1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मन हथियारों से लड़े जा रहे हैं युद्ध

२० जुलाई २०२०

पिछले कुछ सालों में जर्मनी की छवि युद्ध से भाग कर आ रहे शरणार्थियों को अपनाने वाले देश के रूप में उभरी है. लेकिन एक ताजा शोध बताता है कि जर्मनी के हथियार दुनिया के कई हिस्सों में युद्ध लड़ने के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं.

https://p.dw.com/p/3falQ
Sturmgewehr G36 von Heckler & Koch
तस्वीर: picture-alliance/P. Pleul

एक ताजा शोध के अनुसार जर्मनी ने 30 वर्षों तक हथियार निर्यात नियमों का व्यवस्थित रूप से उल्लंघन किया है. पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट फ्रैंकफर्ट (पीआरआईएफ) के इस शोध में कहा गया है, "जर्मनी ऐसे देशों को हथियार निर्यात करता रहा है, जो युद्ध और संकट से प्रभावित हैं, जहां मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और जहां के इलाके तनावग्रस्त हैं." पीआरआईएफ ने उस शोध के लिए 1990 के बाद से जर्मन हथियार निर्यात नीति की जांच की और पता लगाया कि क्या वह हथियारों के निर्यात के लिए यूरोपीय संघ के आठ-बिंदुओं वाले मानदंडों का पालन कर रहा है या नहीं.

यूरोपीय संघ के मानदंड के अनुसार हथियार जिस देश को भेजे जा रहे हैं, वहां "मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का सम्मान" होना चाहिए, और उस इलाके में "शांति, सुरक्षा और स्थिरता होनी चाहिए." शोध के अनुसार जर्मनी ने "बार बार इन मानदंडों का उल्लंघन किया है." ग्रीनपीस के निरस्त्रीकरण विशेषज्ञ अलेक्जांडर लुत्स ने फ्रांस की समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "जर्मन हथियार युद्ध क्षेत्रों में और तानाशाहों के हाथों में व्यवस्थित रूप से दिखाई दे रहे हैं. हमें जल्द से जल्द सख्त हथियार निर्यात कानून की आवश्यकता है, जो विकासशील देशों को निर्यात पर प्रतिबंध लगाए और जानबूझकर निर्यात के दिशानिर्देशों की व्यवस्थित रूप से हो रही इस अवहेलना को समाप्त करे."

ताजा शोध के अनुसार, "जर्मन हथियारों से युद्ध लड़े जा रहे हैं और गंभीर रूप से मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है." शोधकर्ताओं ने मेक्सिको में सितंबर 2014 में हुई एक घटना का उदाहरण दिया है, जिसमें पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर गोलियां चलाई. पुलिस ने जर्मन कंपनी हेकलर एंड कॉख की जी-36 असॉल्ट राइफलों से छात्रों पर हमला किया था. इसके अलावा रिपोर्ट के अनुसार यमन में चल रहे युद्ध में भी जर्मन निर्मित हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है. पीआरआईएफ ने यह भी दावा किया है कि जर्मन सेना के और पूर्व जर्मनी की नेशनल पीपुल्स आर्मी के पुराने स्टॉक को भी आंशिक रूप से उन देशों में भेजा जा रहा है जो न तो यूरोपीय संघ का हिस्सा हैं और न ही नाटो के सदस्य हैं.

रिपोर्ट में लिखा गया है, "जर्मनी से गैर-नाटो राज्यों को युद्ध के हथियारों की आपूर्ति पर 1971 में जो प्रतिबंध लगा, उसके लिए राजनीतिक सिद्धांतों, कानूनों और विभिन्न प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर जटिल नियम बनाए गए. इनमें यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय नियमों को भी जोड़ा गया." लेकिन इसके बावजूद 1990 के बाद से विकासशील देशों को हथियार निर्यात को बड़े पैमाने पर मंजूरी दी गई है. रिपोर्ट में लिखा गया है, "ऐसे मामलों को वास्तव में अपवाद होना चाहिए, लेकिन लगभग 60% के लाइसेंस स्तर के साथ, पिछले कुछ सालों में यह आम बात हो गई है. रिपोर्ट के लेखकों की मांग है कि ऐसा कानून बनाया जाए जो वाकई हथियार निर्यात को नियंत्रित कर सके.

पीआरआईएफ जर्मनी के सबसे बड़े शांति अनुसंधान संस्थानों में से एक है और इसका उद्देश्य दुनिया भर में हिंसक संघर्ष के कारणों का विश्लेषण करना और नीति निर्माताओं के साथ सिफारिशें साझा करना है.

रिपोर्ट: मेलिसा सू/आईबी

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी