जीसस क्राइस्ट या केशव कृष्ण?
२४ फ़रवरी २०१६इस पुस्तक को पहली बार लगभग सत्तर साल पहले प्रकाशित किया गया था. अब इसे दोबारा छापा जा रहा है. पुस्तक का लोकार्पण सावरकर की पुण्यतिथि के मौके पर 26 फरवरी को मुंबई में होगा. स्वतंत्रवीर सावरकर नेशनल मेमोरियल के अध्यक्ष रंजीत सावरकर ने बताया कि इस पुस्तक को सावरकर के बड़े भाई गणेश सावरकर ने वर्ष 1946 में देश के आजाद होने से ठीक पहले लिखा था. अब इसे दोबारा प्रकाशित करने का फैसला किया गया है.
पुस्तक में दावा किया गया है कि ईसाइयत हिंदू धर्म का ही एक पंथ है. इसमें लिखे का भरोसा करें तो जीसस का निधन कश्मीर में हुआ था. लेखक का कहना है कि ऐस्सेन पंथ के लोगों ने जीसस को समाधि से उतार कर हिमालय की जड़ी-बूटियों के जरिए इलाज से उनको दोबारा जीवित कर दिया. बाद में जीसस ने कश्मीर में समाधि ली थी. पुस्तक में कहा गया है, "जीसस का असली नाम केशव कृष्ण था और उनका रंग काला था. उनकी मातृभाषा तमिल थी." इसमें बताया गया है कि मौजूदा फलीस्तीनी और अरब क्षेत्र हिंदू इलाके थे. जीसस वहां से भारत दौरे पर आए और उन्होंने यहीं योग की शिक्षा ली थी.
क्राइस्ट परिचय नामक इस पुस्तक में दावा किया गया है कि जीसस जन्म से विश्वकर्मा ब्राह्मण थे. मराठी में लिखी यह पुस्तक सावरकर नेशनेल मेमोरियल ने प्रकाशित की है. इस ट्रस्ट का काम सावरकर बंधुओं के साहित्य और आदर्शों का प्रचार-प्रसार करना है.
मुंबई के वरिष्ठ पादरी और बांबे आर्कडायोसेशन हेरिटेज म्युजियम के निदेशक फादर वार्नर डिसूजा कहते हैं, "यह जीसस के बारे में तरह-तरह के दावे करने का पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी कई लोगों ने कई दावे किए हैं. लेकिन ऐसे लेखन से जीसस के प्रति ईसाइयों का भरोसा नहीं डगमगाएगा." कोलकाता के आर्कबिशप थॉमस डिसूजा पुस्तक में किए गए दावों को निराधार ठहराते हैं. वह कहते हैं, "इसमें जो दावे किए गए हैं उनका न तो कोई आधार है और न ही उनके समर्थन में कोई सबूत. ऐसे में इससे ईसाई धर्म या उसके समर्थकों पर कोई असर नहीं होगा." लेकिन बावजूद इसके लोकार्पण के बाद इस पर विवाद होना तो तय ही माना जा रहा है.