जर्मनी मीडिया: भारत-पाक आ रहे हैं नज़दीक
२ जुलाई २०१०भारत और पाकिस्तान में कुछ ही दिन पहले इस्लामाबाद में हुई दोनों देशों के गृहमंत्रियों की बातचीत को अच्छी शुरुआत बताया गया है. जर्मनी के समाजवादी अख़बार नोएस डॉएचलांड ने टिप्पणी कीः
दोनों देशों के मंत्रियों ने पक्का इरादा कर रखा था कि वे दोनों सरकारों के बीच शक को कम करना चाहते हैं. बहुत ही सावधानी से शांति प्रक्रिया को फिर से बहाल करने की कोशिश करना चाहते हैं. जैसा कि अनुमान था, दोनों मंत्रियों की बातचीत के केंद्र में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध था. भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि दिल्ली इस बात की उम्मीद रखता है कि पाकिस्तान दृढ़निश्चय के साथ मुंबई में 2008 में हुए आतंकवादी हमलों के सूत्रधारों के खिलाफ कार्रवाई करेगा. चिदंबरम ने मुख्य संदिग्ध हाफिज़ सईद के बारे में नए सबूत पेश किए. पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने इसके जवाब में वादा किया कि वह इन सबूतों की नए सिरे से जांच करना चाहते हैं. उनका कहना था कि वह भारत के रुख को समझ सकते हैं और चाहते हैं कि दक्षिण एशिया में आतंकवादी घिनौनेपन का एकसाथ उन्मूलन किया जाए.
14 जून को भारत की राजधानी दिल्ली में दो युवा प्रेमियों की लाशें मिलीं. वे इज़्जत के नाम पर हत्या यानी ऑनर किलिंग का शिकार बने थे. यह त्रासदी कोई इकलौता मामला नहीं हैं. इसके पीछे जात-पात वाली जो सोच है, उसे आज के भारत में भी भुलाया नहीं गया है. भारत के लेखक चंद्रहास चौधरी स्विट्ज़रलैंड से प्रकाशित होने वाले अखबार नोए त्स्युइरिशर त्साईटुंग में लिखते हैं,
इस तरह के अपराधों में हो रही बढ़ोतरी... भूकंप जैसे उन झटकों की भी सूचक है, जिन से भारतीय समाज को दो-चार होना पड़ रहा है. इज़्ज़त के नाम पर हत्याएं परिवर्तन के एक ऐसे दौर की ओर संकेत करती हैं, जिसमें अब तक की पारंपरिक व्यवस्था-- अक्सर हिंसा के बल पर-- प्रेम-संबंधों और प्रेम-विवाहों की हामी उन्मुक्त और निश्चिंत विचारों वाली युवा पीढ़ी से अपनी बात मनवाना चाहती है. इन हत्याओं से भी शायद कहीं ज़्यादा डरावना यह तथ्य है कि समाज का एक बड़ा वर्ग इसे सही मानता है और मन ही मन स्वीकार भी करता है. ऐसे युगल, जो सामाजिक मानदंडों की अवहेलना करते हुए विवाह करते हैं, न तो अपने परिवार से और न ही सुरक्षा बलों की ओर से कोई समझ और सहानुभूति पाने की आशा कर सकते हैं. इसीलिए ऐसी मान-हत्याओं को छिपाने में लोग अक्सर सफल भी हो जाते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान का असर बढ़ रहा है. यह मानना है जर्मनी के प्रमुख दैनिक फ्रांकफुर्टर अल्गेमाईने त्साईटुंग का. अखबार लिखता है,
दोनों देशों के बीच काफी तनावपूर्ण संबंध करीब आधे साल से बेहतर होते जा रहे हैं. प्रेक्षकों का मानना है कि अफ़गान राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने यह समझ लिया है कि नाटो तालिबान के खिलाफ युद्ध कभी जीत नहीं सकता, इसलिए अफ़गानिस्तान के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए नए सहयोगियों की ज़रूरत है. इस्लामाबाद इस वक्त मध्यस्थ के रूप में पेश आने लगा है, सलाहकार बन गया है और ऐसा मुख्य खिलाड़ी भी है, जिसके बिना कोई काम नहीं हो सकता. विशेषज्ञ इस इलाके में राजनैतिक परिवर्तनों की गति और भी तेज़ होती देख रहे हैं. इसके पीछे अफ़ग़ानिस्तान के भीतर और उसके बाहर सत्ता संतुलन में परिवर्तन लाने के पाकिस्तान के प्रयास छिपे हुए हैं.
जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में ग़ैरकानूनी ढंग से ऐसे देशों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं जो यातना देते हैं. इस तरह वे दुनिया भर पर लागू होने वाले यातना प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रहे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय कानून का एक मूल तत्व है. सभी देशों को इसका पालन करना चाहिए- शांति और युद्ध के समय भी-- ह्यूमन राइट्स वॉच ने 58 पन्नों वाली अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है. म्यूनिख से प्रकाशित अख़बार ज़्युइडडॉएचे त्साईटुंग का मानना है कि पाकिस्तान इन आरोपों के केंद्र में है. अखबार का कहना है,
अनुमान यही है कि इस्लामी आतंकवाद के अड्डे पाकिस्तान में ही हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक जर्मन जांचकर्ताओं को पाकिस्तानी गुप्तचर सेवा आईएसआई से मिलने वाली सूचनाओं का आम तौर पर कोई शीर्षक नहीं होता और न उन पर कोई हस्ताक्षर होते हैं. वे अधिकतर इन शब्दों के साथ शुरू होती हैं: "दोस्तों से दोस्तों के लिए." ह्यूमन राइट्स वॉच ने पश्चिमी गुप्तचर सेवाओं की इस बात के लिए आलोचना की है कि वे सूचनाएं तो ले लेती हैं, पर देने वाले से यह नहीं पूछती कि उन्हें वे कैसे मिलीं. इसीलिए ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी रिपोर्ट को शीर्षक भी दिया है "बिना पूछे." उसने पश्चिमी देशों के अधिकारियों को यह कहते बताया है कि पूछताछ के तरीकों के बारे में बहुत ज़्यादा पूछने से सूचना-प्रवाह ख़तरे में पड़ सकता है. वैसे, यातना देने के तरीके भी सबको पता तो हैं ही. वे सोने नहीं देने और कानफोड़ ऊंची आवाज़ में देर तक संगीत सुनाने से ले कर ठोकरें मारने और पिटाई करने, पैरों के नाखून और दांत उखाड़ देने तथा यौनदुराचार तक पहुंचते हैं.
बांग्लादेश के बहुत कम वेतन पाने वाले कपड़ा उद्योग कर्मचारी देश की सरकार पर भरोसा नहीं कर रहे हैं कि वह जुलाई के अंत तक उनके न्यूनतम वेतन को दो गुना कर देगी. इसलिए 15 000 कर्मचारियों ने बुधवार को राजधानी ढाका में प्रदर्शन किए. उनकी मांग थी कि उनके वेतन तुरंत बढ़ने चाहिए. इस पर हिंसक झड़पें भी हुईं. बर्लिन के टागेसत्साईटुंग का कहना है,
कपड़ा उद्योग से जुड़ी देश की करीब 4000 कंपनियों में दुनिया भर में सबसे कम वेतन दिये जाते हैं. इस उद्योग में करीब 25 लाख कर्मचारी काम करते हैं. न्यूनतम वेतन 1662,50 टाका मासिक तय किया गया है. यह है करीब 1200 रुपये मासिक के बराबर. 'यदि न्यूनतम वेतन 5000 टाका प्रति महीने तक नहीं बढाया गया, तब हम आगे प्रदर्शन करेंगें', यह श्रमिक संघ के एक नेता का कहना था. लेकिन ऐसा लगता है कि यदि सरकार न्यूनतम वेतन को दुगुना कर देती है, तब ट्रेड यूनियनें उसका साथ देंगी, अब तक सिर्फ कुछ ही मामलों में वाकई में कर्मचारियों की हालत बेहतर हुई थी. तब, जब पश्चिमी देशों में बांग्लादेशी कपड़ों को खरीदने वाली कंपनियां निर्माता कंपनियों पर दबाव डालती थीं.
संकलन: प्रिया एसेलबॉर्न
संपादन: महेश झा