ट्रंप ने जी-7 को बनाया जी-6
११ जून २०१८कई बार जख्म पर लगी पट्टी को हटा देना ही ठीक रहता है. लगता है कि जी7 की जिस साझा विज्ञप्ति पर सहमति बन गई थी, ऐन वक्त पर उससे पीछे हटकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऐसा ही किया है. सिंगापुर जाते समय उन्होंने अपने विमान से किए गए ट्वीट में कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर प्रेस कांफ्रेस में झूठे बयान देने का आरोप लगाया. ट्रंप के लिखा, "अमेरिकी प्रतिनिधियों को इस विज्ञप्ति का समर्थन न करने का निर्देश दिया है."
अगर ट्रंप वाकई इस समझौते से पीछे हट गए हैं तो यह पहला मौका नहीं है जब उन्होंने ऐसा किया है. दरअसल ट्रंप तो समझौतों से पीछे हटने के उस्ताद हैं. वह पेरिस जलवायु समझौते, ईरान परमाणु डील, ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप और यूनेस्को जैसे कई समझौतों से हट चुके हैं.
ईरान परमाणु डील से तुलना करें तो जी-7 देशों की विज्ञप्ति से पीछे हटने के परिमाण उतने व्यापक नहीं होंगे क्योंकि यह दस्तावेज बाध्यकारी नहीं है. लेकिन इससे प्रतीकात्मक नुकसान बहुत बड़ा होगा. यह पहला मौका होगा जब जी-7 देश किसी साझा विज्ञाप्ति पर एकमत नहीं हो पाए. क्यूबेक में राष्ट्रपति ट्रंप की मौजूदगी से एक बार फिर साफ हो गया कि वह अमेरिका के करीबी सहयोगियों और दूसरे विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आई विश्व व्यवस्था के बारे में क्या सोचते हैं, वह व्यवस्था जिसे खड़ा करने में अमेरिका का बड़ा योगदान रहा. ट्रंप इस व्यवस्था को कमजोर कर रहे हैं.
जी-7 को जो धक्का लगा है, उस पर एक साझा बयान से कुछ हद तक पर्दा पड़ जाता, क्योंकि जो विज्ञप्ति प्रकाशित हुई है, वह कहती है कि इस पर हस्ताक्षर करने वाले पक्ष "मुक्त, निष्पक्ष और पारस्परिक लाभदायक व्यापार" में विश्वास करते हैं और संरक्षणवाद के खिलाफ लड़ने का संकल्प लेते हैं. और यह सच नहीं है. डॉनल्ड ट्रंप धुर संरक्षणवादी हैं और थोड़े समय में ही उन्होंने साफ कर दिया है कि अंतिम दस्तावेज में चाहे जो भी कहा गया हो लेकिन वह अपनी "अमेरिका फर्स्ट" वाली नीति से बिल्कुल पीछे नहीं हटेंगे. उनकी इसी नीति के कारण अमेरिका और उसके सहयोगियों में दरार आई है.
अमेरिका का क्लाइमेट चेंज और प्लास्टिक के इस्तेमाल में कमी लाने वाले करार पर दस्तखत न करना अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच चल रहे टकराव का सबूत है. और इस बैठक में जिस भी कमजोर समझौते पर सहमति बनती, तो उसकी ट्रंप जैसे राष्ट्रपति के लिए कोई अहमियत नहीं होती. वैसे भी इस बार जी-7 सम्मेलन और ट्रंप से कुछ उम्मीद करना ख्याली पुलाव ही था. सबको पता था कि जी-7 को लेकर ट्रंप क्या सोचते हैं. ऐसा लगा कि उनके लिए सिंगापुर में उत्तर कोरियाई नेता किम-जोंग उन से शांति वार्ता अधिक महत्वपूर्ण थी और वह उससे पहले जी-7 सम्मेलन में दुखी करने वाले सहयोगियों के साथ कुछ वक्त काटने आए थे.
यूक्रेन के क्रीमिया पर गैरकानूनी रूप से कब्जा करने के बाद रूस को जी-8 से निकाल दिया गया था. ट्रंप ने रूस को फिर से आमंत्रित करने के सुझाव से इस बैठक को होने से पहले ही बाधित कर दिया था. और जब वह सम्मेलन में आए भी तो देर से, और जल्द ही चले भी गए. अपने अंदाज में ट्रंप ने प्रेस को बुलाकर मीडिया को लताड़ना शुरू किया, सहयोगियों से व्यापार रोकने की धमकी दी, अमेरिका की मजबूत अर्थव्यवस्था का श्रेय खुद को दिया और पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की कड़ी निंदा की.
राष्ट्रपति ट्रंप की तल्खी की झलक तस्वीरों में भी दिखी. एक तस्वीर में वह हाथ बांधे बैठे हैं, हल्की सी मुस्कान के साथ जर्मन चांसलर अंगेला मर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को देख रहे है. मैर्केल और माक्रों मानो याचना की मुद्रा में खड़े हैं. एक अन्य तस्वीर में अमेरिकी राष्ट्रपति अंगेला मर्केल और आईएमएफ चीफ क्रिस्टीन लागार्द के साथ नजर आ रहे हैं जिसमें उनकी नापसंदगी साफ दिखाई दे रही है. हालांकि महत्वपूर्ण बात यह है कि ट्रंप के हावभाव और ये बातें नई नहीं है. यह बस व्हाइट हाउस में बैठे धौंसपट्टी जमाने वाले व्यक्ति की बस एक और परफॉर्मेंस है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार ऐसा अमेरिका के बजाए पड़ोसी देश कनाडा में किया गया.
यहां मकसद ट्रंप के कारनामे को कमतर आंकना नहीं है, बल्कि कहने का मकसद यह है कि कि हमें इस बात को मान लेना होगा कि कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के रिश्ते आने वाले दिनों में सुधरने वाले नहीं है. ट्रंप वही सोचते हैं जो उन्होंने क्यूबेक में कहा, "अमेरिका का कई दशकों से फायदा उठाया जाता रहा है. अब हम और ऐसा नहीं होने दे सकते." करार से पीछे हटकर ट्रंप ने इसे और साफ कर दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति को वाकई ट्रांस-अटलांटिक रिश्ते और पारंपरिक व्यवस्था के महत्व का अंदाजा नहीं है. यही वजह है कि ट्रंप लगातार अमेरिका के साझीदार देशों को 'तथाकथित सहयोगी' कहते हैं.
जैसी उम्मीद थी, अन्य 6 देश अपने-अपने मुद्दों को लेकर अडिग रहे. लेकिन इससे समस्याएं सुलझेंगी नहीं. ऐसे में, यह जरूरी है कि यूरोपीय देश कम से कम नियमों पर आधारित व्यवस्था का बचाव करें, जब तक कि कम से कम अमेरिका इस बात को समझे. वैसे ट्रंप का आकलन जल्द ही अमेरिका के मध्यावधित चुनाव के दौरान होने वाला है. अगर रिपब्लिकन पार्टी कांग्रेस के एक या दोनों सदनों में बहुमत खो देती है तो नव निर्वाचित कांग्रेस ट्रंप की खतरनाक संरक्षणवादी व्यापार नीतियों में कम से कम अडंगा लगा सकती है. अमेरिकी राजनीतिक संरचना में कांग्रेस के पास ही व्यापार की बागडोर होती है और उसने अपना अधिकार राष्ट्रपति के हाथों गंवाया है. लेकिन उसने अधिकार गंवाया है, तो वह उसे फिर से हासिल भी कर सकती है. ट्रंप के अति संरक्षणवाद से राहत अमेरिकी लोगों को वोटरों के जरिए ही मिल सकती है. आखिरकार अमेरिकियों ने अपने वोटों से ट्रंप को चुनकर यह सारा झमेला खड़ा किया है.