'द गार्डियन' पर नाराज कैमरन
३० अक्टूबर २०१३संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि ब्रिटिश सरकार को अच्छे और बुरे में अंतर समझ आता है. खुफिया एजेंसियां आतंकवाद से सुरक्षा के लिए काम कर रही हैं, और जो कोई भी उनके काम से संबंधित जानकारी सामने लाता है वह उनका दुश्मन है. कैमरन ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि प्रेस को इस बात का ध्यान रखना होगा कि अगर वे अपनी सामाजिक जिम्मेदारी नहीं समझेंगे तो सरकार के लिए भी खामोश रहना और उनके खिलाफ कोई कदम ना उठाना संभव नहीं होगा.
कैमरन का निशाना ब्रिटिश अखबार 'द गार्डियन' पर था. उनके मुताबिक जासूसी से जुड़ी संवेदनशील जानकारी को नष्ट कर देने का वादा करने के बाद भी अखबार इस बारे में कुछ ना कुछ छापता जा रहा है. अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए से जुड़ी जानकारी दुनिया के सामने लाने वाला गार्डियन अखबार ही था. गार्डियन के लिए काम करने वाले ग्लेन ग्रीनवाल्ड को यह जानकारी एनएसए के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडन ने दी.
गार्डियन और दूसरे प्रमुख द्वारा इस भंडाफोड़ के बाद जर्मनी के अलावा रूस, फ्रांस, ब्राजील, स्पेन और मॉस्को पर अमेरिकी खुफिया एजेंसी के मामले सामने आने से इन देशों में अमेरिका के प्रति भारी नाराजगी रही. पिछले दिनों जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के फोन पर भी अमेरिका की जासूसी की खबरों के साथ सामने आया कि मैर्केल समेत अमेरिका ने विश्व के 35 प्रमुख नेताओं की फोन पर बातचीत सुनी.
जर्मनी में प्रेस अधिकार
ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ने कुछ ऐसे संकेत दिए कि मीडिया को अपनी हद में रहने की जरूरत है. खोजी पत्रकारिता करने वाले जर्मनी के हंस लाएनडेकर कहते हैं, "जर्मनी में इस तरह की किसी बात की कल्पना भी करना संभव नहीं है." वह जुएडडॉयचे साइटुंग के लिए काम करते हैं जिसने स्नोडन के खुलासे को जर्मनी में छापा था. हालांकि उन्होंने माना कि राजनीतिज्ञ मीडिया के काम को प्रभावित करने की कोशिश करते रहते हैं. लेकिन ज्यादा से ज्यादा वह कुछ छप जाने पर नाखुश होकर अखबार को यह धमकी देते हैं कि वे आगे से उन्हें कोई जानकारी नहीं देंगे.
उन्होंने बताया कि जर्मनी में इस तरह की परेशानियां व्यापारिक स्कैंडलों के मामले में होती हैं. कई बार छपने से पहले ही वकीलों और कानूनी दांवपेंच जानने वालों के धमकी भरे फोन आने लगते हैं.
मीडिया पर राजनीतिक प्रभाव
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' की जर्मन शाखा में काम करने वाले मिषाएल रेडिस्के मानते हैं कि ऐसी परिस्थितियों में डॉयचे वेले जैसे सरकारी समाचार संस्थान ज्यादा संवेदनशील स्थिति में होते हैं. क्योंकि संस्था को चला रहे सुपरवाइजरी बोर्ड में सामाजिक प्रतिनिधि और राजनेता शामिल होते हैं.
रेडिस्के मानते हैं कि राजनीतिक प्रभाव से अपनी रक्षा करने में जर्मन मीडिया काफी सक्षम है. जर्मन राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ के मामले का जिक्र करते हुए वह कहते हैं, "वुल्फ ने बिल्ड अखबार को फोन कर उनके कर्ज लेने के संदेहास्पद मामले को ना छापने को कहा, लेकिन इस बात ने वुल्फ मामले को और हवा दे दी. अंत में वुल्फ को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. रेडिस्के मानते हैं कि जर्मनी में पत्रकारिता को अपने अनुसार ढालने की हरकत को कांड जैसा माना जाता है और इसका राजनीतिज्ञ पर उल्टा ही असर पड़ता है.
राष्ट्रीय सुरक्षा ज्यादा अहम
कैमरन गार्डियन के अकेले आलोचक नहीं हैं. 'द डेली मेल' ने भी गार्डियन पर हमला करते हुए कहा, "यह ऐसा अखबार है जो ब्रिटेन के दुश्मनों की मदद करता है. 'द सन' ने कंजर्वेटिव पार्टी के हवाले से लिखा, "आतंकियों की मदद के लिए गार्डियन पर मुकदमा चलना चाहिए."
रेडिस्के दूसरे यूरोपीय देशों को इस मामले में ब्रिटेन से अलग पाते हैं. वह कहते हैं, "अमेरिका का मित्र राष्ट्र होने के नाते और खुद आतंकवादी हमले झेल चुकने की वजह से ब्रिटेन खुद को ज्यादा खतरे में पाता है, ताकि लोग आजादी के मुकाबले सुरक्षा को ज्यादा प्राथमिकता दें."
रिपोर्ट: रेगीना मेनिग/समरा फातिमा
संपादन: महेश झा