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डर के आगे जीत है

२६ अप्रैल २०१३

पांच साल की मासूम से बलात्कार पर उबली दिल्ली और इसी बीच लखनऊ में महिला फ्यूचर्स टेनिस टूर्नामेंट की घड़ी आ गई. लडकियां डर के मारे लखनऊ आने को तैयार नहीं हैं. करीब 70 विदेशी खिलाड़ियों ने टूर्नांमेंट से नाम वापस ले लिए.

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तस्वीर: Getty Images/AFP

कानून व्यवस्था के मामले में हर तरफ से घिरी यूपी सरकार सक्रिय हुई, लीपापोती में बेंगलुरू से इंटरनेशनल टेनिस फेडेरेशन ने बयान जारी किया कि नाम वापस लेने के पीछे व्यक्तिगत कारण हैं. हालांकि जर्मन टेनिस खिलाड़ी एन क्रिस्टीन नेल्सन ने सबसे पहले ये कहकर इसका प्रतिवाद किया था कि तो क्या फिर घर से ही न निकला जाए. यूपी ओलंपिक एसोसिएशन के महासचिव आनंदेश्वर पांडे हाल ही में पाकिस्तान की महिला हैंडबाल की टीम के आने का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वे आई खेलीं और गईं, कोई हंगामा नहीं हुआ.

इतने हंगामें से यूपी की महिलाओं के खिलाफ अपराध की असलियत सामने आ ही गई. पिछले एक दशक के आंकड़े चुगली करते हैं कि करीब आधा दर्जन लड़कियां छेड़खानी से तंग आकर खेल से नाता तोड़ चुकी हैं. खिलाड़ी लड़कियों की बात न की जाए तो भी बच्चियों पर यौन हिंसा और बलात्कार छेड़खानी में यूपी देश भर में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से ही पीछे है. पिछले एक वर्ष में मासूमों से दुष्कर्म के दो हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. सबसे अधिक कानपुर में 71 बच्चियों के साथ दुष्कर्म हुआ और दूसरे नंबर पर आगरा है जहां 60 से अधिक ऐसे मामले दर्ज हुए. सड़कों पर महिलाओं के प्रदर्शनों में शिद्दत आ गई है. गुड़िया प्रकरण के बाद से हर अखबार बच्चियों के साथ यौन हिंसा की घटनाओं से रंगे पड़े हैं.

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति. एडवा की राज्य सचिव मधु गर्ग इसे अच्छा संकेत बता रही हैं. कहती हैं कि महिलाओं में एकजुटता बढ़ रही है,  धरने प्रदर्शन से एक माहौल बन रहा है. कई स्तर पर महिलाओं के लिए काम करने के अवसर इसी से निकलेंगे. साहित्यकार शकील सिद्दीकी कहते हैं कि डर तो बढ़ा है लेकिन उनका यही डर एक दिन उनकी जीत में बदलेगा. रास्ते ऐसे ही बनते हैं, विध्वंस ही तो निर्माण का रास्ता तैयार करता है.

लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर राजेश मिश्र बच्चियों से बलात्कार पर कहते हैं कि हम खुले समाज के लोग नहीं हैं, तो जैसे ही किसी को मौका मिलता है वो अपनी दमित इच्छाएं और कुंठाओं को निकालने लगता है. जाहिर है कि इसमें निशाना सबसे पहले घर-खानदान और आस पास के पहचान वाले ही बनते हैं. इसी विश्लविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर कंचन सक्सेना बताती हैं कि बच्चियां पुरुष की बदनीयती को समझने में देर कर देती है, बस यही उसके लिए घातक साबित होता है. उन्हें सजग बनाना जरूरी है. मनोवैज्ञानिक सलाहकार शैलवी शारदा एक नई समस्या से अवगत कराती हैं. कहती हैं," हम बलात्कार पीड़ित से ये भी नहीं कह सकते कि उस दरिंदे को भूल जाओ क्योंकि उसे अदालत में उसको पहचानना है. बीस बीस साल केस चलते हैं, एक वक्त तो ये आता है कि रेप की शिकार के लिए ये मुश्किल खड़ी हो जाती है कि वो भविष्य के लिए सोचे या मुजरिम को सजा दिलाने के लिए उस जख्म को हमेशा हरा रखे."

यूपी तीसरे नंबर पर

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक भारत में पिछले दस वर्षों में बच्चियों से रेप के मामलों में 336 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. वर्ष 2001 में देश में ऐसे 2113 हादसे हुए जबकि 2011 में इन घटनाओं की तादाद बढ़कर 7,112 हो गई. महिलाओं से बलात्कार में अव्वल रहने के बाद मध्य प्रदेश मासूम लड़कियों से बलात्कार के मामले में भी शीर्ष पर है. वर्ष 2001 से 2011 के बीच मध्य प्रदेश में बच्चियों से रेप के 9,465 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद महाराष्ट्र है और तीसरा नंबर उत्तर प्रदेश का है जहां इसी अवधि में 5,949 ऐसी घटनाएं हुईं.

फिल्मों से नसीहत

हर तरफ गुस्से और आक्रोश की शिकार यूपी पुलिस ने अपने सुधार का एक अनोखा तरीका निकाल नई बहस को न्यौता दे दिया है. एडीजी ला एंड आर्डर अरुण कुमार के मुताबिक पुलिसकर्मियों को 'शोले' के संजीव कुमार, 'शक्ति' के दिलीप कुमार ,'जंजीर' के अमिताभ बच्चन, 'सिंघम' के अजय देवगन और 'दबंग' के सलमान खान से सबक लेने की सलाह दी गई है. इसके बाकायदा लिखित निर्देश जारी किए गए हैं कि ऐसी फिल्में देखें जिनमें पुलिस वाले अपने दायित्वों के निर्वहन में कुर्बानियां देते दिखाई देते हैं. एडीजी के मुताबिक वही फिल्में हिट होती हैं जिनमें पुलिस का रोल अच्छा होता है.

रिपोर्टः  एस. वहीद, लखनऊ

संपादनः एन रंजन

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