जर्मनी में कैसे होते हैं चुनाव?
२३ अप्रैल २०२१जर्मनी में संसद के निचले सदन बुंडेसटाग के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया की जटिलता जगजाहिर है. दरअसल, व्यवस्था कुछ इस तरह बनाई गई है कि उसमें सीधे चुनाव और अनुपातिक प्रतिनिधित्व दोनों ही व्यवस्थाओं के फायदों का समावेश हो, और साथ ही जर्मन इतिहास की वे गलतियां भी ना दोहराई जा सकें जिनके कारण पहले और दूसरे विश्व युद्ध के बीच वाइमार रिपब्लिक में राजनीतिक विखंडन झेलना पड़ा था.
कौन डाल सकता है वोट?
2017 के आम चुनाव में वोट डालने वालों की संख्या बढ़कर 70 फीसदी तक पहुंच गई थी, जबकि इसके ठीक चार साल पहले अच्छी-खासी गिरावट दर्ज हुई थी. दरअसल, लोक-लुभावन आंदोलनों के कारण वे लोग भी वोट डालने पहुंचे जो आमतौर पर मतदान केंद्र से दूर रहते थे और राज्यों वे केंद्रीय चुनावों में वोट प्रतिशत बढ़ गया. जर्मनी के केंद्रीय सांख्यिकी ऑफिस के मुताबिक अब छह करोड़ लोग 18 साल से ऊपर हैं और 2021 में मतदान के काबिल होंगे.
इनमें से छह करोड़ 3.1 करोड़ महिलाएं हैं और 2.92 करोड़ पुरुष. करीब 28 लाख वोटर पहली बार मतदान करेंगे. जर्मनी के कुल मतदाताओं के करीब एक तिहाई 60 साल से ऊपर के हैं. यानी बुजुर्गों की चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की संभावना अब भी बनी हुई है. सबसे ज्यादा मतदाता देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले पश्चिमी राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में रहते हैं. उसके बाद दक्षिणी राज्यों बवेरिया और बाडेन-वुर्टेमबर्ग का नंबर है.
26 सितंबर को जब जर्मन लोग मतदान के लिए जाएंगे तो उन्हें दिखने में साधारण लगने वाला एक बैलट मिलेगा जिस पर दो विकल्प होंगे – जिले का प्रतिनिधि और पार्टी का प्रतिनिधि.
पहला वोट जिसे एर्सटश्टिमे कहते हैं जिले के प्रतिनिधि के लिए होता है. यह अमेरिका के चुनावों जैसी प्रक्रिया है. वोटर संसद में अपने जिले का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रतिनिधि चुनते हैं. संसद में ऐसी 299 सीटें हैं और हर सीट लगभग ढाई लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करती है. इन प्रतिनिधियों को संसद में सीट मिलना तय है.
बैलट का जो दूसरा हिस्सा होता है, उसमें बुंडेसटाग की कुल 598 सीटों की बाकी आधी सीटों के प्रतिनिधि चुनने के लिए इस्तेमाल होता है. इसे दूसरा वोट या स्वाइटेश्टिमे कहते हैं. यह वोट किसी एक उम्मीदवार के बजाय पार्टी को जाता है. और इसके जरिये यह भी तय होता है कि संसद में किस पार्टी को कितने प्रतिशत सीटें मिलेंगी.
जिन राज्यों में आबादी ज्यादा है, वहां से ज्यादा प्रतिनिधि संसद में पहुंचते हैं. जो चीज चुनावों को दिलचस्प बनाती है, वह ये है कि मतदाता अपने मतों को पार्टियों और उम्मीदवारों के बीच बांट सकते हैं. यूं समझिए कि किसी मतदाता ने अपना पहला वोट स्थानीय सीडीयू उम्मीदवार को दिया लेकिन दूसरा वोट अन्य पार्टी एफडीपी को दिया ताकि सीडीयू की पारंपरिक सहयोगी छोटी पार्टी भी संसद में पहुंच जाए.
मतदाता जर्मन मतपत्रों से दो वोट देने के लिए तैयार होते हैं. मतपत्र दो हिस्सों में बंटा होता है. पहला कॉलम काला होता है और दूसरा नीला. हरेक के जरिये एक उम्मीदवार या पार्टी को सीधे वोट दिया जाता है.
ओवरहैंग सीटें
कभी कभी ऐसा होता है कि किसी पार्टी को पहले वोट के जरिये अपने पार्टी वोट से ज्यादा सीटें मिल जाती हैं. अब ऐसे में सीधे जीतकर आए उम्मीदवारों को तो सीट मिलना तय होता है, इसलिए पार्टी को वे अतिरिक्त सीटें मिल जाती हैं, जिन्हें ओवरहैंग सीट कहते हैं. दूसरी पार्टियों को इस कमी को पूरा करने के लिए अतिरिक्त सीटें मिलती हैं. नतीजा ये होता है कि संसद की सीटें तय 598 से ज्यादा हो जाती हैं. इसी कारण मौजूदा संसद में 709 सीटें हैं.
5 फीसदी की बाधा
बुंडेसटाग में किसी पार्टी को प्रवेश तभी मिलता है जब दूसरे वोट से उसने कम से कम पांच फीसदी मत पाए हों. इस व्यवस्था से बहुत छोटी पार्टियों को संसद में प्रवेश मिलने से रोका जा सकता है. 1920 के दशक में इन्हीं छोटी पार्टियों ने वाइमार रिपब्लिक में तोड़फोड़ मचाई थी. इस 5 फीसदी की बाधा ने ही एनपीडी और अन्य अति-दक्षिणपंथी पार्टियों संसद में जाने से रोक रखा है.
फिलहाल संसद में छह पार्टियों के प्रतिनिधि हैः चांसलर अंगेल मैर्केल की सेंटर-राइट सीडीयू और बवेरिया में उसकी सहयोगी क्रिश्चन सोशल यूनियन (सीएसयू), सेंटर लेफ्ट पार्टी सोशल डेमोक्रैट्स (एसपीडी), लेफ्ट पार्टी ग्रीन्स और दक्षिणपंथी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) जो 2017 के चुनावों में सबसे मजबूत पार्टी बनकर उभरी थी. इस पार्टी की स्थापना 2013 में हुई थी और उसने न सिर्फ जर्मनी के सभी 16 राज्यों में बल्कि यूरोपीय संसद में भी अपनी जगह बना ली.
चांसलर कौन चुनता है?
जर्मनी में चांसलर यानी सरकार के अध्यक्ष का चुनाव अमेरिका की तरह सीधे मतदान से नहीं होता. चांसलर के चुनाव से पहले नई संसद का मतदान के एक महीने के भीतर मिलना जरूरी होता है.
ऐसा एक महीने से पहले भी हो सकता है, जो गठबंधन की बातचीत के पूरा होने पर निर्भर करता है. सबसे ज्यादा वोट जीतने वाली पार्टी का नेता गठबंधन बनाता है और औपचारिक राष्ट्राध्यक्ष यानी राष्ट्रपति इस नेता को चांसलर के रूप में पेश करता है. उसके बाद गोपनीय वोट के जरिए संसद सदस्य इस चुनाव पर सहमति की मुहर लगाते हैं.