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समाज

दहेज के लिए मकान नहीं तो कैसे हो शादी

२५ दिसम्बर २०२०

बेटी की शादी के लिए दहेज में मकान देना जरूरी होने के कारण बहुत से लड़कियों की जिंदगी दुश्वार हो गई है. श्रीलंका के इस समाज में एक तरफ बेटियां कुआरीं बैठी हैं तो दूसरी तरफ मकान की कीमतें आसमान छू रही हैं.

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Sri Lanka Symbolbild muslimische Frau
प्रतीकात्मक तस्वीरतस्वीर: Tharaka Basnayaka/ZUMAPRESS/imago images

रिजीना (बदला हुआ नाम) के लिए यह एक और तकलीफदेह दिन था. वह परिवार के साथ अपनी बहन के लिए दूल्हा खोज रही हैं लेकिन इस बार भी नाकाम रहीं. बीते एक दशक में उनके साथ कुल मिला कर ऐसा 46वीं बार हुआ. रेजीना के परिवारवालों ने जब शादी के लिए दहेज में घर देने में असमर्थता जताई तो दूल्हे के परिवार वालों से ज्यादातर मुलाकातें कुछ मिनटों में ही निबट गईं.

रिजीना का घर श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से करीब 350 किलोमीटर दूर साइंथामारुथु में है. यहां स्थानीय मुस्लिम परिवारों में लड़की को दहेज में घर देने की रिवायत है. इसके बगैर शादी नहीं होती. लड़के के परिवार वाले मिलने पर पहला सवाल ही यही पूछते हैं. रिजीना बताती हैं, "जब हम कहते हैं कि खरीदने की कोशिश कर रहे हैं तो बातचीत वहीं टूट जाती है."

रिजीना को उनके मां बाप ने दहेज में घर दिया था. श्रीलंका के पूर्वी तट वाले इस इलाके में मकान की कीमतें बहुत ज्यादा हो गई हैं और उनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो घर खरीद सकें. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि दहेज में घर देने की प्रथा के कारण यहां मकान की कीमतें आसमान छू रही है और ऐसी महिलाओं की तादाद बढ़ती जा रही है जिनकी शादी नहीं हुई या फिर जिनके पास कोई आर्थिक सुरक्षा नहीं है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर तस्वीर: Eranga Jayawardena/AP Photo/picture alliance

महिला अधिकार कार्यकर्ता और सामाजशास्त्र की लेक्चरर मिन्नाथुल सुहीरा कहती हैं, "दहेज इस संस्कृति का ऐसा दानव बन गया है जिसे रोक पाना संभव नहीं हो रहा. एक औसत परिवार के लिए भारी कर्ज लेकर जमीन और मकान खरीदना बहुत मुश्किल है." सुहीरा ने बताया कि यह एक जटिल मुद्दा है जिसे कोई सुलझाना नहीं चाहता. बहुत सारे लोग दहेज के लिए जमीन और मकान खरीदने के कारण कर्ज में डूबे हैं.  दहेज के मामले में यहां कोई समझौता नहीं होता.

जीवन की सुरक्षा

श्रीलंका के भीड़भाड़ वाले पूर्वी तट के इलाके में जमीन की भारी मांग है. सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि कुछ गांवों में तो प्रति किलोमीटर एक लाख से ज्यादा लोग रह रहे हैं. 10 साल पहले साइंथामारुथु में 25 वर्गमीटर जमीन की कीमत 50000 श्रीलंकाई रुपये थी आज यही जमीन आठ लाख रुपये से ज्यादा की है. स्थानीय लोग बताते हैं कि इलाके में उच्च शिक्षा पाने में असमर्थ महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा है. ऐसे में उन्हें कोई नौकरी नहीं मिलती है. अपना गुजारा चलाने के लिए उनके पास शादी ही एक मात्र जरिया है.

दूसरी तरफ जो महिलाएं काम करती हैं वो खुद से बेहतर पति चाहती हैं. इसका मतलब है कि उनके मां बाप को और ज्यादा जमीन और बड़े घर दहेज के लिए जुटाने होंगे. जिन महिलाओं की शादी नहीं हो पाती उन्हें अपने खर्च के लिए मां बाप पर आश्रित होना पड़ता है. स्थानीय कार्यकर्ता कालिलु रहमान ने बताया, "जब मां बाप मर जाते हैं तो वो करीबी रिश्तेदारों पर आश्रित हो जाती हैं."

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तस्वीर: ZUMAPRESS/imago images

विदेशी पैसा

श्रीलंका के पूर्वी तटीय इलाके की आबादी लगातार बढ़ रही है और ऐसे में जितनी जमीन वहां है उस पर दबाव बढ़ता जा रहा है. फिलहाल साइंथामारुथु में करीब 30,000 लोग रहते हैं. 2012 की जनगणना से यह करीब 18 फीसदी ज्यादा है. नतीजा यह है कि हर परिवार के पास मौजूद जमीन का टुकड़ा एक दशक पहले की तुलना में अब बस एक तिहाई ही बचा है. अमपरा जिले के लैंड ऑफिसर एमएम रफी बताते हैं, "250 वर्गमीटर जमीन का एक टुकड़ा बीते 10 सालों में एक बस्ती में तब्दील हो गया है जिसमें तमाम घर हैं और कई परिवार रह रहे हैं."

दूसरा कारण मध्यपूर्व के देशों में रहने वाले यहां के लोग भी हैं. ये लोग अपनी बहनों और बेटियों के दहेज के लिए जमीन खरीदते हैं जिसके कारण कीमतें बढ़ती जा रही है. उदाहरण के लिए तटवर्ती गांव आक्काराईपट्टू के हर तीन परिवार में एक परिवार का कोई ना कोई सदस्य विदेश में है. इनके पास पैसा है इसलिए वो काफी सारी जमीन खरीद सकते हैं और फिर बाजार में उनका एकाधिकार चल रहा है. कीमतें बढ़ गई हैं और दूसरे लोग जमीन नहीं खरीद सकते. लोग यह भी कहते हैं कि कीमतें बढ़ने के कारण बाहर रहने वालों के लिए यह एक सुरक्षित निवेश भी बन गया है.

राजनीतिक कार्यकर्ता सिराज मशूर बताते हैं कि अधिकारी दहेज की मुश्किलों को सुलझाने में इसलिए भी नाकाम हो रहे हैं क्योंकि वे इसे समस्या के तौर पर देखते ही नहीं. समाज के ज्यादातर लोग इसे उचित मानते हैं.

मकान के लिए जिंदगी

कालमुनाई शहर में 54 साल के मोहम्मद राजिक दो बच्चों के पिता हैं और 2005 से ही 75 वर्गमीटर का मकान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह मकान उनकी बेटी के लिए है जो अब 28 साल की हो गई है और बीते एक दशक से शादी के इंतजार में है. जब तक यह मकान नहीं बन जाता राजिक के पास दहेज में देने के लिए कुछ नहीं है. समस्या यह है कि उनके इस मकान के अगल बगल खाली जमीन भी नहीं तो वह अपना मकान बढ़ा नहीं सकते. राजिक बताते हैं, "लड़के वाले कम से कम 150 वर्गमीटर का मकान मांगते हैं."

राजिक की कमाई एक दिन में बमुश्किल से 180 श्रीलंकाई रुपये है और मकान को पूरा करने के लिए उन्हें कम से कम 10 लाख रुपये की जरूरत है. वे कहते हैं, "जब जमीन और दहेज की बात हो तो कोई इस बारे में बात करने के लिए तैयार नहीं होता. यह हमारे समाज के लिए एक नासूर बन गई है. मैं 15 साल से अपनी सारी बचत इस मकान में लगा रहा हूं. यह असंभव हो गया है."

एनआर/एमजे(रॉयटर्स)

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