1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

डील की तरफ बढ़ते भारत यूरोप

३० जनवरी २०१३

यूरोपीय संघ के वित्तीय संकट और भारत के गिरते विकास दर के बीच दोनों एक बार फिर मुक्त व्यापार समझौते को जल्द अमल में लाने की कोशिश कर रहे हैं. लगभग पांच साल पहले इस पर बातचीत शुरू हुई, जो अब तक पूरी नहीं हो पाई है.

https://p.dw.com/p/17UHS
तस्वीर: Reuters

बर्लिन में भले ही जर्मनी और भारत के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई हो लेकिन आर्थिक मुद्दा हावी रहा. जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने कहा, "एक मुक्त व्यापार समझौता भारत और यूरोपीय संघ के बीच विकास, संपन्नता और आपसी रिश्ते बेहतर करेगा. हम दोनों विदेश मंत्री इस बात को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं." खुर्शीद ने तो इसे भारत के लिए "सपनों का समझौता" बताया, "इस समझौते के बाद हमारे उद्योग और युवाओं के कई सपने पूरे होंगे."

मुक्त व्यापार संधि के बाद जहां यूरोपीय सामान का भारत जाना आसान होगा, वहीं भारत के दक्ष कामगार और बड़ी कंपनियां यूरोप में फैल सकेंगी. दोनों पक्षों के बीच 2011-12 में 110 अरब यूरो का कारोबार हुआ, जो उससे पहले के साल के कारोबार से करीब 20 फीसदी ज्यादा है. यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार जरूर है लेकिन यह अब भी एकतरफा बना हुआ है. भारत करीब 20 फीसदी निर्यात यूरोपीय संघ में करता है, जबकि इसके 27 देशों का वहां सिर्फ 1.8 फीसदी कारोबार है.

Tata Nano Werk in Indien
तस्वीर: AP

उद्योग जगत की बैठक

इंडो यूरोपीय बिजनेस फोरम ने भी इस संधि को पूरा कराने की कोशिश तेज कर दी है. फोरम के अध्यक्ष सुनील कुमार गुप्ता का मानना है कि संधि होनी तो तय है, लेकिन अभी यह तय किया जाना बाकी है कि यह "कैसे" होगी, "विकास के लिए भारत को तकनीक चाहिए. यूरोपीय देश भारतीय बाजार और लगातार बढ़ रहे मध्य वर्ग का फायदा उठा सकते हैं."

इंडो यूरोपीय बिजनेस फोरम लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में ब्रिटिश उद्योगपतियों और कारोबार जगत की बैठक करा रहा है, जिसमें मुक्त व्यापार संधि को आगे बढ़ाने पर बात होगी. हालांकि यह बैठक ऐसे समय में हो रही है, जब ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से बाहर जाने की धमकी दे रखी है. गुप्ता ने डॉयचे वेले से बातचीत में इसे ज्यादा तूल नहीं दिया, "मुझे लगता है कि यह एक राजनीतिक बयान है और आर्थिक स्थिति इससे अलग है. ब्रिटेन में बेरोजगारी बढ़ रही है और अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए उसे दक्ष कामगारों की जरूरत है, जिसकी पूर्ति भारत कर सकता है."

क्या है मुक्त व्यापार संधि

यूरोपीय संघ के पूर्व व्यापार कमिश्नर पीटर मेंडलसन ने "विश्व आर्थिक संरचना में नजरअंदाज न किये जा सकने वाले भारत" के साथ 2007 में इस समझौते की नींव रखी. लेकिन इसकी शर्तों पर दोनों पक्ष अब तक रजामंद नहीं हो पाए. दोनों पक्षों के बीच हर साल शिखर सम्मेलन होता है, जिसके अलावा उद्योग और राजनीतिक स्तर पर नेताओं की मुलाकात होती है. लगभग हर बार यह मुद्दा उठता है, पर रुकावटें दूर नहीं हो पाई है. संघ ने 30 मुल्कों के साथ पहले ही मुक्त व्यापार संधि कर रखी है, जिनमें अफ्रीकी देशों के अलावा दक्षिण कोरिया भी शामिल है. अब वह भारत के अलावा कनाडा और दक्षिणी अमेरिकी देशों के साथ ऐसी संधि के बारे में बातचीत कर रहा है.

Luftverschmutzung in Indien
तस्वीर: DIBYANGSHU SARKAR/AFP/GettyImages

दोनों पक्षों के बीच समझौता मुश्किल काम है. दोनों की राजनीति और अर्थव्यवस्था अलग तरह से चलती है. यूरोपीय संघ भले ही 1.2 अरब की आबादी वाले बाजार पर नजर रखता हो लेकिन भारत की अंदरूनी राजनीति और सामाजिक स्थिति उसे परेशान करती है. मानवाधिकार संगठन आए दिन भारतीय फैक्ट्रियों में बाल मजदूरी या मजदूरी के लिए सही वेतन न देने के आरोप लगाते रहते हैं. बर्लिन के अर्थव्यवस्था और राजनीति शोध संस्थान के डॉक्टर हंस गुंथर हिल्पर्ट ने डॉयचे वेले से कहा, "यूरोपीय संघ व्यापार समझौता तभी करता है, जब सामाजिक स्थिति और मानवाधिकार पर सोच मिलती हो. भारत के साथ यह मुश्किल हो रहा है." गुप्ता की पहल पर भारत में इसी साल यूरोपीय और भारतीय उद्योगपतियों की बैठक हो चुकी है, जो उनके अनुसार "काफी सफल" रही है.

मुश्किल भारतीय स्थिति

भारत में हाल में रिटेल सेक्टर को विदेशी कंपनियों के लिए खोलने की बात की है, जिस पर विपक्षी राजनीतिक पार्टियों ने हंगामा कर दिया. इसके अलावा बीमा और पेंशन के क्षेत्रों में भी सीमित विदेशी निवेश की अनुमति है. डॉक्टर हिल्पर्ट का कहना है इन सबके बीच भारत की उभरती हुई अंतरराष्ट्रीय शक्ति ने उसे अलग मुकाम पर पहुंचा दिया है और इस वजह से यूरोपीय संघ के लिए शर्तें मनवाना आसान नहीं होगा, "भारत एक बहुत ही आत्मविश्वास से भरा पार्टनर बनने जा रहा है. ऐसा पार्टनर, जो दूसरों को खुद पर हुक्म चलाने की इजाजत नहीं देता."

Symbolbild Indien Aberglaube Medizin
तस्वीर: picture-alliance/akg

संधि होने के बाद कार, वाइन और स्पिरिट जैसे कई यूरोपीय उत्पाद मामूली सीमा शुल्क के साथ भारतीय बाजार में जा सकेंगे. भारत सरकार हाल ही में कार की इम्पोर्ट ड्यूटी कम करने पर राजी हुई है. विश्व उत्पादन में भारत का ज्यादा बड़ा योगदान नहीं है लेकिन सर्विस सेक्टर में उसने हाल में झंडे गाड़े हैं. अमेरिका की इंटरनेट क्रांति में भारतीय कामगारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. हाल में टाटा और रिलायंस ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पकड़ बनाई है. भारत का समझना है कि यूरोपीय संघ में वह अपने कामगारों को फैला सकता है.

यूरोपीय संघ का सबसे मजबूत देश जर्मनी इस समझौते में बड़ी भूमिका निभा रहा है. भारत और जर्मनी के सरकार प्रमुखों की अप्रैल में बैठक होने वाली है, जिसमें मुक्त व्यापार पर बात बढ़ेगी. हालांकि डॉक्टर हिल्पर्ट चेतावनी देते हैं कि समय बीता जा रहा है, "हम बीच में अटके हुए हैं. हमें ध्यान रखना है कि भारत में 2014 में आम चुनाव हैं, जिसके बाद स्थिति बदल सकती है. मतलब कि अगर अभी समझौता नहीं हुआ, तो फिर यह कई सालों के लिए लटक सकता है."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी