जर्मनी में रिटायरमेंट की उम्र 70 साल करने का समय आ गया क्या?
२९ अगस्त २०२२जर्मनी में इस साल की पहली तिमाही में खाली पड़े पदों की संख्या अभूतपूर्व तरीके से बढ़ कर 1.74 लाख तक चली गई. 30 साल पहले जर्मनी के एकीकरण के बाद यह पहली बार हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियों के पद खाली हैं.
इसके साथ ही जर्मनी में युवाओं की आबादी भी रिकॉर्ड स्तर पर कम है. संघीय सांख्यिकी विभाग के मुताबिक जुलाई में जर्मनी की कुल आबादी के महज 10 फीसदी लोग ही 15 से 24 साल के बीच की उम्र के हैं. इसके उलट 65 साल से अधिक उम्र वाले लोगों की तादाद 20 फीसदी से ज्यादा है.
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देश में बच्चों की जन्मदर उम्र में हुए बदलाव की तुलवना में काफी कम है. इसका एक मतलब यह है कि पेंशन फंड पर भी काफी ज्यादा दबाव है.
इसका एक समाधान यह है कि रिटायर होने की उम्र 70 साल कर दी जाए. मेटल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग उद्योग में जर्मन एंप्लॉयर्स एशोसियेशन के प्रमुख स्टेफान वोल्फ ने अगस्त की शुरुआत में इस कदम की बात की थी. गर्मियों की छुट्टी के मौसम में यह प्रस्ताव राष्ट्रीय मीडिया ने आनन फानन में देश के कोने कोने तक पहुंचा दिया.
व्यापार संघ, सामाजिक गुट और वामपंथियों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. समाजवादी लेफ्ट पार्टी के डीटमार बार्च ने इस प्रस्ताव को, "समाज विरोधी बकवास कहा है." फिलहाल जर्मनी धीरे धीरे उन लोगों की रिटायरमेंट की उम्र 65 साल से 67 साल करने में जुटा है जिनका जन्म 1967 के बाद हुआ.
पेंशन सिस्टम के बिखरने की भविष्यवाणी
अर्थशास्त्री 1980 के दशक से ही चेतावनी दे रहे हैं किजर्मनी के पेंशन सिस्टम के धराशायी होने का खतरा सिर पर मंडरा रहा है. इसके जवाब में मध्य वामपंथी पार्टी क्रिश्चियान डेमोक्रैटिक यूनियन यानी सीडीयू के नेता और देश के श्रम मंत्री रहे नॉर्बर्ट ब्लुएम ने 1986 में वादा किया था, "पेंशन सुरक्षित हैं," लेकिन क्या यही बात आज कही जा सकती है.
जर्मनी में पेंशन का खर्च कथित "पे ऐज यू गो" सिस्टम से निकलता है. सरकारी नौकरी करने वाले से लेकर सेल्फ इंप्लॉयड तक ज्यादातर जर्मन सरकारी रिटायरमेंट फंड में योगदान देते हैं. इसी पैसे का इस्तेमाल रिटायर हुए लोगों की पेंशन में किया जाता है. फिलहाल कर्मचारी अपने मासिक आय का नौ फीसदी पेंशन फंड में डालते हैं. इतना ही पैसा उन्हें नौकरी देने वाली कंपनी भी डालती है.
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हालांकि ऐसी व्यवस्था इस धारणा पर टिकी है कि सरकारी फंड में पर्याप्त लोग पैसा डाल रहे हैं जिससे मौजूदा दौर की पेंशन का भुगतान हो जाता है. इस व्यवस्था में उम्रदराज होती आबादी समस्या पैदा करती है.
वर्तमान श्रम मंत्री हुबर्टस हाइल सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के हैं. उन्होंने रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने के विचार और इस पर चल रही बहस को "फैंटम डिबेट" को पहले ही खारिज कर दिया है.
मिले जुले प्रस्ताव
म्यूनिख सेंटर फॉर द इकोनॉमिक्स ऑफ एजिंग के योहानेस राउश कहते हैं, "रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाना हमेशा ही एक अलोकप्रिय कदम रहा है. यही वजह है कि राजनेता इसे जितना संभव हो टालने की कोशिश करते हैं. हालांकि मैं कल्पना कर सकता हूं कि 2030 के दशक के मध्य में हम डेमोग्राफी में परिवर्तन के बीच फंस जाएंगे तब शायद कुछ होगा."
राउश का कहना है कि रिटायरमेंट की उम्र आने वाले समय में जीवन प्रत्याशा बढ़ने के साथ बढ़ेगी. यह काम जल्दी या देर से हो सकता है वैसे ज्यादा उम्मीद तो देर की ही है. इस तरह से पेंशन फंड में पैसा डालने वाले लोग पर्याप्त होंगे. इसका मतलब है कि इसमें योगदान कम रहेगा जबकि पेंशन ज्यादा मिलेगी.
ऐसा करने वाला जर्मनी अकेला देश नहीं होगा. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी का कहना है कि लगातार नौकरी में औसत लोगों के लिए रिटायरमेंट की औसत उम्र बढ़ कर 66.1 वर्ष पुरुषों के लिए और महिलाओं के लिए 65.5 साल होगी.
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डेनमार्क, इटली, एस्तोनिया जैसे देशों में रिटायरमेंट की उम्र पहले से ही जीवन प्रत्याशा से जुड़ी हुई है. यह बहुत साफ होता जा रहा है कि रिटायरमेंट की उम्र आखिरकार आने वाले दिनो काफी बढ़ेगी.
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च से जुड़े योहानेस गेयर का मानना है कि रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का मात्रात्मक रूप से असर नाम भर का ही होगा. गेयर का कहना है, "यह वितरण से जुड़ा सवाल है, जनसंख्या में होने वाले बदलाव का बोझ कौन उठायेगा? रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने से कामकाजी आबादी पर बोझ बढ़ेगा, जिन लोगों की जीवन प्रत्याशा कम है और जिन्हें स्वास्थ्य की समस्या है वो सबसे ज्यादा परेशानी झेलेंगे, आबादी का एक बड़ा हिस्सा रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंचने के पहले ही मर जाएगा."
वह समस्या का समाधान कहीं और देखते हैं. गेयर का कहना है, "हमें प्रवासन की जरूरत है. यह बहुत जरूरी है कि दूसरे देशों से पर्याप्त संख्या में लोग जर्मनी काम करने के लिए आएं."
गेयर ने बताया, "सरकार प्रवासियों के विदेशों में हासिल योग्यताओं को मान्यता देना आसान करने की कोशिशें कर रही है. हम शरण मांगने वालों के लिए नियमों में कुछ सुधार देख रहे हैं और जिन लोगों का दर्जा "टॉलरेटेड स्टेटस" का है उनके भी दर्जे को कानूनी करने के साथ ही जर्मनी के बाहर हासिल की गईं वोकेशनल डिग्री और योग्यताओं को मान्यता देने की अब भी समस्या है."
पार्ट टाइम नौकरी करने वाले और लंबे समय से बेरोजगार
हालांकि घरेलू स्तर पर अभी और भी क्षमता मौजूद है, गेयर का कहना है, "हमारे पास ऐसे लोगों का एक बड़ा वर्ग है जो कथित मिनी जॉब्स कर रहे हैं, यानी कम काम, इसमें पैसा कम मिलता है और अकसर टैक्स या सोशल सिक्योरिटी में योगदान नहीं रहता है. अगर हम इन लोगों को नियमित नौकरियों पर रख लें तो सिस्टम को मदद मिलेगी."
गेयर बेरोजगार लोगों को भी नौकरी में डालने का समाधान देखते हैं. इसके साथ ही उन लोगों को दोबारा नौकरी में लाने की भी जरूरत है जिन्हें जबरन रिटायर किया गया या फिर बीमारी के कारण डिसबेलिटी पेंशन मिल रही है. जर्मनी में ऐसे लाखों लोग हैं जिनमें ज्यादातर फुल टाइम काम करने के लायक नहीं हैं. इनके पीछे स्वास्थ्य से लेकर, परिजनों की देखभाल तक के कारण शामिल हैं.
गेयर का सुझाव है कि सरकारी नौकरी करने वाले और स्वरोजगार में जुटे लोगो फिलहाल अलग अलग पेंशन फंड में योगदान देते हैं, इसे एक जगह लाकर स्टेट रिटायरमेंट सिस्टम बनाना चाहिए जिससे सब लोग जुड़े हों और इस कड़ी में आखिरी उपाय है हफ्ते में काम के घंटे बढ़ा कर उसे 42 घंटे करना.
हालांकि गेयर को इसमें थोड़ा संदेह है, "मुझे लगता है कि बहुत से सेक्टरों में आप लोगों से 40 घंटे से ज्यादा काम करने की उम्मीद नहीं कर सकते. अगर आप काम के घंटे बढ़ाएंगे तो आपको यह देखना होगा कि लोग पहले ही थक चुके हैं और ये अतिरिक्त घंटे उनकी थकावट को और बढ़ाएंगे जिसका उनकी सेहत पर बुरा असर होगा."
गेयर का मानना है कि काम कर रहे लोग पेंशन फंड में योगदान की दर को बढ़ने की उम्मीद कर सकते हैं. उनका कहना है कि फिलहाल जो दर 18.6 फीसदी है वह 2025 तक 20 प्रतिशत हो सकती है.
फिलहाल जर्मनी भले ही समाधान के बारे में सोचने में वक्त लगाए लेकिन जनसंख्या में बदलाव उसे आखिरकार कदम उठाने पर मजबूर कर ही देंगे.