तुर्की: महिलाओं की हत्या को कब तक आत्महत्या बताया जाएगा?
२ अप्रैल २०२१तुर्की में महिलाओं की वीभत्स तरीके से हत्या होना आम बात हो गई है. अपराध की ये खबरें देश के बड़े हिस्से को बार-बार झकझोर कर रख देती हैं. वर्ष 2018 में अंकारा की रहने वाली 23 साल की सुले केट की हत्या कर दी गई थी. यह हत्या भी उन्हीं सब घटनाओं में से एक है जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया.
इस महिला के साथ उसके ऑफिस में शराब के नशे में दो लोगों ने बलात्कार किया था. इनमें से एक महिला का बॉस था. इसके बाद महिला को ऑफिस की खिड़की से नीचे फेंक दिया गया था. इस मामले में दोनों व्यक्तियों ने पुलिस को बताया था कि केट ने आत्महत्या की. जबकि साक्ष्य पूरी तरह अलग थे. मामले की जांच करने वाले अधिकारी ने पाया कि महिला के गले की हड्डी टूटी हुई थी और उसके खून में नशीली दवाओं का अंश था.
छह महीने तक इस मामले की सुनवाई चली. इस दौरान काफी संख्या में महिलाओं ने पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए प्रदर्शन किया. सोशल मीडिया पर भी यह मामला लंबे समय तक चर्चा में रहा. आम जनता के दबाव में अंकारा की अदालत ने एक आरोपी को उम्र कैद और दूसरे को 19 साल जेल की सजा सुनाई. इसके बाद, महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों को यह उम्मीद जगी कि अब समाज में बदलाव आएगा. हालांकि, अब भी समाज में ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है. अभी भी महिलाओं की हत्या के कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिन्हें आत्महत्या के तौर पर बताया गया.
जांच में अनियमितता का आरोप
सबसे हाल का मामला दक्षिणपूर्वी तुर्की के शहर दियारबाकिर का है. यहां 35 साल की आयतिन काया की मौत सुर्खियों में रही. काया अपने घर में फंदे पर लटकी हुई मिली थी. जांच करने वालों ने पाया कि उसने आत्महत्या की. इसके बाद स्थानीय अदालत ने इस मामले को बंद कर दिया. लेकिन महिला के रिश्तेदारों को आत्महत्या की बात पर विश्वास नहीं हुआ. उनका मानना था कि काया की हत्या की गई.
रिश्तेदारों ने कहा कि इस मामले की जांच में कई कमियां थीं और जांच के दौरान कई विरोधाभासी बातें सामने आईं. उदाहरण के तौर पर, शव के परीक्षण के दौरान मौत के समय को दर्ज नहीं किया गया. साथ ही, पूरे शरीर पर चोट के निशान थे, जो आमतौर पर आत्महत्या करने पर नहीं होते हैं.
शव के परीक्षण में यह भी पता चला कि महिला के शरीर पर खून के थक्के थे जो तीन दिन पुराने थे. महिला का पति किसान है. महिला का शव मिलने के ठीक तीन दिन पहले उसका पति घर पर था. कई आपत्तियों के बावजूद, स्थानीय अदालत ने इस मामले की फिर से सुनवाई नहीं करने का फैसला किया.
रोजा एक संगठन है जो महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करता है. वकील गुरबेट गोजडे एंगिन इस संगठन के दियाबाकिर शाखा से जुड़ी हुई हैं. वे कहती हैं कि आयतिन काया की मौत के कुछ सप्ताह के दौरान चार अन्य महिलाओं की भी संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई. अदालत ने इन मामलों की भी जांच करने से मना कर दिया, "जिन परिस्थितियों में इन महिलाओं की मौत हुई, उसे आत्महत्या के तौर पर बताना संदेहजनक है. इन सभी मामलों की जांच अलग तरीके से होनी चाहिए. सिर्फ हत्या करना ही अपराध नहीं है, बल्कि हत्या को आत्महत्या करार देना भी अपराध है."
न्यायिक प्रणाली पर सवाल
महिलाओं के लिए काम करने वाले संगठन कादीन कुल्टुयर इवि देरनेगी हातीस कोरुक पूरी न्यायिक प्रणाली पर सवाल उठाती हैं. वे कहती हैं, "जब किसी महिला की हत्या को आत्महत्या के तौर पर दर्ज किया जाता है, तो हमें और अधिक शक के नजरिए से इसे देखना होगा. ऐसा होने का मतलब है कि इससे महिलाओं की हत्या को छिपाया जा रहा है."
इस्तांबुल स्थित मोर काटी कादीन सिंगांगी वाकफी संगठन भी महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करता है. लायेला सोयडिंक भी इस संगठन से जुड़ी हुई हैं. वे इस पूरे मामले को संस्थागत समस्या के तौर पर देखती हैं. वे कहती हैं, "पुरुषों के प्रभुत्व वाली न्यायिक प्रणाली में महिलाओं के खिलाफ होने वाले कई आपराधिक मामलों में किसी को सजा नहीं होती."
वे आगे बताती हैं, "पुरुषों को यह लगता है कि जैसे ही वे महिलाओं की हत्या को आत्महत्या का रूप दे देंगे, उन्हें इस न्यायिक प्रणाली में निर्दोष समझा जाएगा. जब मामला दर्ज होता है, तब आत्महत्या साबित करने के लिए तर्क दिए जाते हैं कि वह अच्छे मूड में नहीं थी, मनोवैज्ञानिक समस्याएं थी, वगैरह."
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
महिलाओं की हत्या के मामले पर सोशल मीडिया अभियान और महिला अधिकार समूहों की कार्रवाई सरकार और न्यायपालिका पर दबाव डाल रही है. इन दोनों ने बहुत लंबे समय से इस समस्या को हल करने के लिए काम किया है. हालांकि अब तक महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को लेकर राजनीतिक पार्टिंयों ने किसी तरह की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई है.
'हम महिलाओं की हत्या को रोकेंगे' संगठन की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 2020 में महिलाओं की हत्या के 300 मामले दर्ज किए गए हैं. इस संगठन ने कहा कि इसी दौरान तुर्की में 171 अन्य महिलाओं की संदेहास्पद स्थिति में मौत हुई. इनमें से कुछ मामलों को कथित तौर पर आत्महत्या बताया गया.
कई महिलाओं को उम्मीद है कि यूरोप की इस्तांबुल कन्वेंशन परिषद से इन मामलों में कमी आएगी. महिलाओं और घरेलू हिंसा के खिलाफ हिंसा को रोकने और उनसे निपटने की संधि 2014 में हुई थी. इसमें कन्वेंशन ने ऐसा करने के लिए एक रूपरेखा तैयार करने के लिए हस्ताक्षरकर्ताओं को बाध्य किया था.
तुर्की ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने और परिवार की सुरक्षा के लिए कानून पारित करके पांच साल पहले समझौते को मंजूरी दी थी. हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इस्तांबुल कन्वेंशन के कानूनी मानदंडों को नहीं अपनाया गया है. महिलाओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव को केवल तभी रोका जा सकता है जब तुर्की की न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन एजेंसियां वाकई में कन्वेशन में हुई बातों को लागू करें.