दक्षिणी चीन सागर में चीन को जवाब देने पहुंचा भारत
१८ सितम्बर २०११दक्षिणी चीन सागर को अपनी जायदाद समझने वाले चीन ने भारत को इस ओर रुख न करने की चेतावनी भी दी थी. पर भारत ने इसे नजरअंदाज कर वियतनाम की कंपनी के साथ करार कर लिया. चीनी विश्लेषक मानते हैं कि ऐसा करके भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ चीन की बढ़ती नजदीकियों का जवाब देने की कोशिश की है. चीन की फुडान यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर अमेरिकन स्टडीज के निदेशक शेन डिंगली का मानना है कि इस कदम के जरिए भारत ने चीन की हरकतों पर अपनी नाखुशी जताई है.
डिंगली ने कहा है, "हाल के वर्षों में चीन म्यांमार और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ अपनी दोस्ती बढ़ाई है. पाकिस्तान ने तो चीन को अपने यहां बुला कर सुरक्षा कवर देने और हिंद महासागर में नौसेना अड्डा बनाने का भी प्रस्ताव दे दिया है. इन सब कदमों ने भारत को बेचैन कर दिया है." डिंगली ने यह बात सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स से कही.
सरकारी मीडिया का अभियान
भारतीय कंपनी ओएनजीसी ने जब से दक्षिणी चीन सागर के दो ब्लॉक्स में तेल की खुदाई का काम अपने हाथ में लिया है चीन की सरकारी मीडिया इसके पीछे पड़ गई है. इन ब्लॉक्स पर वियतनाम का दावा है. चीन की सरकारी मीडिया इस इलाके में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए सरकार पर इस मामले में सख्ती से पेश आने के लिए दबाव बना रही है. दक्षिणी चीन सागर के पानी पर चीन के अलावा वियतनाम, फिलीपींस, ब्रुनेई और मलेशिया भी दावा करते हैं. सागर की तलहटी में तेल का खजाना है और इसकी मात्रा करीब 28 अरब बैरल तक हो सकती है.
फुडान यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अमेरिकन स्टडीज से जुड़े प्रोफेसर वू जिन्बो कहते हैं कि भारत और वियतनाम की तरफ से संयुक्त खुदाई कोई अचानक हुई घटना नहीं है क्योंकि हाल के वर्षों में भारत लागातर अपने पूरब की ओर ध्यान केंद्रित कर रहा है. वू का कहना है कि दक्षिण एशियाई देश भारत पूर्वी एशियाई देशों के मामले में अमेरिका के सहयोग से लगातार अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है. उनके मुताबिक अमेरिका चीन से मुकाबला करने के लिए भारत जैसे देशों को भड़का रहा है.
वू ने कहा, "अमेरिका चीन से मुकाबला करने के लिए हर मौके का इस्तेमाल करता है. जापान और इलाके के दूसरे देशों के साथ पिछले कुछ सालों से उसका सैन्य सहयोग लगातार जारी रहा है." वू का कहना है कि इस प्रोजेक्ट के जरिए भारत ने एक तीर से दो शिकार किए हैं. इस खुदाई से जहां एक तरफ उसे आर्थिक लाभ होगा वहीं दूसरी ओर चीन के साथ राजनीतिक संतुलन बनाने में भी मदद मिलेगी.
सावधानी की जरूरत
हालांकि चीन के विदेश मंत्रालय से जुड़े रोंग यिंग ने दलील दी है कि दोनों देशों को अपने रिश्तों में आए सुधार को देखते हुए इस मामले का हल सावधानी से निकालना चाहिए. रोंग यिंग चायना इस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटजिक स्टडीज के उपाध्यक्ष भी हैं. सरकारी टीवी चैनल सीसीटीवी से बातचीत में रोंग यिंग ने कहा कि 21वीं सदी एशिया प्रशांत क्षेत्र की है और भारत चीन इसके सबसे महत्वपूर्ण देश हैं जिनके नेता ये कहते रहे हैं कि दुनिया बड़ी है और दोनों के लिए बहुत है. उन्होंने कहा कि दोनों देशों ने रिश्ते सुधारने की दिशा में एक लंबा रास्ता तय किया है और उन्हें अपने विवादों को सावधानी से हल करना चाहिए.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः ओ सिंह