जर्मनी में आज भी क्यों तैनात हैं अमेरिकी सैनिक?
२३ अगस्त २०१९द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से जर्मनी यूरोप में अमेरिका की रक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. युद्ध के खत्म होने के बाद जर्मनी पर 10 साल तक मित्र देशों का कब्जा रहा था और अमेरिकी सेना इसका हिस्सा थी. हालांकि सेना की संख्या धीरे-धीरे कम होती गई लेकिन अमेरिकी सेना आज भी यहां मौजूद है. बीच के दशकों में अमेरिकी सेना ने जर्मनी में कई शहरों का भी गठन किया.
अमेरिका के लिए जर्मनी का रणनीतिक महत्व दक्षिण-पूर्वी शहर श्टुटगार्ट स्थित अमेरिकी यूरोपीय कमांड (ईयूसीओएम) के मुख्यालय से दिखता है. इस जगह से यूरोप के 51 देशों में मौजूद अमेरिकी सेना के बीच समन्वय स्थापित किया जाता है. ईयूसीओएम का मिशन संघर्ष को रोकना और नाटो जैसे सहयोगी से साझेदारी और अंतरराष्ट्रीय खतरों से अमेरिका की रक्षा और बचाव करना है. इसकी कमान में यूएस आर्मी यूरोप, यूएस एयर फोर्स इन यूरोप और यूएस मरीन कॉर्प्स फोर्सेज यूरोप हैं, जिनके सभी प्रतिष्ठान जर्मनी में हैं.
पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा अमेरिकी सैनिक जर्मनी में हैं. यहां 38,600 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. हालांकि यह संख्या घटती-बढ़ती रहती है क्योंकि वे अकसर एक देश से दूसरे देश में जाते रहते हैं. जापान के अलावा इतनी ज्यादा संख्या में अमेरिकी सेना के जवान और कहीं नहीं है. हाल के वर्षों में इस संख्या में कमी भी हुई है. जर्मन सरकार के आंकड़े दिखाते हैं कि 2006 और 2018 के बीच अमेरिकी सैनिकों की संख्या 72,400 से घटकर 33,250 हो गई है.
जर्मनी में अमेरिकी सेना
यूरोप में अमेरिकी सेना के सात ठिकाने हैं, जिनमें से पांच जर्मनी में हैं. अन्य दो में एक बेल्जियम और एक इटली में है. अमेरिकी आर्मी यूरोप का मुख्यालय मध्य पश्चिमी जर्मनी के फ्रैंकफर्ट के समीप स्थित शहर वीजबाडेन में स्थित है.
यूएस मिलिट्री द्वारा डीडब्ल्यू को दिए गए आंकड़ों के अनुसार इन पांच ठिकानों में प्रत्येक में अलग-अलग जगहों पर विभिन्न प्रतिष्ठान हैं. यहां वर्तमान में करीब 29 हजार सेना के जवान हैं, जिसमें यूरोप और अफ्रीका के अमेरिकी मरीन कॉर्प्स फोर्सेज भी शामिल हैं. इसके अतिरिक्त करीब 9600 अमेरिकी एयरफोर्स के जवान जर्मनी के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं. इसमें अमेरिकी एयरफोर्स को दो ठिकाने रामश्टाइन और श्पांगडालेम भी शामिल है.
स्थानीय लोगों को रोजगार
अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठान अमेरिकी नागरिकों को भी रोजगार देते हैं. यहां काम करने वाले लोग परिवारों को भी अपने साथ ला सकती हैं. इस वजह से ठिकानों के आसपास एक बड़ा आवासीय परिसर बन जाता है. रामश्टाइन के निकट स्थापित अमेरिकी ठिकाना एक छोटा शहर बन चुका है. इसमें न केवल बैरक, हवाई क्षेत्र, व्यायाम क्षेत्र और सामग्री रखने के डिपो हैं, बल्कि शॉपिंग मॉल, स्कूल, डाक सेवा और पुलिस थाना भी है. कहीं कहीं तो अमेरिकी मुद्रा भी वैध होती है.
इन ठिकानों पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को भी रोजगार दिया जाता है. इससे ठिकानों के आसपास रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती है. 2014 में जब बामबेर्ग में आर्मी ठिकाना बंद हुआ था तो स्थानीय लोगों ने काफी विरोध किया था.
जर्मनी में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति जवानों की संख्या तक सीमित नहीं है. अमेरिका जर्मनी में गैर-अमेरिकी ठिकानों पर भी अपने जहाजों को रखता है. नाटो के परमाणु साझेदारी समझौते के तहत माना जाता है कि पश्चिमी जर्मनी में बुशेल एयरबेस में अनुमानित 20 परमाणु हथियार रखे गए हैं. जर्मनी के लोगों ने कई बार इसकी आलोचना भी की है. एक व्यवस्था यह है कि यमन और अन्य जगहों पर ड्रोन हमलों के लिए एक नियंत्रण केंद्र के रूप में रामश्टाइन एयरबेस का उपयोग किया जाता है. इस व्यवस्था पर काफी विवाद होता है.
कब्जे की विरासत
जर्मनी में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कब्जे की विरासत के रूप में है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 से 1955 तक करीब 10 वर्षों तक जर्मनी मित्र देशों के कब्जे में रहा था. इस दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ के लाखों सैनिक जर्मनी में तैनात थे. जर्मनी का उत्तर-पूर्व हिस्सा जो कि अक्टूबर 1949 में आधिकारिक तौर पर पूर्वी जर्मनी बना, सोवियत संघ के नियंत्रण में था.
पूश्चिम जर्मनी का गठन अप्रैल 1949 में हुआ. इसी महीने में ऑक्यूपेशन स्टेटस पर हस्ताक्षर हुआ. इसी के तहत देश को नियंत्रित किया जाने लगा. इस कानून के वजह से ही फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका को देश में सेना को रखने और पश्चिम जर्मनी के मौजूदा सेना तथा हथियार हटाने पर पूर्ण नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति मिली.
जब आधिकारिक रूप से पश्चिमी जर्मनी से सैन्य कब्जा हट गया, देश को फिर से अपनी रक्षा नीति मिली. हालांकि एक अन्य समझौते द्वारा अपने नाटो सहयोगियों के साथ ऑक्यूपेशन स्टेटस को आगे बढ़ाया गया. इसे जर्मनी में विदेशी सेनाओं की उपस्थिति पर कन्वेंशन के रूप में जाना जाता है. 1954 में पश्चिमी जर्मनी ने इस पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद अमेरिका सहित नाटो के 8 सदस्यों को जर्मनी में नियमित रूप से अपनी सेना रखने की इजाजत मिली. यह संधि आज भी जर्मनी में तैनात नाटो सैनिकों के नियमों और शर्तों को नियंत्रित करती है.
1990 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिकी सैनिकों की संख्या में कमी आनी शुरू हुई. जर्मन सरकार के अनुसार उस समय करीब चार लाख विदेशी सैनिक जर्मनी में थे. इसमें करीब आधे अमेरिकी सैनिक थे. लेकिन जैसे ही रूस से तनाव घटा, अमेरिकी सैनिकों की संख्या कम हो गई. अन्य जगहों पर भी टकराव के दौरान उन्हें बुलाया जाता रहा है, जैसे कि इराक में पहले खाड़ी युद्ध के दौरान.
रिपोर्ट: बेंजामिन नाइट/आरआर
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