ताकतवर होता टीबी
भारत में हर तीन मिनट में दो मरीज टीबी यानि तपेदिक के कारण मारे जाते हैं. अच्छे इलाज की कमी के कारण ये बीमारी ड्रग रेसिस्टेंट होती जा रही है, यानी सामान्य दवाएं इस पर असर ही नहीं कर पा रही हैं.
सबसे ज्यादा
भारत में टीबी के सबसे ज्यादा मरीज हैं, कुल मरीजों के 26 फीसदी भारत में रहते हैं. यह जानलेवा संक्रामक बीमारी है.
लाखों बीमार
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2012 में दुनिया भर में 86 लाख लाख लोग तपेदिक का शिकार हुए और 13 लाख मौत हुई. नये मामले पिछले दशकों के दौरान हर साल दो फीसदी की दर से कम हो रहे हैं.
डीआर-टीबी
दवा प्रतिरोधी टीबी मुश्किलें बढ़ा रहा है. 2012 में 4.5 लाख लोग डीआर-टीबी के मरीज बने. इनमें से आधे भारत, चीन और रूस में रहते हैं. कई मामले अभी भी पता नहीं चलते हैं.
मुश्किल में भारत
दवा प्रतिरोधी तपेदिक के मामले या तो पहले संक्रमण में सामने आते हैं या फिर इलाज के दौरान टीबी पर दवाएं बेअसर होने लगती हैं. भारत में इसके मामले तेजी से बढ़े हैं. 2012 में ऐसे 64,000 केस सामने आए.
खुद बनाई मुसीबत
मणिपुर में एमडीआर टीबी का रोगी. विशेषज्ञों का कहना है कि दवाई प्रतिरोधक टीबी इंसानी गलती के कारण होती है. इसका एक कारण है, टीबी का ढंग से इलाज नहीं कर पाना.
खराब इलाज
मैकग्रिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर के मुताबिक दवा प्रतिरोधी टीबी गलत दवा, खराब गुणवत्ता वाली दवा या फिर बीच में इलाज छोड़ने के कारण होता है. ये दवाएं बदलने या फिर दवा के असर का टेस्ट न करने के कारण भी हो सकता है.
इलाज
भारत में टीबी का इलाज रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबरकुलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत होता है. इसमें 15 लाख लोगों का इलाज किया जा रहा है. लेकिन बीमार आधे मरीज निजी डॉक्टरों के पास इलाज के लिए जाते हैं, जो टीबी कंट्रोल में शामिल नहीं है.