दलाई लामा से दूर रहें ओबामा: चीन
२१ फ़रवरी २०१४अमेरिकी राष्ट्रपति निवास व्हाइट हाउस में शुक्रवार शाम दलाई लामा और राष्ट्रपति बराक ओबामा की मुलाकात होनी है. इस पर नाराजगी जताते हुए चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा, "हम अमेरिका से आग्रह करते हैं कि चीन की चिंताओं को गंभीरता से लिया जाए और तुरंत इस बैठक को रद्द किया जाए. अगर कोई देश जानबूझकर चीन के हितों को नुकसान पहुंचाने पर आमादा होगा तो अंत में वो अपने हित भी खराब करेगा और चीन के साथ संबंध भी बिगड़ेंगे." हुआ ने दलाई लामा को "भेड़ के भेष में भेड़िया" बताते हुए कहा कि दलाई लामा "ऐसे राजनीतिक निर्वासित हैं जो धर्म की आड़ में लंबे समय से चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में शामिल हैं."
आजादी के पक्ष में नहीं
लेकिन चीन की चिंताओं से इतर अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल एनएससी की प्रवक्ता केटलिन हेडन ने एलान किया है कि ओबामा "अंतरराष्ट्रीय रूप से सम्मानित धर्मगुरु और सांस्कृतिक नेता" संत दलाई लामा से मिलेंगे. हेडेन ने यह भी कहा कि अमेरिका दलाई लामा के रास्ते का समर्थन करता है, लेकिन "तिब्बत की आजादी का समर्थन नहीं करता है."
ओबामा 2011 में भी दलाई लामा से मिल चुके हैं. तब भी चीन ने ऐसा ही विरोध किया था.
अमेरिका समेत कई देशों का आरोप है कि चीन तिब्बत के लोगों को बंदूक की नोक पर रखता है और उन्हें धार्मिक आजादी नहीं देता है. बीते सालों में चीन के इस रुख के विरोध में 120 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु आत्मदाह कर चुके हैं. गुरुवार को एनएससी की प्रवक्ता ने कहा, "अमेरिका चीन में मानवाधिकार और धार्मिक आजादी का पुरजोर ढंग से समर्थन करता है. चीन के तिब्बत इलाके में मानवाधिकारों की बुरी गत जिस ढंग से जारी है, उसकी हमें चिंता है."
बदलते राजनीतिक समीकरण
चीन कई दशकों से विदेशी सरकारों पर दलाई लामा से मुलाकात न करने का दबाव डालता रहा है. भारत और चीन के विवाद में भी दलाई लामा एक कड़ी हैं. तिब्बत में 1959 में जनविद्रोह हुआ, जिसे चीन ने सेना की ताकत से दबा दिया. इसके बाद दलाई लामा भाग कर भारत आए और तब से वो भारत में ही रह रहे हैं. कभी तिब्बत की आजादी की मांग करने वाले दलाई लामा भी बीते एक दशक में आजादी के बजाए स्वायत्ता की बात उठाने लगे हैं.
चीन के ताकतवर होने से अंतरराष्ट्रीय समीकरण भी बदले हैं. पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के आक्रामक अंदाज से पड़ोसी देश परेशान हो रहे हैं. वॉशिंगटन भी एशिया में शक्ति संतुलन करना चाहता है. एक तरफ अमेरिका और चीन काराबोर में एक दूसरे के सबसे बड़े सहयोगी हैं तो दूसरी तरफ शक्ति संतुलन के मामले में उनके बीच होड़ छिड़ी है.
ओएसजे/ (एपी, एएफपी)