टाइटन की पृथ्वी से अनोखी समानता
२८ अगस्त २००९इस अद्भुत समानता का पता सबसे पहले तब चला, जब यूरोपीय-अमेरिकी अंतरिक्षयान कासीनी के साथ गया उसका अवतरण यान होयगन्स, 16 जनवरी 2004 को, टाइटन के धरातल पर उतरा. उसने भूरे-नारंगी रंग में रंगे टाईटन के नदियों-पहाडों और झीलों-तालाबों वाले जो चित्र भेजे, उनसे सारा विज्ञान जगत दंग रह गया. टाइटन के बहुत ही घने वायुमंडल के कारण इससे पहले उसकी ऊपरी सतह को देख या उसके चित्र ले पाना संभव ही नहीं हो पाया था.
पिछले दिनों अगस्त के मध्य में ब्राज़ील की पुरानी राजधानी रियो दी जनेरो में अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ का सम्मेलन हुआ. उसमें ऐसे चित्र दिखाये गये और दो ऐसे शोधपत्र प्रस्तुत किये गये, जिनसे पृथ्वी के साथ टाइटन की समानता की और अधिक पुष्टि होती है.
नीची पहाड़ियां, समतल मैदान
ये चित्र और अध्ययन भी मुख्यतः कासीनी और होयगन्स से मिले आंकड़ों पर ही आधारित थे. जॉनथन लूनिन बताते हैं कि होयगन्स के माध्यम से वैज्ञानिकों ने टाइटन पर क्या देखाः
"होयगन्स जहां उतरा, वहां नीची पहाड़ियों और उनके बीच समतल मैदानों वाली दृश्यावली थी. उतरने से पहले वह एक पहाड़ के ऊपर से होता हुआ गुज़रा. उसने नदियों की कटान से ज़मीन पर बनी आकृतियां देखीं, जो एक समतल मैदान की तरफ जा रही थीं. इस इलाके को पार करता हुआ वह एक ऐसी जगह उतरा, जहां पहाड़ियों के बीच आस-पास बड़ी-बड़ी चट्टानें बिखरी हुई थीं. वह कंकड़-पत्थर और बर्फ के टुकड़ों वाली एक समतल जगह पर उतरा. ये चीज़ें शायद पास के पहाड़ों पर से बह कर वहां आयी थीं."
चंचल वायुमंडल
आशा के विपरीत उतरान के समय चारो तरफ काफ़ी धुंध थी. पर वह इतनी पारदर्शी भी थी कि होयगन्स के कैमरे 40 किलोमीटर की ऊंचाई पर से ही नीचे के दृश्य के फ़ोटो लेने लगे. वह कई परतों वाले वायुमंडल से गुज़रता हुआ एक ऊबड़- खाबड़ जगह पर उतरा था. वायुमंडल में उसे बिजली कौंधने के संकेत भी मिले थे. होयगन्स वाले मिशन के मैनेजर जौं पियेर लेब्रेतां कहते हैं:
"इस का मतलब है कि टाइटन का वायुमंडल बहुत चंचल है. वहां उस समय तेज़ हवाएं चल रही थीं. पैराशूट के सहारे उतरना काफी झूलेदार रहा होगा."
होयगन्स में रखे विश्लेषण उपकरणों ने टाइटन की हवा में तैरने वाले तत्वों का जो विश्लेषण किया, उससे पता चला कि उसके बादल मुख्यतः ईथेन और मीथेन गैसों के बने होते हैं. इन बादलों से मुख्यतः तरल मीथेन की बरसात होती है, हालांकि होयगन्स की उतरान के समय कोई बरसात नहीं हो रही थी.
तरल मीथेन की बरसात
बरसात भले ही पानी की नहीं, तरल मीथेन गैस की होती है, पर उसके गैस बनने और बरसने का चक्र वैसा ही है, जैसा पृथ्वी पर पानी की बरसात का है. होयगन्स के नीचे की ज़मीन भीगी हुई रेत जैसी दृढ़ता वाली थी. डेटा यह भी बताते हैं कि वह इस ज़मीन में क़रीब 10 सेंटीमीटर धंस गया था और एक तरफ को हल्का सा झुक गया था.
हमारी पृथ्वी और शनि ग्रह के इस उपग्रह के बीच और भी कई समानताएं हैं. जॉनथन लूनिन बताते हैं:
"टाइटन पर हम ज्वालामुखी जैसी क्रियाएं देखते हैं, खाइयां देखते हैं, नदियों के पाट और मुहाने देखते हैं, ज़मीन देखते हैं पर बड़े बड़े पहाड़ नहीं देखते. पृथ्वी के समान ही वहां भी हम बहुत कम क्रेटर-जैसे गोलाकार गड्ढे देखते हैं. वहां किसी प्रकार का जीवन नहीं है. बेहद ठंड है. तरल मीथेन तरल पानी का काम करती है. हवा में प्रतिध्वनि भी होती है, पृथ्वी की तरह तरंगें भी पैदा होती हैं."
बर्फीली अमोनिया वाले ज्वालामुखी
टाइटन पृथ्वी की अपेक्षा बेहद ठंडा है. वहां का औसत तापमान शून्य से भी 180 डिग्र सेल्ज़ियस नीचे है, जो साइबेरिया में पृथ्वी पर के सबसे ठंडे स्थान से भी तीन गुना ठंडा है. नदियों और झीलों में पानी के बदले तरल मीथेन गैस बहती है. ज्वालामुखी तपता हुआ लावा नहीं, बर्फीली अमोनिया गैस उगलते हैं. वायुमंडल में 98.4 प्रतिशत तो केवल नाइट्रोजन गैस है. शेष 1.6 प्रतिशत में मीथेन का अनुपात सबसे अधिक है. वायुमंडल इतना सघन और गुरुत्वाकर्षण बल इतना कम है कि आदमी अपनी बाहों पर पंख बांध कर और उन्हें पक्षिय़ों की तरह फड़फड़ कर हवा में आसानी से उड़ सकता है.
टाइटन ही शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है. अपने 5.150 किलोमीटर व्यास के साथ वह पृथ्वी के चंद्रमा से 1.624 किलोमीटर बड़ा है. उसका घना वायुमंडल हमारे वायुमंडल के विपरीत एक ऐसा विलोम कांचघर प्रभाव पैदा करता है कि सूर्य की किरणें अंतिरक्ष में परावर्तित हो जाती हैं. इस कारण उसे जितना ठंडा होना चाहिये, उससे कहीं अधिक ठंडा है. वैज्ञानिक वहां अगली बार ऐसा अन्वेषण यान भेजना चाहते हैं, जो तरल मीथेन वाली उसकी किसी झील पर उतरे और उतरने से पैदा होने वाली लहरों के बारे में जानकारी भेजे.
रिपोर्ट- राम यादव
संपादन- उज्ज्वल भट्टाचार्य