जर्मन मुकदमे पर तुर्की में बवाल
२९ मार्च २०१३मुकदमे के दौरान अदालत में पत्रकारों के लिए सीटों का आवंटन म्यूनिख के हाई कोर्ट का दूसरा फैसला है. केस शुरू होने से पहले ही इसकी आलोचना हो रही है. इसके पहले अदालत ने फैसला किया था कि जर्मनी में तुर्की के राजदूत को दर्शक दीर्घा में कोई तय सीट नहीं मिलेगी. आतंकी सेल एनएसयू कांड की संसदीय जांच समिति के प्रमुश सेबाश्टियान एडाथी ने अपने तुर्की दौरे पर उम्मीद जताई थी कि तुर्की के नेता उग्र दक्षिणपंथी हत्याओं की सुनवाई को अदालत में नजदीक से देख पाएंगे.
एडाथी ने सिर्फ बर्लिन में तुर्क राजदूत के बारे में ही नहीं सोचा था, बल्कि तुर्की की संसद के मानवाधिकार आयोग के प्रमुख आयहान जफर उइस्तून के बारे में भी. अंकारा में बातचीत के दौरान एडाथी से इस सिलसिले में अनुरोध किया गया था. एडाथी को उम्मीद थी कि तुर्क प्रतिनिधियों की उपस्थिति से एनएसयू के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई में पारदर्शिता का संकेत जाएगा.
तुर्कों पर प्रतिबंध
लेकिन सोशल डेमोक्रैटिक सांसद के आश्वासन का कुछ नहीं हुआ. अदालत ने तुर्क अधिकारियों के लिए सुनवाई के दौरान सीटें रिजर्व करने से इनकार कर दिया. यह फैसला अंकारा में नाक-भौं सिकोड़ने की वजह बना लेकिन तुर्क जनमत में वह कोई मुद्दा नहीं था. लेकिन तुर्की के किसी पत्रकार को सुनवाई के दौरान स्थायी जगह नहीं दी जा रही है और उन्हें वेटिंग लिस्ट से संतोष करना होगा, इसने स्थिति बदल दी है. इसके साथ म्यूनिख का मुकदमा सुनवाई शुरू होने के पहले ही तुर्की में सुर्खियों में आ रहा है. इस मुकदमे में उग्र दक्षिणपंथी गिरोह द्वारा आठ तुर्क प्रवासियों की हत्या की सुनवाई भी हो रही है.
विपक्षी नेता और यूरोपीय अदालत में जज रह चुके रजा तुरमेन ने अंकारा सरकार से मांग की है कि वह तुर्की के पत्रकारों को मुकदमा देखने की अनुमति दिए जाने के लिए दबाव डाले. स्थानीय अखबार तुर्क मीडिया के खिलाफ प्रतिबंधों की बात कर रहे हैं. हुर्रियत दैनिक ने यहां तक कहा है कि मुकदमे में पापाराजियों को भी जगह मिली है लेकिन तुर्की के अखबारों को नहीं.
फैसले के नतीजे
जर्मनी के प्रतिष्ठित तुर्क अध्ययन संस्थान के पूर्व प्रमुख फारुक सेन कहते हैं कि इस फैसले का महत्व असल मुकदमे से बाहर तक जाता है. इस समय तुर्की में जर्मन तुर्क विश्वविद्यालय की स्थापना कर रहे फारुक सेन कहते हैं, "मारे गए आठ तुर्क सिर्फ तुर्की के नागरिक थे, उनके पास जर्मन नागरिकता नहीं थी. इसका मतलब है कि तुर्की की सरकार को इन मामलों की चिंता करनी होगी, यह सिर्फ जर्मन मामला नहीं है." सेन का कहना है कि म्यूनिख की अदालत की चले तो तुर्की के राजदूत को दर्शक दीर्घा में जगह लेनी होगी, संभव है कि नवनाजी गुटों के समर्थकों के बीच. राजदूत को इनकार किया जाना और मीडिया के लिए जगह बांटने का अजीब तरीका यह संदेह पैदा करता है कि तुर्कों को बाहर रखने का इरादा है.
इससे तुर्की में यह भावना भी पैदा होगी कि जर्मन सरकार कुछ छिपाना चाहती है क्योंकि अभी तक इस बात का पता नहीं है कि कानून मंत्रालय ने कोई हस्तक्षेप किया है. लेकिन यह आसान भी नहीं है. बर्लिन से इस तरह का हस्तक्षेप जर्मनी की कानून सम्मत राज्य होने के सिद्धांत का हनन होगा, जिसका आधार सरकार और न्यायपालिका के अधिकारों के बीच साफ विभाजन है. अदालत में मीडिया को रजिस्टर करने और जगह देने का जज का अधिकार कानून सम्मत राज्य में जज की स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है.
मार्को मुकदमा
फारुक सेन को आशंका है कि तुर्की में जर्मनी की छवि को इससे नुकसान पहुंचने का खतरा है. वे एक तुलना की कोशिश भी करते हैं और एक जर्मन नौजवान मार्को वाइस के मामले की याद दिलाते हैं. मार्को वाइस को तुर्की के अंताल्या में छुट्टी बिताने के दौरान एक ब्रिटिश नाबालिग लड़की के साथ यौन दुराचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और मुकदमा चलाया गया था. इस समय जर्मनी के लिए दिलचस्प इस मामले को जर्मन पत्रकार देख पाए थे और उस पर रिपोर्ट कर पाए थे. सेन का कहना है कि जर्मनी में तुर्क पत्रकारों को इससे वंचित रखा जा रहा है.
इस्तांबुल के स्वतंत्र अखबार तरफ के मुख्य संपादक ओराल चलिस्लार म्यूनिख की अदालत में पत्रकारों को जगह देने के फैसले को बदलने की मांग करते हैं. उनका कहना है कि एनएसयू के अपराधों में जर्मन सुरक्षा अधिकारियों की संदिग्ध हिस्सेदारी की वजह से तुर्क पत्रकारों द्वारा मुकदमे की निगरानी बहुत जरूरी है. रिजर्व जगह न मिलने के बावजूद तुर्क संगठनों के बहुत सारे प्रतिनिधियों के मुकदमा शुरू होने के दिन म्यूनिख आने की संभावना है. तुर्क राजदूत कार्सलियोग्लू भी म्यूनिख जाएंगे, "मैं मुकदमे के पहले दिन वहां रहूंगा और कार्यवाही देखूंगा." चाहे उचित हो या अनुचित, एनएसयू मुकदमे के शुरू होने के पहले तुर्की में उग्र दक्षिणपंथी अपराधों की सुनवाई में जर्मन न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा हो रहे हैं.
म्यूनिख के हाई कोर्ट में एनएसयू आतंकी सेल बनाने वाले बेआटे चैपे और चार साथियों के खिलाफ मुकदमा चलेगा. उग्र दक्षिणपंथी आतंकी गिरोह ने कुछ सालों में 10 लोगों की हत्या की जिसमें एक महिला पुलिसकर्मी के अलावा नौ विदेशी नागरिक थे. उनमें आठ तुर्क थे. इसके अलावा इस गिरोह ने गो बम हमले किए और कई बैंकों को लूटा. आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों की जर्मनी में सीधे हाई कोर्ट में पहली सुनवाई होती है.
रिपोर्ट: थोमस जाइबर्ट/एमजे
संपादन: ए जमाल