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अपराध

तीन लाख हत्याओं में मददगार ग्रोएनिंग की याचिका खारिज

१७ जनवरी २०१८

हिटलर की तानाशाही के दौरान 3,00,000 हत्याओं में मदद करने वाले पूर्व नाजी गार्ड की दया याचिका जर्मनी ने ठुकराई. ऑस्कर ग्रोएनिंग यूरोप के सबसे बड़े यातना शिविर आउशवित्स का गार्ड था.

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Deutschland Prozess Oskar Gröning in Lüneburg Urteil
तस्वीर: Reuters/A. Heimken

जर्मन प्रांत लोअर सैक्सनी के अभियोजकों ने 96 साल के ऑस्कर ग्रोएनिंग की दया याचिका ठुकरा दी है. नाजी काल में एसएस गार्ड रहे ग्रोएनिंग को आउशवित्स यातना शिविर का बुककीपर भी कहा जाता था. ग्रोएनिंग हत्या के तीन लाख मामलों में सहयोग करने का दोषी करार दिया जा चुका है. उसे चार साल की सजा सुनाई जा चुकी है.

सजा से बचने के लिए ही ग्रोएनिंग ने दया की याचिका की थी. बुधवार को लुइनेबुर्ग में अभियोजक कार्यालय की प्रवक्ता वीब्के बेथेके ने सिर्फ यही कहा कि "दया की गुहार ठुकरा दी गई है." ग्रोएनिंग अब लोअर सैक्सनी प्रांत के न्याय मंत्रालय से दया की अपील कर सकता है.

इससे पहले दिसंबर 2017 में जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने ग्रोएनिंग की सजा निलंबित करने से इनकार कर दिया. ग्रोएनिंग ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए दया की दरख्वास्त की थी. अदालत ने माना की ग्रोएनिंग को किसी तरह की शारीरिक समस्या नहीं है और उसकी सजा एक खास संदेश देती है.

ग्रोएनिंग ने 1942 में नाजी काल की एलीट वाफेन-एसएस फोर्स ज्वाइन की. तब उसकी उम्र 21 साल थी. ग्रोएनिंग को आउशवित्स में रिकॉर्ड दर्ज करने वाले गार्ड का काम मिला. आउशवित्स में लाए जाने वाले लोगों से जितना भी पैसा या बहुमूल्य चीजें छीनी जाती थी, ग्रोएनिंग उन्हें रजिस्टर में दर्ज करता था. इसके बाद छीनी गई सामग्री बर्लिन भेजी जाती थी.

2005 में कई अखबारों को दिए गए इंटरव्यू में ऑस्कर ग्रोएनिंग ने कहा था, "जनवरी 1943 की एक रात मैंने पहली बार देखा कि यहूदियों को किस तरह गैस चैंबर में मार डाला गया. जब दरवाजे बंद किए गए तब मैंने गैस चैंबर से घबराई हुई आवाजें सुनीं. मैंने किसी को नहीं मारा है. मैं तो हत्यारी मशीन का एक पुर्जा मात्र था. मैं अपराधी नहीं था." लुइनेबुर्ग में अदालती सुनवाई के दौरान ग्रोएनिंग ने "नैतिक रूप से खुद को दोषी" बताया. हालांकि उसने यह भी कहा कि वह जनसंहार के लिए व्यक्तिगत रूप से दोषी नहीं है.

हिटलर की तानाशाही के दौरान जर्मनी और यूरोप में कई यातना शिविर बनाए गए. पोलैंड के आउशवित्स शहर के पास 1940 में यह यातना शिविर बनाया गया. यहां शुरू में केवल राजनीतिक कैदियों को रखा जाता था. बाद में यह सबसे ज्यादा यहूदियों की जान लेने वाली जगह बन गया. करीब पांच साल के भीतर आउशवित्स में 11 लाख से ज्यादा लोगों को मारा गया. मृतकों में ज्यादातर यहूदी थे. 27 जनवरी 1945 को पोलैंड में दाखिल होने के बाद सोवियत सेना ने बंदियों को आउशवित्स से आजाद कराया.

ओएसजे/आईबी (डीपीए, एएफपी, एपी)