तीन बच्चे पैदा करने की नीति के खिलाफ क्यों हैं चीनी महिलाएं?
४ जून २०२१चीन पिछले कुछ सालों से अपने देश में उभरते आबादी के संकट से निपटने के लिए प्रभावी उपाय अपनाने की कोशिश कर रहा है. सरकार ने अपने हाल के फैसले में विवाहित जोड़ों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दी है. इस कदम ने पिछले कुछ दशकों में चीनी नागरिकों के बच्चे पैदा करने के अधिकारों पर सरकार के कड़े नियंत्रण को और कम कर दिया है. लेकिन इसके बावजूद कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति का चीन की प्रजनन दर की प्रवृत्ति पर सीमित प्रभाव पड़ेगा.
हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में सामाजिक विज्ञान और सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर स्टुअर्ट गिटेल-बास्टेन ने डॉयचे वेले को बताया कि उनके कुछ सर्वे से यह निष्कर्ष सामने आया है कि चीन में सिर्फ कुछ ही लोग वास्तव में तीसरा बच्चा पैदा करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों को पालने में होने वाले खर्च और कामकाजी महिलाओं के करियर के लिए अवसर जैसी चीजें कई चीनी महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के बारे में सोचने से हतोत्साहित कर सकती हैं. वे कहते हैं, "हमें ऐसा नहीं लगता है कि सरकार की नई नीति की वजह से बच्चा पैदा करने को लेकर सामाजिक तौर पर कोई बड़ा बदलाव आएगा.”
तीन बच्चे पैदा करने की नीति लागू करने से पहले, चीन ने 2015 के अंत में दो बच्चे पैदा करने की छूट दी थी. इससे पहले देश में एक बच्चा पैदा करने की नीति सख्ती से लागू थी. इस नीति की शुरुआत 1979 में की गई थी. उस समय चीन की सरकार का कहना था कि गरीबी मिटाने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है. 2015 के अंत में दो बच्चों की नीति लागू होने के बाद देश में प्रजनन दर में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि नहीं दर्ज की गई. हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में चीन की प्रजनन दर प्रति महिला 1.3 बच्चे थी. इससे चीन जापान और इटली जैसे देशों के बराबर पहुंच गया जहां युवाओं से ज्यादा आबादी बुजुर्गों की होती जा रही है.
विवाहितों को मनाने की चुनौती
चीन की कुछ महिलाएं तीन बच्चे पैदा करने की नीति को उस उपाय के तौर पर देखती हैं जो उन्हें अपने परिवार नियोजन की मूल योजना से अलग दिशा में ले जाती है. 25 वर्षीय छात्रा ब्रेंडा लियाओ ने डीडब्ल्यू को बताया कि उसकी उम्र के आसपास की कई चीनी महिलाएं अब चीन में "ले डाउन" नामक एक नई जीवन शैली का अभ्यास कर रही हैं. यह एक धारणा को दिखाता है जो चीन में महिलाओं और पुरुषों को जीवन में कर्तव्यों या जरूरतों को पूरा करने के लिए कम से कम कोशिश करने के लिए प्रोत्साहित करता है.
लियाओ कहती हैं, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार परिवार नियोजन के लिए कौन सी नीति लागू करती है, क्योंकि मैं पहले से ही अपने ऊपर बच्चे पैदा करने की कोई अपेक्षा न थोपकर 'लाइंग डाउन' की भावना को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं. मेरे कई दोस्तों का भी यही विचार है. वे भी इसी तरह से जिंदगी जीना चाहती हैं.”
कई ऐसी भी महिलाएं हैं जो ज्यादा बच्चे नहीं पैदा करना चाहती हैं. इसकी वजह चीन के बड़े शहरों में बच्चों के लालन-पालन पर होने वाला खर्च है. वे कहती हैं कि बच्चों की परवरिश में होने वाले खर्च की वजह से वे तीन बच्चों की नीति का पालन नहीं करेंगी. यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत लिली बी कहती हैं, "मैं चीन के टियर-वन शहर में रहती हूं, इसलिए बच्चों को पालने में होने वाला खर्च मुझे बहुत चिंतित करता है. मुझे नहीं लगता कि मैं अन्य सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ बच्चे की ठीक से परवरिश करने की चिंता का सामना कर सकती हूं.”
कुछ ऐसे भी हैं जो सोचते हैं कि दशकों से परिवार नियोजन की सख्त नीतियों को लागू करने के बाद चीनी सरकार को अब अपनी ही दवा का स्वाद मिल रहा है. चीन की एक घरेलू महिला अंबर चेन कहती हैं, "सरकार ने महिलाओं पर तीन दशकों तक एक से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए जुर्माना लगाया और अब वे जनसांख्यिकीय संकट के कारण अपनी ही नीतियों में तुरंत बदलाव कर रहे हैं. वे अपनी मनमानी नीतियों की कीमत चुका रहे हैं. उन्हें पता होना चाहिए था कि महिलाओं का बच्चा पैदा करने का अधिकार एक बुनियादी मानवाधिकार है और उन्हें इसे हमसे नहीं छीनना चाहिए था.”
दरअसल, माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म वीबो पर सरकारी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ द्वारा चलाया गया एक सर्वे भी कई चीनी महिलाओं के साझा किए गए विचारों का समर्थन करता है. सर्वेक्षण में पूछा गया कि क्या वे तीन बच्चों की नीति के लिए तैयार हैं. इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले 31,000 लोगों में से 28,000 से अधिक ने कहा कि वे इस पर कभी विचार नहीं करेंगे. पोल को बाद में वीबो से हटा दिया गया था.
सरकार और नागरिकों के बीच ‘सिविल वार'
सरकार ने तीन बच्चे पैदा करने की नीति लाकर बच्चे पैदा करने के अपने कठोर कानून में छूट दी है, लेकिन यह कानून अभी भी चीनी नागरिकों के मूल अधिकारों में दखल देता है. संयुक्त राज्य अमेरिका में विस्कॉन्सिन-मैडिसन यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक यी फुक्सियान ने डॉयचे वेले को बताया, "तीन बच्चों की नीति अभी भी एक तरह से परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण, और जनसंख्या को एक बोझ की तरह मानने जैसा है.”
फुक्सियान कहते हैं, "परिवार नियोजन चीनी सरकार और चीनी जनता के बीच आधी सदी तक चल रहा गृहयुद्ध है. इस गृहयुद्ध को समाप्त करने के लिए, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्णय से जनसंख्या नीति की दिशा में पूरी तरह बदलाव करने की जरूरत है. शायद इस बार बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए चीनी अधिकारियों ने सबसे पहले पोलित ब्यूरो की बैठक में एक उपाय के तौर पर तीन बच्चों की नीति की घोषणा की.”
प्रजनन क्षमता बढ़ाने के उपायों की जरूरत
हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के गिटेल-बास्टेन का मानना है कि तीन बच्चों की नीति के अलावा, चीनी सरकार को और भी ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि "अंतिम छोर तक की समस्या को ठीक किया जा सके.” वे कहते हैं, "महिलाओं के बच्चों की संख्या बढ़ाकर चीन की जनसांख्यिकीय चुनौतियों का समाधान नहीं हो पाएगा. अगर चीन की सरकार जन्मदर को बढ़ाना चाहती है, तो उसे इसके लिए लोगों में बच्चा पैदा करने की चाहत बढ़ानी होगी. इसके लिए लोगों की सहायता करने की जरूरत है.
तीन बच्चों की नीति के अलावा, सरकार ऐसे अन्य सहायक उपायों को शुरू करने पर विचार कर रही है जिससे चीन की जनसंख्या संरचना में मौलिक रूप से सुधार हो सके. सरकार शिक्षा में होने वाले खर्च को कम करने, आर्थिक और आवास सहायता बढ़ाने के साथ-साथ कामकाजी महिलाओं के कानूनी अधिकारों की रक्षा करने की योजना बना रही है.
तीन बच्चों की नीति की आलोचना के बावजूद, गिटेल-बास्टेन का कहना है कि अभी भी कुछ सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं, ताकि चीनी महिलाएं जिन चीजों का सामना करती हैं उन स्थितियों में सुधार किया जा सके. वे कहते हैं, "इस नीति से ऐसे लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आएगा जो तीसरा बच्चा पैदा करना चाहते हैं. साथ ही, महिलाओं को नसबंदी और गर्भपात जैसी परेशानियों से भी काफी हद तक छुटकारा मिलेगा.”
रिपोर्टिंग में जर्मन सार्वजनिक मीडिया एआरडी के शंघाई ब्यूरो की जोस कियान ने मदद की.