जुल्म की इंतहा
८ जुलाई २०१०सरोकार में मोहम्मदी अश्तियानी को ईरान में दी गई कोडों और अब मौत की सज़ा किसी जंगली कानून से भी ज्यादा हैं. आज के सभ्य मानव समाज में ऐसी घटनाएं हर प्रकार से निंदनीय है. विश्व की समस्त नारी जाति को इसके खिलाफ अपना तीव्र विरोध दर्ज कराना चाहिए. विश्व की सरकारों को भी हर सम्भव दवाब बना कर ऐसी घिनौनी घटना को रोकनी चाहिए. नारी की कोख से जन्म लेने वाला इतनी हैवानियत तक गिर सकता है, सोच कर शर्म आती है.
विभा मालू, फतेहपुर, शेखावती, राजस्थान
मैच प्वांइट में फीफा वर्ल्ड कप चैम्पियनशिंप के सेमीफाइनल में पहुंची चारों टीमो की खुबियों के बारे में विस्तार से दी गई जानकारी बहुत ही रोचक अवम सुन्दर लगी. देखना है कि मुकद्दर का सिकंदर कौन बनता है? किस के भाग्य का पिटारा खुलता है? इधर, हाल ही के दिनों में समाचारों, समीक्षाओं से मैच प्वाइंट में वर्ल्ड कप की ताज़ा तरीन घटनाओं तथा परिणामों से अवगत कराते रहने के लिए डॉयचे वेले परिवार को बहुत बहुत धन्यवाद. उस ऑक्टोपस की भविष्यवाणी सच साबित हुई कि स्पेन जीतेगा. स्पेन ने अपने सर्वश्रेष्ठ खेल का प्रदर्शन करके अपने आप को फाईनल में खेलने का हक दिलाया. कोई नहीं जीता, न स्पेन, न जर्मनी, जीती है तो खेल भावना. जर्मनी ने अपने खेल प्रदर्शन से सभी का दिल जीता है तथा सभी को मोहित किया हैं. हम लोग भी जर्मन टीम के प्रशंसक थे, परन्तु कहा जाता है, जो जीता वह सिकंदर. हमारे दिलों में तो जर्मनी हार कर भी जीत गया है क्योंकि खिलाडी पराजित होता है, खेल और खेल भावना नहीं.
अतुल कुमार, राजबाग रेडियो लिस्नर्स क्लब, सीतामढ़ी, बिहार
लाईफ लाइन हमारा प्रिय कार्यक्रम है.6 जुलाई प्रसारित लाईफ लाइन कार्यक्रम में एक जर्मन किशोर फिलिप्स का "बातें बंद करो और पेंड लगाओ" अभियान की चर्चा बहुत ही रोचक और शिक्षाप्रद लगी.यदि हर देश में १० लाख पेड़ लगाएं जाएं तो धरती की हरियाली फिर वापस आ जायेगी. इन बच्चों का अभियान सचमुच में प्रशंसनीय और सार्थक कदम है. बड़ों को चाहिए की इस नेक काम को प्रोत्साहित करें. अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद.
चुन्नीलाल कैवर्त, ग्रीन पीस डी एक्स क्लब सोनपुरी, पोस्ट तेंगनामादा, जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़
लाईफ लाइन में 12 साल के फेलिक्स फिन्कबाइनर के बारे में जाना. हर देश में दस लाख पौधे लगाने का निश्चय किया है. मेरे विचार में, इसमे हर कोई सहयोग दे सकता है. इच्छा मृत्यु पर भी चर्चा सुनी. फीफा वर्ल्ड कप में अब तक के प्रदर्शन से लगता है कि जर्मनी इस बार विजेता बनेगा. राम यादवजी के आगामी जीवन के लिए शुभकामनाएं.
उमेश कुमार शर्मा, स्टार लिस्नर्स क्लब, नारनौल, हरियाणा
नारी को समाज के अनिवार्य घटक के रूप में बराबरी और सम्मान के साथ स्वीकार किये जाने की जरूरत है एक अदृश्य शक्ति, जिसे आध्यात्मिक दृष्टि से हम परमात्मा कहते हैं, इस सृष्टि का निर्माण कर्ता, नियंत्रक व संचालक है. स्थूल वैज्ञानिक दृष्टि से इसी अद्भुत शक्ति को प्रकृति के रूप में स्वीकार किया जाता है. स्वयं इसी ईश्वरीय शक्ति या प्रकृति ने अपने अतिरिक्त यदि किसी को नैसर्गिक रूप से जीवन देने तथा पालन पोषण करने की शक्ति दी है तो वह महिला ही है. अतः समाज के विकास में महिलाओं की महती भूमिका निर्विवाद एवं अति महत्वपूर्ण है. समाज राष्ट्र की इकाई होता है और समाज की इकाई परिवार, तथा हर परिवार की आधारभूत अनिवार्य इकाई एक महिला ही होती है. परिवार में पत्नी के रूप में, महिला पुरुष की प्रेरणा होती है. वह मां के रूप में बच्चों की जीवन दायिनी, ममता की प्रतिमूर्ति बन कर उनकी परिपोषिक तथा पहली शिक्षिका की भूमिका का निर्वाह करती है. इस तरह परिवार के सदस्यों के चरित्र निर्माण व बच्चों को सुसंस्कार देने में घर की महिलाओ का प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष योगदान स्वप्रमाणित है. विधाता के साकार प्रतिनिधि के रूप में महिला सृष्टि की संचालिका है, सामाजिक दायित्वों की निर्वाहिका है, समाज का गौरव है. महिलाओं ने अपने इस गौरव को त्याग से सजाया और तप से निखारा है, समर्पण से उभारा और श्रद्धा से संवारा है. विश्व इतिहास साक्षी है कि महिलाओं ने सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विभिन्न क्षेत्रों में सर्वांगीण विकास किया है, एवं निरंतर योगदान कर रहीं हैं. बहुमुखी गुणों से अलंकृत नारी पर ही समाज का महाप्रासाद अविचल खड़ा है. नारी चरित्र, शील, दया और करूणा का समग्र सवरूप है . कन्या भ्रूण हत्या, स्तनपान को बढ़ावा देना, दहेज की समस्या, अश्लील विज्ञापनों में नारी अंग प्रदर्शन, स्त्री शिक्षा को बढ़ावा, घर परिवार समाज में महिलाओ को पुरुषों की बराबरी का दर्जा दिया जाने का संघर्ष, सरकार में स्त्रियों की अनिवार्य भागीदारी सुनिश्चित करना आदि वर्तमान समय की नारी विमर्श से सीधी जुड़ी वे ज्वलंत सामाजिक समस्याए हैं, जो यक्ष प्रश्न बनकर हमारे सामने खड़ी हैं. इनके सकारात्मक उत्तर में आज की पीढ़ी की महिलाओ की विशिष्ट भूमिका ही उस नव समाज का निर्माण कर सकती है, जहां पुरुष व नारी दो बराबरी के घटक तथा परस्पर पूरक की भूमिका में हों. पौराणिक संदर्भो को देखें तो दुर्गा, शक्ति का रूप हैं. उनमें संहार की क्षमता है तो सृजन की असीमित संभावना भी निहित है. जब देवता, महिषासुर से संग्राम में हार गये और उनका ऐश्वर्य, श्री और स्वर्ग सब छिन गया तब वे दीन-हीन दशा में भगवान के पास पहुँचे. भगवान के सुझाव पर सब ने अपनी सभी शक्तियॉं (शस्त्र) एक स्थान पर रखे. शक्ति के सामूहिक एकीकरण से दुर्गा उत्पन्न हुई. पुराणों में दुर्गा के वर्णन के अनुसार उनके अनेक सिर हैं, अनेक हाथ हैं. प्रत्येक हाथ में वे अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुये हैं. सिंह, जो साहस का प्रतीक है, उनका वाहन है. ऐसी शक्ति की देवी ने महिषासुर का वध किया. वे महिषासुर मर्दनी कहलायीं. यह कथा संगठन की एकता का महत्व प्रतिपादित करती है. शक्ति, संगठन की एकता में ही है. संगठन के सदस्यों के सहस्त्रों सिर और असंख्य हाथ हैं. साथ चलेंगे तो हमेशा जीत का सेहरा बंधेगा. देवताओं को जीत तभी मिली जब उन्होने अपनी शक्ति एकजुट की. दुर्गा, शक्तिमयी हैं, लेकिन क्या आज की महिला शक्तिमयी है ? क्या उसका सशक्तिकरण हो चुका है? शायद समाज के सर्वांगिणी विकास में सशक्त महिला और भी बेहतर भूमिका का निर्वहन कर सकती हैं. वर्तमान सरकारें इस दिशा में कानूनी प्रावधान बनाने हेतु प्रयत्नशील हैं, यह शुभ लक्षण है. प्रतिवर्ष 8 मार्च को समूचा विश्व महिला दिवस मनाता है, यह समाज के विकास में महिलाओं की भूमिका के प्रति समाज की कृतज्ञता का ज्ञापन ही है. कवि ने कहा है, ममता है माँ की, साधना, श्रद्धा का रूप है लक्ष्मी, कभी सरस्वती, दुर्गा अनूप है नव सृजन की संवृद्धि की एक शक्ति है नारी परमात्मा और प्रकृति की अभिव्यक्ति है नारी नारी है धरा, चाँदनी, अभिसार, प्यार भी पर वस्तु नही, एक पूर्ण व्यक्ति है नारी आवश्यकता यही है कि नारी को समाज के अनिवार्य घटक के रूप में बराबरी और सम्मान के साथ स्वीकार किया जावे. समाज के विकास में महिलाओ का योगदान स्वतः ही निर्धारित होता आया है, रणभुमि पर विश्व की पहली महिला योद्धा रानी दुर्गावती हो रानी लक्ष्मी बाई का पहले स्वतंत्रता संग्राम में योगदान हो, इंदिरा गांधी का राजनैतिक नेतृत्व हो या विकास का अन्य कोई भी क्षेत्र अनेकानेक उदाहरण हमारे सामने हैं. आगे भी समाज के विकास की इस भूमिका का निर्वाह महिलायें स्वयं ही करती रहेंगी ..... "कल्पना" हो या "सुनीता" गगन में, "सोनिया" या "सुष्मिता" रच रही वे पाठ, खुद जो पढ़ रही हैं ये किशोरी लड़कियां बस समाज को नारी सशक्तिकरण की दिशा में प्रयत्नशील रहने, और महिलाओ के योगदान को कृतज्ञता व सम्मान के साथ अंगीकार करने की जरूरत है.
विवेक रंजन श्रीवास्तव
रिपोर्टः कंवलजीत कौर
संपादनः आभा मोंढे