थाईलैंड: विदेश में राजा, क्लेश में जनता
२५ जुलाई २०२०पूर्व में प्रधानमंत्री रहे शिनावात भाई-बहन थकशिन और उनकी बहन यिंगलुक का राजनीतिक निर्वासन इसी लड़ाई का एक हिस्सा रहा है. कभी गुलाम नहीं रहे दक्षिण-पूर्वी एशिया के इस संवैधानिक राजतंत्रीय व्यवस्था वाले देश में आम जनता के विरोध प्रदर्शन आम हो चले हैं. पिछले एक दशक से अधिक समय से जनता में किसी ना किसी बात पर शासन और शासकों से अनबन कायम रही है.
थाईलैंड की जनता के लिए राजा सम्मान और न्याय का प्रतीक रहा है, लेकिन राजा फूमिफोन अदुन्यतेज (रामा IX) के अक्तूबर 2016 में देहावसान के बाद उम्मीद की वह किरण भी जाती रही. नए राजा महा वजीरलॉन्गकार्न बोदिनद्रदेव्यावरनकुन 2016 में राजगद्दी संभालने के बाद से ही राजकाज से विरक्त हैं और आज जब सारा देश कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है तो वह जर्मनी के पहाड़ों में किसी आलीशान विला में अपनी रानियों के साथ खुद को क्वारंटीन किए बैठे हैं.
देश में सत्ता लोकतांत्रिक ढंग से बनी सरकार के हाथ में है, यह बात और है कि प्रधानमंत्री और कैबिनेट के कई सदस्य पूर्व सैन्य अधिकारी हैं और लोकतंत्र में उनकी दिलचस्पी हाल के वर्षों में ही जगी है. महामारी के बीच अर्थव्यवस्था लगातार लड़खड़ा रही है और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन भी जारी है. ऐसे में जनता में रोष और गुस्सा बढ़े तो कोई आश्चर्य नहीं. 23 जुलाई को हुए विरोध प्रदर्शन में यह बात एक बार फिर मुखर हो कर सामने आ गई.
थाईलैंड में कोविड-19 के चलते लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध है. इसके बावजूद लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया. गौरतलब है कि इन प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई करने के लिए पुलिस का दल-बल सामने नहीं आया. राजधानी बैंकॉक के अलावा पत्तनी, आयुथया, खों काइन जैसे प्रांतों में भी ऐसे प्रदर्शन हुए हैं और यह सिलसिला लगातार चल रहा है.
थाईलैंड में सरकार कोविड-19 के चलते अगस्त तक आपातकाल लागू करने जा रही है. साथ ही यह स्पष्टीकरण भी दिया जा रहा है कि लोगों के कोविड की वजह से बाहर निकलने पर प्रतिबंध है रैलियां और प्रदर्शन करने पर नहीं. इन दोनों बातों में सामंजस्य कैसे बैठाया जाएगा यह तो वहां की सरकार और पुलिस प्रशासन ही बता सकता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले लगभग दो महीनों में लगातार चार बार ऐसा हो चुका है.
जहां तक कोविड-19 महामारी का सवाल है तो यह स्पष्ट है कि थाईलैंड ने इसे रोकने में सफलता पाई है. इंडोनेशिया, फिलीपींस और मलेशिया के मुकाबले थाईलैंड में कोविड-19 संक्रमित लोगों की संख्या कम रही है. इसके बावजूद सरकार ने सख्ती से आपातकाल लागू कर रखा है जिसके पीछे कोविड संक्रमण कम और सरकार की अपनी कमजोरियां और राजनीतिक विरोध ज्यादा बड़ी वजहें हैं.
पिछले विरोध प्रदर्शन में दो बातें खासतौर पर गौर करने लायक हैं. पहली यह कि प्रदर्शनकारियों में अधिकांश युवा वर्ग के या फिर 40 और उससे कम उम्र के लोग थे. दूसरी यह कि इनमें से एक बड़ा तबका सामान्यतः पढ़े-लिखे लोगों का था जिनके हाथों में स्मार्टफोन और टैबलेट थे. स्थिति ऐसी थी कि 23 की शाम को बैंकाक के बाहरी इलाके में हुए इस प्रदर्शन में लोगों ने रोशनी फोन और टैबलेट के सहारे ही की थी. साफ है, युवा और छात्र वर्तमान व्यवस्था से नाखुश हैं.
प्रदर्शनकारियों का मानना है कि वर्तमान संविधान 2014 के सैन्य तख्तापलट का नतीजा है और पिछले लगभग 6 सालों में यह थाईलैंड की राजनीतिक पार्टियों और आम नागरिकों की स्वतंत्रता और मानवीय अधिकारों के गले की फांस बन चुका है. इस प्रदर्शन के पीछे एक विद्यार्थी संगठन की योजना रही है जिसे "फ्री यूथ” के नाम से जाना जाता है.
इन विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में हैं प्रधानमंत्री प्रयुथ चान-ओ-छा और उनकी सरकार. लगभग एक साल पहले प्रयुथ की सरकार सत्ता में आई. हालांकि वह छः साल पहले लोकतांत्रिक ढंग से चुनी सरकार का तख्तापलट कर सत्ता में आए थे, लेकिन पिछले साल उन्होंने बुलेट त्याग कर बैलेट का खेल खेलने का मन बनाया. खेल भी उनका, खिलाड़ी भी उनके, और रेफरी भी उन्हीं के थे और उस पर राजा भी मेहरबान- तो प्रयुथ का सत्ता में आना तो तय ही था.लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में चुनाव जीतना संघर्षों की श्रृंखला की पहली कड़ी है.
इसलिए विपक्ष को खत्म करना भी जरूरी था. नतीजतन 2019 के चुनाव के बाद देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी फ्यूचर फॉरवर्ड पार्टी को भंग कर दिया गया. माना जाता है कि इसने प्रयुथ की पार्टी और सरकार दोनों को ही ताकतवर बनाया है. देश की राजनीति में युवाओं का खासा योगदान है. 2019 के चुनावों में फ्यूचर फॉरवर्ड पार्टी को युवाओं का अच्छा समर्थन प्राप्त था. लेकिन चुनावों के बाद इस पार्टी को भंग किए जाने के बाद से ही विपक्ष में सुगबुगाहट है और विरोध की जड़ों के तार कहीं ना कहीं उस घटना से भी जुड़े हैं.
प्रयुथ के हिस्से की ज्यादातर मुश्किलें उनकी अपनी पैदा की हैं. कैबिनेट में शामिल पार्टियों की उठापटक और किसी तरह सत्ता में बने रहने की प्रयुथ की कवायद की वजह से उनकी सरकार पर लोगों का भरोसा कोविड-19 महामारी के बाद और भी कम होता दिख रहा है. इस सबके बीच पिछले कुछ महीनों में कई मंत्रियों के इस्तीफों ने समस्या को और बढा दिया है.
प्रयुथ सरकार के खिलाफ विरोध के बीच थाईलैंड की संसद ने छात्रों की मांगों पर गंभीर और जिम्मेदार रुख अपनाया है और उनकी मांगों को सुनने के लिए एक पैनल का गठन भी हुआ है. लेकिन प्रयुथ सरकार के रवैये को देखते हुए यह आशंका भी बनी हुई है कि यह कवायद भी सिर्फ एक खानापूर्ति भर बन कर ना रह जाए.
पर्यटन पर निर्भर थाईलैंड की अर्थव्यवस्था के लिए कोविड एक बड़ी त्रासदी ले कर आया है. बेरोजगारी बढ़ रही है और लोगों में बेचैनी भी. अर्थव्यवस्था तेजी से संकुचित हो रही है जिसका कोई समाधान फिलहाल नहीं दिख रहा है. सरकार के वित्त मंत्री उत्तमा सवान्याना का त्यागपत्र आर्थिक मोर्चे पर आंतरिक तनाव को और स्पष्ट करता है. हालांकि चीन से अभी भी सैलानियों का आना बदस्तूर जारी है, लेकिन लोगों में संक्रमण को लेकर भय है और ज्यादातर लोग बाहर निकलने से कतरा भी रहे हैं.
सरकार ने जनता को सब्सिडी भी दी है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है और आलोचक इसे प्रयुथ का लोकलुभावन फार्मुला ही मानते हैं. ऐसा लगता है कि सरकार की घटती साख के बीच प्रयुथ को अर्थव्यवस्था को तो पटरी पर लाना ही होगा, साथ ही अपनी सरकार की वैधता और लोकप्रियता पर भी काम करना होगा. सिर्फ कुछ नए चेहरों को मंत्रिपरिषद में लाने या कैबिनेट में परिवर्तन मात्र से यह मुश्किलें दूर होंगी ऐसा नहीं लगता.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)
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