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ड्रोन तस्वीरों ने बतायी रोहिंग्या लोगों की हकीकत

४ नवम्बर २०१७

रोहिंग्या लोगों के लिए विस्थापन और दुख तकलीफों का सिलसिला दशकों से चल रहा है लेकिन अब ड्रोन और सैटेलाइट से ली गयी तस्वीरों से दुनिया को पता चल रहा है कि यह संकट कितना गंभीर है.

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Bangladesch | Rohingya-Flüchtlingslager rund um Cox's Bazar
तस्वीर: DW/ P. Vishwanathan

रोहिंग्या लोगों के हालात को दुनिया के सामने रखने में आधुनिक तकनीक खासी मददगार साबित हुई है. ड्रोन और सैटेलाइट से ली गयी तस्वीरें बताती हैं कि म्यांमार से जान बचाकर बांग्लादेश पहुंचे आठ लाख से ज्यादा लोगों को तत्काल मदद की कितनी जरूरत है. यह तस्वीरें दिखाती हैं कि म्यांमार में उनके साथ क्या सलूक हो रहा है. रोहिंग्या लोगों के लिए इंसाफ की आवाज बुलंद करने में भी ये तस्वीरें काम आ सकती हैं.

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संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर के प्रवक्ता आंद्रे माहेसिच कहते हैं, "हमें यह बताने में घंटों का समय लगेगा कि किस तरह बड़ी संख्या में शरणार्थी सीमा को पार कर रहे हैं और मौजूदा शरणार्थी शिविरों का आकार कैसे बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन एक तस्वीर इस पूरे हालात को पलभर में बयान कर सकती है."

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म्यांमार में अगस्त महीने से लगभग छह लाख रोहिंग्या लोग भागकर बांग्लादेश पहुंचे हैं. म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा और सेना के अभियान के कारण इन लोगों को वहां से भागना पड़ा है. यूएनएचसीआर संकट की गंभीरता की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए ड्रोन कैमरों के जरिए खीचें गये फोटो और वीडियो का सहारा ले रहा है. 

माहेसिच ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को भेजे एक ईमेल में बताया कि बताया कि यूएनएचसीआर शरणार्थी परिवारों की पहचान और गिनती करने के लिए सैटेलाइट्स भी इस्तेमाल कर रहा है, ताकि सबसे ज्यादा जरूरतमंद लोगों तक मदद को पहुंचाया जा सके.

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बांग्लादेश में दाखिल हो रहे शरणार्थियों की ड्रोन फुटेज के कारण रोहिंग्या लोगों की मेडिकल देखभाल, पानी और खाने के लिए मिलने वाली रकम में बढ़ोत्तरी हुई है. यह बात 13 ब्रिटिश सहायता एजेंसियों के साझा संगठन डिजास्टर इमरजेंसी कमेटी (डीईसी) ने बतायी है.

मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि सैटेलाइट से मिली तस्वीरें दोषियों को न्याय के कठघरे तक ले जाने में मदद मिलेगी. स्रब्रेनित्सा में 1995 के नरसंहार को साबित करने के लिए भी अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल ट्राइब्यूनल में सैलेटाइट तस्वीरें का सहारा लिया गया था. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सीमित संसाधनों के कारण अब भी तकनीक का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो रहा है.

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच की ओर से जारी तस्वीरों में म्यांमार में 300 गावों को जलाते हुए दिखाया जा रहा है. शरणार्थियों के मोबाइल से ली गयी फुटेज और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय में दी गयी उनकी गवाहियों की फुटेज सार्वजनिक की गयी है.

अमेरिका स्थित ह्यूमन राइट्स वॉच में सैटेलाइट इमेजरी एनेलिस्ट जॉस लियोंस कहते हैं, "हमें सैटेलाइस से मिली तस्वीरों में मलबे का मैदान दिखायी दिया है, जहां लोगों को मारा गया."

एके/ओएसजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)