द बॉब्स 2016 में छाया अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा
१५ जून २०१६बॉब्स अवॉर्ड जीतने वालों को मंगलवार शाम जर्मनी के बॉन में आयोजित होने वाले सालाना सम्मेलन ग्लोबल मीडिया फोरम में सम्मानित किया गया.
बॉब्स दुनिया भर में सोशल चेंज, टेक फॉर गुड, आर्ट्स ऐंड कल्चर और सिटीजन जर्नलिज्म इन चार श्रेणियों में ऑनलाइन एक्टिविज्म को सम्मानित करता है.
टीवी के लिए भी रिकॉर्ड किए गए कार्यक्रम के मेजबान थे डॉयचे वेले के जाफर अब्दुल करीम. अवॉर्ड के लिए जमा हुई करीब 2,300 प्रस्तुतियों में से चार प्रोजेक्ट्स को इस अंतरराष्ट्रीय सम्मान के लिए चुना गया.
2016 के बॉब्स जूरी अवार्ड विजेता रहे:
सोशल चेंज: भारत का स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन
सिटीजन जर्नलिज्म: बांग्लादेश की डॉक्युमेंट्री फिल्म "रेजर्स एज"
टेक फॉर गुड: ईरान का ऐप गेरशाद
आर्ट्स ऐंड कल्चर: जर्मनी की सेंटर फॉर पॉलिटिकल ब्यूटी
'दुनिया को बदलना है, तो खुद बदलना जरूरी है'
भारत के प्रोजेक्ट स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन को सोशल चेंज कैटेगरी का विजेता चुना गया. यह अभियान उन महिलाओं की मदद करता है जिनके चेहरे एसिड हमले के कारण जला दिए गए और जो उसके कारण तरह तरह के भेदभाव, सदमा और अलग थलग पड़ने की दिक्कतें झेलती हैं.
बॉब्स जूरी ने इस प्रोजेक्ट को अवॉर्ड के लिए चुना क्योंकि इन्होंने "महिलाओं को पुरुषों के बराबर स्थान ना देने वाले पितृसत्तात्मक समाज में एक बहुत कठिन लड़ाई चुनी, और बेहद दर्दनाक तरीके से छीने गए उनके अधिकार लौटाने" का काम किया है.
अवॉर्ड स्वीकार करने वाले आलोक दीक्षित ने इस पुरस्कार को इस बात का प्रतीक बताया कि उनकी और उनकी टीम के प्रयासों से इस बारे में जागरूकता बढ़ी है और ऐसी महिलाओं के लिए वैश्विक स्वीकार्यता भी धीरे धीरे बढ़ रही है.
आलोक दीक्षित ने खुद एसिड अटैक का मजबूती से मुकाबला करने वाली महिला लक्ष्मी से शादी की है. दीक्षित का कहना है कि लक्ष्मी की आंतरिक शक्ति और दूसरों की मदद करने के जज्बे को देख उनसे प्यार हो गया. आलोक ने बताया, "सब कहते हैं कि दुनिया को बदलना है, लेकिन उसके लिए सबसे पहले आपको खुद को बदलना चाहिए."
मॉरल पोलिसिंग से बचाने वाला ईरान का ऐप
टेक फॉर गुड श्रेणी में विजेता रहा ईरान का ऐप गेरशाद. यह एक स्मार्टफोन ऐप्लिकेशन है जो क्राउडसोर्सिंग की मदद से ईरान में सक्रिय "मॉरल पुलिस" के खिलाफ काम करता है. ईरान में लोगों पर कई तरह की पाबंदियां हैं, मिसाल के तौर पर महिलाएं वहां बिना हिजाब के घर से बाहर नहीं निकल सकतीं. नियंत्रण रखने के लिए सड़कों पर अधिकारी तैनात होते हैं. इस ऐप से उनकी लोकेशन का पता किया जा सकता है. ऐप इस्तेमाल करने वाले लोकेशन को मार्क करते हैं, जिससे बाकियों को पता चल जाता है कि वह रास्ता नहीं लेना है.
ऐप को डिजाइन करने वालों के एक प्रतिनिधि ने बताया कि इसका उद्देश्य सामूहिक अहिंसा को एक औजार बना कर ईरानी लोगों के अभिव्यक्ति के बुनियादी अधिकार को सुरक्षित रखना है.
"हमारी आशावादी सोच तो यह है कि एक दिन हमारे ऐप की जरूरत ही ना रहे और इसका इस्तेमाल शायद किसी ट्रैफिक बताने वाले ऐप के रूप में होने लगे."
रिफ्यूजी समस्या को ध्यान दिलाने वाली इंस्टॉलेशन आर्ट
जर्मनी के आर्ट प्रोजेक्ट सेंटर फॉर पॉलिटिकल ब्यूटी को आर्ट्स ऐंड कल्चर श्रेणी में यह पुरस्कार सोशल मीडिया और कला के मिश्रण से नए तरीकों का बहादुरी से प्रयोग करने के लिए मिला.
अपने ताजा प्रोजेक्ट में इन्होंने भूमध्य सागर के रास्ते यूरोप आने वाले रिफ्यूजियों और प्रवासियों के लिए 1,000 प्लेटफॉर्म बना कर किया है. हर एक प्लेटफॉर्म में फर्स्ट एड किट, खाना और ऐसे सोलर पैनल लगे होंगे जिनसे मदद के लिए सिग्नल भेजे जा सकें.
पुरस्कार लाते हैं जिम्मेदारी
बांग्लादेश की डॉक्यूमेंट्री फिल्म "रेजर्स एज" को सिटीजन जर्नलिज्म कैटेगरी में पुरस्कृत किया गया. इस दक्षिण एशियाई देश में ब्लॉगर लगातार कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं. डॉक्यूमेंट्री फिल्म इन्हीं हत्याओं और ब्लॉगरों की दिक्कतों को दर्शाती है. फिल्म दिखाती है कि कैसे दोषियों को सजा ना मिलने के कारण ऐसे कट्टरपंथियों की हिम्मत बढ़ती चली जा रही है और प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 144वें स्थान पर रखे गए बांग्लादेश में प्रेस की आजादी और भी गहरे खतरे में पड़ रही है.
अब बांग्लादेश के बाहर रहने वाले इस फिल्म के निर्माता ने इसे एक भावुक करने वाला मौका बताया. उन्होंने कहा, "अवॉर्ड के कारण मैं इन हालात पर रोशनी डालने के लिए पहले से भी ज्यादा जिम्मेदारी महसूस करता हूं." वह अपनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म कई और देशों में भी दिखाना चाहते हैं और पूरे यूरोप में यात्रा कर बांग्लादेश की स्थिति के बारे में जागरूकता फैलाना चाहते हैं.
बासेम युसेफ का आना
मिस्र के स्टार एक्टिविस्ट बासेम युसेफ ने बॉब्स अवॉर्ड में पहुंच कर लोगों को हैरान किया. अपने देश मिस्र में नागरिकों से छिने जा रहे मुक्त भाषण के अधिकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए युसेफ को मिस्र सरकार ने उनकी नागरिकता छीन ली थी. 2014 में तब उन्हें अपना लोकप्रिय व्यंग्य समाचार कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था, जब मिस्र में अब्दल फतेह अल-सीसी राष्ट्रपति बने थे.
युसेफ ने ज्यादातर पश्चिमी देशों के दर्शकों से भरे आयोजन में कहा कि ना केवल दुनिया भर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों पर ध्यान देने की जरूरत है बल्कि किसी तानाशाह को मदद पहुंचाने में यूरोप की भूमिका पर भी सवाल उठाने चाहिए.