थाइलैंड में ट्रांसजेंडरों को भिक्षुक की ट्रेनिंग
१९ जुलाई २०११थाइलैंड और लाओस की सीमा पर स्थित चिआंग खोंग में यह ट्रेनिंग चल रही है. ट्रेनिंग देने वाले मंदिर वाट क्रयूंग ताई विताया का कहना है कि भिक्षुक बनने लिए इन लोगों को पहले यह समझना जरूरी है कि कुदरत ने इन्हें पुरुष के तौर पर धरती पर भेजा है, इसलिए इन्हें पहले अपने अंदर के आदमी को खोजना होगा. नौसिखिया भिक्षुकों को यहां खेल कूद करने, गाने बजाने और दौड़ भाग करने की मनाही है.
15 साल के पिपोप थनाजिनदावोंग को यहां ट्रेनिंग के लिए भेजा गया है. वह इस जगह के सख्त नियमों के बारे में बताता है, "उन्होंने यहां नियम बनाए हुए हैं कि प्रशिषण ले रहा भिक्षुक पाउडर, मेक अप या इत्र का इस्तेमाल नहीं कर सकता और लड़कियों की तरह पेश नहीं आ सकता." ट्रेनिंग देने वाले मुख्य भिक्षु फर पितसानु वितचरातो पिपोप जैसे लोगों के रवैये के बारे में बताते हैं, "कभी कभी हम उन्हें पैसे देते हैं ताकि वो खाने पीने की चीजें खरीद सकें. लेकिन वे (पिपोप) उस पैसे को बचाता रहा ताकि मेक अप के लिए मस्कारा खरीद सके."
तुम पुरुष हो
भिक्षुकों का दिन यहां भी अन्य मंदिरों की ही तरह गुजरता है, सूराज उगने से पहले उठाना, भिक्षा लेने जाना और बौद्ध धर्म के बारे में पढ़ना. लेकिन हर शुक्रवार मंदिर के साथ जुड़े स्कूल में उन्हें मर्द होने का अहसास कराया जाता है. उन्हें 'मर्दानगी' की शिक्षा दी जाती है. ट्रांसजेंडर पुरुषों को थाई भाषा में कोतेय कहा जाता है. ये शारीरिक रूप से पुरुष होते हैं लेकिन महिलाओं की तरह व्यवहार करते हैं और वैसे ही कपड़े पहनते हैं.
पितसानु वितचरातो इस स्कूल में कोतेय लोगों को ट्रेनिंग देते हुए उनसे पूछते हैं, "क्या तुम्हारा जन्म एक पुरुष के रूप में हुआ था या एक महिला के रूप में? क्या तुम अपना लिंग नहीं बता सकते? ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि तुम एक पुरुष हो. एक भिक्षुक के तौर पर तुम केवल पुरुष ही हो सकते हो."
इस मंदिर में 2008 से यह ट्रेनिंग चल रही है, जिसमें 11 से 18 साल की उम्र के ट्रांससेक्शुअल (ट्रांसजेंडर) हिस्सा लेते हैं. अब इसे अन्य मंदिरों में भी शुरू करने की कोशिश की जा रही है. पितसानु वितचरातो इस बारे में बताते हैं, "हम इन सब को तो बदल नहीं सकते, लेकिन हम इनके व्यवहार को बदलने की कोशिश कर ही सकते हैं. हम चाहते हैं कि इन्हें समझ में आए कि ये पुरुष हैं, ये महिलाओं की तरह पेश न आएं."
गे राइट्स एक्टिविस्ट नाराज
समलैंगिकों के लिए काम करने वाले लोगों में ऐसी ट्रेनिंग को लेकर नाराजगी है. गे राइट्स के लिए संघर्ष कर रहे नाती तीरारोजानापोंग कहते हैं, "यह बहुत खतरनाक है. ये बच्चे खुद से घृणा करने लगेंगे, क्योंकि इन्हें हमारे आदरणीय भिक्षुक यह सिखा रहे हैं कि समलैंगिक होना गलत है. ये उनके लिए बहुत बुरा है. वो कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे." थाइलैंड मुख्य रूप से बौद्ध देश है और यहां की लगभग 95 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म को मानती है.
कुछ रिपोर्टों के मुताबिक दुनिया में सबसे अधिक ट्रांससेक्शुअल्स थाइलैंड में रहते हैं और इन्हें समाज में स्वीकार भी किया जाता है. वहीं भिक्षुकों को विश्वास है कि वे उन्हें बदल सकेंगे. अब तक स्कूल से ट्रेनिंग पूरी कर चुके छह कोतेय में से तीन पुरुष भिक्षुक बन चुके हैं, जबकि बाकी तीनों ने लौट कर लिंग बदलवा लिया. पिपोप थनाजिनडावोंग भी यहां से बाहर जा कर ऐसा ही करना चाहता है. वो कहता है, "यहां से बाहर निकल कर मैं सबसे पहले जोर से चिल्ला कर सबसे यह कहना चाहता हूं कि अब मैं आजाद हूं और मैं जो था, अब मैं दोबारा वही बन कर जी सकता हूं."
रिपोर्ट: एएफपी/ ईशा भाटिया
संपादन: ए जमाल