जर्मनी में भी मना एर्दोवान की जीत का जश्न
२५ जून २०१८एर्दोवान भले ही दूसरी बार देश के राष्ट्रपति बने हैं लेकिन सत्ता उनके पास 15 सालों से है. 2003 से 2014 तक वे तुर्की के प्रधानमंत्री रहे. तुर्की में उनके समर्थकों में तो जीत का जश्न देखा ही गया, साथ ही जर्मनी में भी एर्दोवान के नाम के नारे सुनाई दिए. बर्लिन और कोलोन समेत जर्मनी के कई शहरों में तुर्क मूल के लोगों को हाथ में तुर्की का झंडा लिए खुशी का इजहार करते देखा गया. रविवार रात राजधानी बर्लिन में नजारा कुछ वैसा था जैसा अकसर फुटबॉल मैच जीतने के बाद देखने को मिलता है. स्थानीय मीडिया के अनुसार तुर्क मूल के लोग अपनी गाड़ियों में सवार जोर जोर से हॉर्न बजाते हुए सड़कों पर निकले और खिड़की से सिर बाहर निकल कर, "हमारा नेता, एर्दोवान" के नारे लगाते रहे. वहीं कोलोन शहर में पुलिस को भीड़ की नारेबाजी देखते हुए कुछ देर के लिए सड़क की बंद करनी पड़ी.
राजनीतिक रूप से तुर्की दो हिस्सों में बंटा है. एक हिस्सा वो जो एर्दोवान को पूरी तरह अपना समर्थन देता है और दूसरा उनका कड़ा आलोचक है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एर्दोवान और उनकी नीतियों की कड़ी आलोचना होती है. जर्मनी के तुर्क मूल के सांसद चेम ओएजदेमीर ने ट्वीट कर जर्मनी में मनाए जा रहे एर्दोवान की जीत के जश्न की आलोचना की. उन्होंने लिखा, "जर्मनी में एर्दोवान के समर्थक ना केवल एक तानाशाह (की जीत) का जश्न मना रहे हैं, बल्कि हमारे उदारवादी लोकतंत्र को नकार भी रहे हैं." जर्मनी की उग्र दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी से इसकी तुलना करते हुए उन्होंने आगे लिखा, "ठीक एएफडी की तरह, हमें इसकी भी चिंता करनी चाहिए."
जर्मनी में करीब 25 लाख तुर्क मूल के लोग रहते हैं. इनमें से करीब सात लाख के पास जर्मनी की नागरिकता है. 4 लाख 75 हजार ने इस चुनाव में हिस्सा लिया. यह वोट देने के लिए योग्य लोगों का कुल 43 फीसदी था. जर्मनी और तुर्की की अगर तुलना की जाए, तो जहां तुर्की में एर्दोवान को 52.6 प्रतिशत वोट मिले, तो वहीं जर्मनी में 65.7 प्रतिशत. साथ ही संसदीय चुनावों में उनकी एकेपी पार्टी को तुर्की में 42.5 फीसदी वोट मिले हैं और जर्मनी में 56.3 फीसदी. विपक्ष के नेता मुहर्रम इंचे की सीएचपी पार्टी को जहां तुर्की में 31 फीसदी वोट मिले हैं, तो जर्मनी में महज 22 फीसदी ही. इससे पहले अप्रैल 2017 में हुए जनमत संग्रह के दौरान भी जर्मनी में रहने वाले तुर्क मूल के लोगों में 63 फीसदी ने देश की व्यवस्था को बदलने की पक्ष में मत दिया था, जबकि तुर्की में 51 फीसदी लोगों ने "हां" में अपना मत दिया था. तुर्की में इस जनमत संग्रह के बाद से राष्ट्रपति शासन वाली व्यवस्था की शुरुआत हुई.
जर्मनी में मौजूद तुर्क मूल की इतनी बड़ी संख्या की वजह देश का इतिहास है. दरअसल 60 के दशक में बड़ी संख्या में तुर्की से लोगों को मजदूरी के लिए यहां बुलाया गया था. देश के पुनर्निर्माण में इन लोगों ने बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि शुरुआत में इन्हें केवल दो साल के लिए ही बुलाया जाता था और परिवार को साथ में लाने की भी अनुमति नहीं होती थी लेकिन वक्त के साथ नियम कानून बदले और अधिकतर लोग जर्मनी में ही बस गए. आज जर्मनी में मौजूद विदेशियों का सबसे बड़ा तबका तुर्क मूक का ही है.