जर्मनी से अमेरिकी सैनिकों को हटाने का असर क्या होगा?
९ जून २०२०फिलहाल जर्मनी में 34,500 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट और द वॉल स्ट्रीट के अनुसार राष्ट्रपति ट्रंप ने जर्मनी में तैनात सैनिकों की संख्या एक तिहाई कम करने की योजना पर दस्तखत कर दिए हैं. हालांकि जर्मन रक्षामंत्री आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर ने पत्रकारों से कहा कि जर्मनी को इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है. बर्लिन में अमेरिकी दूतावास ने इस पर प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया. दूसरी तरफ अमेरिकी रक्षा विभाग, पेंटागन ने भी इन खबरों की पुष्टि करने से इंकार किया है.
जर्मन रक्षामंत्री के मुताबिक अगर अमेरिका इस दिशा में कदम बढ़ाता है तो इससे जर्मनी की सुरक्षा पर कम असर होगा. जर्मन रक्षा मंत्री मानती हैं कि इस कदम से नाटो और अमेरिका को ज्यादा नुकसान होगा. उन्होंने कहा, "सच्चाई यह है कि जर्मनी में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी खुद अमेरिका समेत पूरे नाटो सहयोगियों की सुरक्षा पर असर डालती है. यही वो आधार है जिस पर हम साथ काम करते हैं."
रक्षा बजट पर तकरार
ट्रंप प्रशासन जर्मनी से लंबे समय से आग्रह करता आ रहा है कि वह अपना रक्षा बजट बढ़ाए ताकि नाटो के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके. नाटो के लिए रक्षा खर्च सदस्य देशों की जीडीपी का 2 फीसदी करने का लक्ष्य तय किया गया है. अमेरिकी अधिकारी जर्मनी से सैनिकों को हटाने की बात पहले भी करते रहे हैं और इसे एक तरह से धमकी के तौर पर भी देखा जाता है.
जर्मनी के लिए अटलांटिक पार संबंधों के संयोजक पीटर बायर का कहा है कि अगर योजना की पुष्टि हो भी जाती है तो यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, हालांकि इस बारे में मीडिया के जरिए पहले जानकारी मिलना थोड़ा खिझाने वाला जरूर है. बायर ने समाचार एजेंसी डीपीए से बातचीत में कहा, "अमेरिकी राष्ट्रपति के इस फैसले से जर्मनी और अमेरिका के संबंधों पर बहुत असर पड़ेगा. यह केवल 9,500 अमेरिकी सैनिकों को हटाने की बात नहीं बल्कि उनके परिवारों का भी मसला है और यह कुल मिला कर 20 हजार अमेरिकियों की बात है. इससे अटलांटिक पार के पुल टूट सकते हैं."
वो दिन बीत गए हैं जब जर्मनी में लाखों की तादाद में अमेरिकी सैनिक रहते थे. तब यह सोवियत आक्रमण की आशंका को टालने के लिए था. आज जर्मनी अमेरिकी सैन्य अभियानों के एक बड़े हब के रूप में काम करता है. जर्मनी में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी कई जगहों पर है. इनमें रामश्टाइन एयर बेस भी शामिल है जो मध्यपूर्व और अफ्रीका के अभियानों के लिए जरूरी होने के साथ ही यूरोप और अफ्रीका में अमेरिकी एयरफोर्स का मुख्यालय भी है. इसके अलावा लांडस्टूल रिजनल मेडिकल सेंटर है जिसने इराक और अफगानिस्तान में जख्मी हुए असंख्य अमेरिकी सैनिकों की जान बचाई है. जर्मनी के ही स्टुटगार्ट में यूएस यूरोपीय कमांड और यूएस अफ्रीका कमांड का मुख्यालय भी है.
यूएस आर्मी यूरोप का मुख्यालय भी जर्मनी के ही वीसबाडेन में है. साथ में एफ-16 लड़ाकू विमानों का बे स्पांगडाहलेम में है और ग्राफेनवोएर में ट्रेनिंग एरिया है. यह यूरोप में नाटो का सबसे बड़ा ट्रेनिंग सेंटर है. बायर ने कहा, "अगर इस खबर की पुष्टि हो जाती है तो आपको अपने आप से ही पूछना होगा कि तब नाटो और यूरोप में सुरक्षा ढांचे पर इसका क्या असर होगा."
फायदेमंद है भौगोलिक स्थिति
जर्मनी की भौगोलिक स्थिति अमेरिकी सेना के लिए फायदेमंद साबित होती है हालांकि बदलते सुरक्षा परिदृश्यों के बीच अमेरिकी सेना की संख्या लगातार कम होती जा रही है. इसका असर जर्मनी की रक्षा जरूरतों और तैयारियों पर भी पड़ा है. बीते सालों में बहुत सी खबरें आई हैं जिनमें जर्मन सेना की बुरी हालत का जिक्र मिलता है. सेना के पास आधुनिक साजो सामान की कमी का भी मसला कई बार उठ चुका है. बहुत से विश्लेषक मानते हैं कि जर्मनी की सेना इस हाल में नहीं है कि वो मौजूदा या भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सके. ऐसे में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी जर्मनी के लिए फायदेमंद रहती है.
हालांकि अमेरिकी सैनिकों की जर्मनी में तैनाती के फायदों में बड़ा पहलू आर्थिक है. अमेरिकी सैनिक और उनके परिवार के लोग जर्मन घरों को किराए पर लेते हैं या फिर खरीदते हैं इसके अलावा वो स्थानीय खेलकूद से लेकर मनोरंजन की सुविधाओं और उपभोक्ता वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं. इतना ही नहीं अमेरिकी सैनिक अड्डे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार भी पैदा करते हैं. 2014 में 6 हजार से ज्यादा आम जर्मन नागरिक अमेरिकी सेना के लिए काम करते थे. जर्मन सरकार भी सैन्य अभियानों में योगदान करती है. वाइलरबाख के सैन्य अस्पताल पर जर्मन सरकार ने करीब 15 करोड़ यूरो खर्च किए. अमेरिकी सेना के अड्डे जिन इलाकों में हैं उन्हें विकसित करने में भी अमेरिकी सैनिकों के कारण मदद मिली है. कुल मिला कर अमेरिकी सैनिकों की जर्मनी में मौजूदगी से उसे कई तरह का फायदा होता है.
बीते कुछ सालों में जर्मनी रक्षा पर अपना खर्च बढ़ा रहा है और अमेरिकी सैनिकों का मसला कई महीनों से सुस्त पड़ा हुआ था. अभी यह साफ नहीं है कि यह मामला अचानक से क्यों उठा है. हालांकि ट्रंप का ये कथित फैसला ऐसे वक्त में आया है जब जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस महीने होने वाली जी7 की बैठक में भाग लेने से मना कर दिया था. तय कार्यक्रम के तहत ट्रंप ने सभी नेताओं को निजी रूप से शामिल होने का न्यौता दिया था. मैर्केल की इस घोषणा के बाद ट्रंप ने सम्मेलन को टाल दिया. जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने माना है कि इस वक्त जर्मनी के अमेरिका से रिश्ते "जटिल" हैं. उन्होंने यह चिंता भी जताई कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार अभियान वहां ध्रुवीकरण को और बढ़ावा दे सकता है और लोकलुभावन राजनीति का बोलबाला रह सकता है. जर्मन विदेश मंत्री का कहना है, "तब देश के भीतर सहअस्तित्व मजबूत नहीं रहता और यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विवादों को जन्म देता है. यह हम नहीं चाहते."
रिपोर्ट: निखिल रंजन (एपी)
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