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समाज

त्रिपुरा में पहली बार प्लास्टिक कचरे से बनी सड़क

प्रभाकर मणि तिवारी
२३ फ़रवरी २०२१

प्लास्टिक का कचरा हर देश के लिए समस्या है. उसका कुछ हिस्सा रिसाइकल हो जाता है लेकिन ज्यादातर उपयोग के लायक नहीं रहता. भारत में नष्ट न होने वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल कर सड़क बनाने की पहल हो रही है.

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सांकेतिक तस्वीरतस्वीर: DW/S. Waheed

पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा कोई दो दशकों तक लेफ्ट की सरकार और उसके मुख्यमंत्री मानिक सरकार की सादगी की वजह से सुर्खियां बटोरता था. करीब तीन साल पहले सत्ता में आने वाली बीजेपी के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब अक्सर अपने अटपटे बयानों के जरिए सुर्खियां बटोरते रहते हैं. लेकिन अब पहली बार यह राज्य राजनीति से इतर वजह से सुर्खियों में है. वह है राज्य को प्लास्टिक-मुक्त करने की सरकारी पहल. अगरतला स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत राजधानी अगरतला में प्लास्टिक के कचरे से पहली सड़क बनाई गई है. वैसे तो इसकी लंबाई महज सात सौ मीटर ही है. लेकिन सरकार का कहना है कि इस परियोजना की कामयाबी के बाद अब यह काम बड़े पैमाने पर शुरू किया जाएगा. मुख्यमंत्री ने सोमवार को इस सड़क का उद्घाटन किया.

प्लास्टिक का रिसाइकल न होने वाला कचरा भारत समेत पूरी दुनिया के लिए चिंता का मुद्दा बनता जा रहा है. मोटे अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में हर साल लगभग 500 अरब प्लास्टिक की थैलियां इस्तेमाल की जाती हैं. तमाम महासागरों में हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक का कचरा पहुंचता है. प्लास्टिक की कुल खपत में से आधे से अधिक का इस्तेमाल महज एक बार किया जाता है. भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार देश में हर साल लगभग 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है. अकेले गंगा नदी में हर साल भारी मात्रा में टन प्लास्टिक पहुंचता है. सीमा सड़क संगठन ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कुछ राज्यों में इस कचरे के इस्तेमाल से सड़क बनाने की योजना बनाई है.

अगरतला में जमा प्लास्टिक से बनी सड़क

वैसे, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने वर्ष 2018 में सत्ता में आने के बाद ही इस दिशा में पहल की थी और सरकारी अधिकारियों को इस बारे में जरूरी निर्देश दिए थे. त्रिपुरा देश के बाकी हिस्सों के साथ महज नेशनल हाइले-44 के जरिए ही जुड़ा है. वैसे भी पूर्वोत्तर राज्यों में असम को छोड़ दें तो बाकियों के लिए सड़कों को जीवनरेखा माना जाता है. मुख्यमंत्री ने अगरतला नगर निगम (एएमसी) से लोगों के घरों से कचरा जुटाने का अभियान चलाकर रिसाइकिल प्लास्टिक के कचरे से कम से कम पांच सौ मीटर लंबी सड़क बनाने को कहा था. लेकिन अब करीब सात सौ मीटर लंबी सड़क को इस तकनीक से तैयार किया गया है.

मुख्यमंत्री बिप्लब देब का कहना था, "यह पहला मौका है जब त्रिपुरा में घर-घर से प्लास्टिक का कचरा जुटा कर उसे रिसाइकल किया गया और उससे सात सौ मीटर लंबी सड़क का निर्माण किया गया है. इस योजना से भविष्य की राह खुल गई है. इससे यह बात पता चलती है कि उचित इस्तेमाल से इस कचरे की लगातार गंभीर होती समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. इससे हम पूरे राज्य व पर्यावरण को प्लास्टिक-मुक्त बना सकते हैं.”

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रोजाना 19 टन प्लास्टिक

अगरतला स्मार्ट सिटी लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शैलेश कुमार यादव बताते हैं, "सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक कचरे का उपयोग करने का विचार अनूठा है. जिस तरह बिटुमेन में पत्थर का इस्तेमाल किया जाता है उसी तरह से एक निश्चित मात्रा में प्लास्टिक के कचरे का इस्तेमाल पत्थर के साथ-साथ अंतिम मिश्रण में किया जाता है.” इस सड़क को बनाने पर सत्तर लाख रुपए की लागत आई है यानी दस लाख रूपए प्रति सौ मीटर. उन्होंने कहा कि राजधानी अगरतला में रोजाना 19 टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है. यादव बताते हैं कि प्लास्टिक कचरे को बिटुमेन के साथ मिला कर बनाई जाने वाली सड़कें उन इलाकों के लिए बेहद असरदार हैं जहां बारिश ज्यादा होती है और सड़कों पर पानी भर जाता है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने भी पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए राज्य में करीब डेढ़ हजार किमी लंबी सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल का फैसला किया है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश, सिक्किम. अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी इस दिशा में पहल की जा रही है. पूर्वोत्तर के एक अन्य पर्वतीय राज्य मेघालय में पहले ही ऐसी एक सड़क बन चुकी है. पर्यावरणविदों ने त्रिपुरा सरकार की इस पहल का स्वागत किया है. पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर ध्रुवज्योति सरकार कहते हैं, "देर आयद, दुरुस्त आयद. राज्य सरकार ने छोटे स्तर पर ही सही, इस दिशा में ठोस पहल की है. इस प्रयोग की कामयाबी के बाद अब आम के आम गुठली के दाम की तर्ज पर जहां रोजाना पैदा होने वाले प्लास्टिक कचरे से मुक्ति मिलेगी, वहीं सड़क निर्माण की लागत भी कम हो जाएगी.”

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