जर्मन शिकंजे में नाज़ी अपराधी
१२ मई २००९89 साल के देम्यान्युक का सुबह नौ बजे म्युनिक हवाई अड्डे पर उतरना पुलिस और पत्रकारों के बीच लुकाछिपी के खेल के समान था. विमान उतरते ही एक रखरखाव हॉल में ग़ायब हो गया. एक प्रत्यक्षदर्शी फ़ोटोग्राफ़र ने बताया कि, ''उसे तुरंत छिपा दिया गया. विमान सीधे एक हैंगर में चला गया.''
बंद दरवाजों के पीछे पहले देम्यान्युक की डॉक्टरी जांच हुई. फिर उसे एक एंबुलैंस से म्युनिक के श्टाडेलहाइम जेल में पहुंचा दिया गया. जेल में उसे गिरफ्तारी का वारंट दिखाया गया.
देम्यान्युक पर आरोप है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1943 में जब वह पोलैंड के सोबिबोर यातना शिविर में एक पहरेदार हुआ करता था, तब उसने कम-से-कम 29 हज़ार यहूदियों की हत्या में हाथ बंटाया था. पोलैंड पर उस समय हिटलर के जर्मनी का क़ब्ज़ा था. सोबिबोर यातना शिविर ऐसे अनेक यातना शिविरों में से एक था, जिन्हें यहूदियों का सफ़ाया कर देने के हिटलर के आदेश पर बनाया गया था.
देम्यान्युक का पूरा नाम है ईवान निकोलायेविच देम्यान्युक. जऩ्म से यूक्रेनी है. युद्ध के समय की सोवियत लाल सेना में वह एक सैनिक था लेकिन जर्मन सेना ने उसे युद्धबंदी बना लिया था. बाद में देम्यान्युक हिटलर के सबसे नृशंस अर्धसैनिक दस्ते एसएस के नाम पर यहूदियों को सोबिबोर के यातना शिविर में ठूंसने और उनकी मौत का इंतज़ाम करने लगा. देम्यानुक इन आरोपों से इन्कार करता है.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद देम्यान्युक 1952 में अमेरिका पहुंच गया. वहा उसने अपना नाम बदल कर जॉन कर लिया. इस नाम से उसे 1958 में अमेरिका की नागरिकता भी मिल गयी. लेकिन, 70 के दशक में उसकी पहचान हो गई और उसे गिरफ़्तार कर लिया गया. तब उसकी अमेरिकी नागरिकता छीन ली गयी और इस्राएल भेज दिया गया था. इस्राएल की एक अदालत ने 1988 में देम्यान्युक को मौत की सज़ा सुनाई थी. 1993 तक वह एक इस्राएली जेल में भी रहा. लेकिन बाद में इस्राएली सुप्रीम कोर्ट ने संदेह के आधार पर उसे छोड़ दिया. देम्यान्युक इसके बाद अमेरिका लौटा. वहां की नागरिकता भी उसे वापस मिल गयी.
लेकिन साल भर पहले देम्यान्युक के सितारे एक बार फिर डूबने लगे. जर्मनी में लूडविशबुर्ग स्थित नाज़ी अपराधों संबंधी केंद्रीय जांच कार्यालय के एक जांचकर्ता को एक समाचार पत्र में एक सूचना दिखाई पड़ी. इस के बाद जांच-मशीनरी एक बार फिर चल पड़ी. जर्मन अधिकारियों को एक गवाह और देम्यान्युक का वह पुराना पहचानपत्र भी मिल गया, जिस से सिद्ध होता है कि वह सोबिबोर यातना शिविर में नाज़ियों का "मददगार" रह चुका है. तब से जर्मनी उसका प्रत्यर्पण पाने और उस पर मुकदमा चलाने के लिए कोशिशें तेज़ की.
देम्यानुक अमेरिकी अदालतों में अपीलें कर-कर साल भर अपने प्रत्यर्पण को टालने में सफल होता रहा. अंततः गत सप्ताह मंगलवार को अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने उसका प्रत्यर्पण स्थगित करने की अपील अंतिम रूप से रद्द कर दी. अब देखना है कि जर्मन न्याय प्रणाली के आगे वह अपना बचाव कैसे करता है.
रिपोर्टः राम यादव/डीपीए, एपी
संपादनः उज्ज्वल भट्टाचार्य