे मतदाताओं के भरोसे के सबूत बताया. ब्रांडेनबुर्ग के पार्टी नेता अलेक्जांडर गाउलंड ने कहा, "हम जर्मन राजनीति में आ पहुंचे हैं, हमें अब कोई बाहर नहीं कर सकता." अब एएफडी की चुनौती यह है कि क्या वे अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं और अगले चुनावों तक समर्थन की गति बनाए रख सकते हैं.
रिपोर्ट: बेंजामिन नाइट/एमजे
संपादन: ईशा भाटिया